महान संकट की ओर बढ़ रहे थे कदम और बुल्लेशाह अनजान था (भाग-6)

महान संकट की ओर बढ़ रहे थे कदम और बुल्लेशाह अनजान था (भाग-6)


जिंदगी मे होश संभालने के बाद शायद पहली बार तवायफ के मुंह से निकला भाईजान। बोलकर अच्छा सा लगा मेरी एक शर्त है आपसे जब आपके मुर्शीद आप पर फजल कर दे आप पर प्रसन्न हो जाए तो मुझे भी उनसे रूबरू कराईयेगा में देखना चाहती हूं उस रूहानी माशूक को जिसने इस मतलबी जमाने में भी तुम जैसा बेमतलबी सच्चा आशिक़ पैदा कर दिया सोचती हूं वो खुद भी जरूर एक असीम समुद्र होगा जो लंबे अरसे तक तप तप कर तुम्हें कतरा कतरा पिलाता रहा होगा तभी तो आज तुम्हारी आंखो में ये काले बादल है और उनसे रीसती ये छम छम बारिश बोलो भाई जान मिलाओगे मुझे भी उस इलाही समुद्र से?बुल्लेशाह ने कहा जरूर आपा अगर मुझे मौका मिला तो में उस तक आपके लिए बिछ जाऊंगा बुल्लेशाह को आपा ने अंदर बुलाया चल पड़ा हूं तुम्हे मनाने को कुछ ऐसी राहों पर जिसे दुनिया के लोग बदनाम कहते है बदनामी का डर भी नहीं है मुझको अब शायद इसी को दीवाने प्यार कहते है कोठा अंदर से बहुत ख़ास और नुमाइशी था परन्तु आपा बुल्लेशाह के साथ एक पल भी इन रंगीन नजारों पर नहीं थमी बड़ी रफ्तार से आलिशान कमरों और गलियारों से गुजरती गई अच्छा खासा रास्ता तय करने के बाद कोठे के आखरी छोर पर आकर रूकी वहां एक बड़ा ही सादा सुदा कमरा था जैसे शोक परस्त दुनिया के बीच एक कुटिया हो जो शायद किसी फ़कीर के सा आने के इंतजार मे ही थी।भाई जान जब तक रहना चाहते है आप तब तक रह सकते है बुल्लेशाह ने नज़रे झुकाकर धीरे से शुक्रिया किया और चटाई पर सिमटकर बैठ गया आंखे नम थी पलके भीगी चेहरा फिर से रोने की मुद्रा इख्तियार कर रहा था आपा ने वहीं खड़े खड़े बुल्लेशाह को निहारा भाईजान लगता है गम- ए- ज़ख्मों ने आपको बेहद गहराई तक घायल कर रखा है अगर तकल्लुफ न माने तो एक सवाल पूछू? आखिर ऐसा क्या हुआ जो हजरत इनायत आपसे बेरुख हो गए? इस सवाल ने तो जैसे बुल्लेशाह की दुखती रग पर हाथ फेर दिया हो।आपा न जाने मेरे शाह जी के दिल में अचानक कौन सी गांठ पड़ गई पता नहीं अनजाने में मेरे मुख से ऐसे खराब लब्ज निकल गए या मैंने उनके हुक्म की नफ़र्मानी। कर डाली शायद मेरा खोटनखिट ही आज मेरा दुश्मन बन बैठा है जो वे इतने खफा हो गए हैं गमो के घैरो ने मुझे कैद कर लिया है आपा अब कुछ रास नहीं आता कुछ नहीं दिल में इतने मरोड़े उठते है बस मुझे शाहजी चाहिए।आपा बस मुझे मेरे सदगुरु चाहिए सिर्फ तुझको अपने आसपास चाहता हूं कि आज में जी भरकर रोना चाहता हूं ऐसा कर दो मेरा सिर तेरी गोद में हो बस तेरा हाथ अपने सिर पर चाहता हूं कि आज में जी भरके रोना चाहता हूं मेरी मांग कुछ नहीं, मेरी चाह कुछ नहीं आरज़ू कुछ नहीं जुस्तजू कुछ नहीं बस इक तमन्ना कि तुझको पाना चाहता हूं आज ही सदगुरु में जी भरकर रोना चाहता हूं बुल्लेशाह जी भरके रो भी रहा था उसके सीने का दर्द अपनी इंतहा पर था अगर थोड़ा दर्द और बढ़ जाता तो शायद बुल्लेशाह की धड़कने भी रुक जाती इतिहास कहता है कि इस लम्हा तवायफ में जन्मी बड़ी बहन ने ही उसे समझाया भाई जान मुझे पूरा पूरा एहसास है कि आपके दिल में आपके सतगुरु की जुदाई एक काली रात बनकर छाई है।मगर आप इस तरह रोते रहे तो यह रात आपकी सारी हस्ती को ही निगल जाएगी फिर क्या आप खाक इनायत को मनाएंगे? नहीं भाई जान नहीं चरागो को दिल में मेहफूज रखना बड़ी दूर तक रात ही रात होगी चलोगे नहीं खो जाओगे जो बोलो फिर मुकाम से कैसे मुलाक़ात होगी भाई जान तुम्हे चलना होगा तुम्हारी मंजिल के लिए तुम्हे चलना होगा इन लफ़्ज़ों ने सच में जैसे बुल्लेशाह के बुझते चिरागो में न थी जान फूंकी सच में उसने सब समझते हुए धीरे धीरे हां में गर्दन हिलाई और मानो रोशनी का सामान इकट्ठा करने की कोशिश में जुट गया उसकी इस कोशिश में कोई दखलंदाज़ी ना हो यह सोच आपा आहिस्ता से वहां से चली गई बुल्लेशाह काफी देर तक न हिले डुले बिना पलक झपके बैठा रहा फिर उसने खुद से एक बात कहीं जो कहा वह उसकी काफ़ी बनकर इतिहास के साहित्य में दर्ज है बुल्लेशाह कदी घर आवसी मेरी बलदी भी बुझावसी जेह टे दुखा ने मुंह खा लिया कदी मोड़ मुहारा ढोलिया अर्थात यकीन है शाह जी आना ही होगा गुरुदेव आप आओगे और मेरे दिल में जल रही आग को बुझाओगे आज बेशक जुदाई का ग़म मेरे सामने मुंह बाए खड़ा है।मगर एक दिन इस आशियाने में वापस जरूर लौटेंगे अगले दिन सुबह भाई जान थे लिबास पहनकर तैयार हो जाओ हम तालीम का पहला सबक आज से ही शुरू करेंगे बुल्लेशाह ने तो रात इसी इंतजार में काटी थी कि कब इनायत की तरफ पहला कदम उठे इसलिए वह भी तुरंत तैयार होकर हाल में आ गया वहां पहुंचते ही आपा ने बुल्लेशाह को घुंघरू जड़ीत दो फीते थमा दिए बुल्लेशाह ने उन्हें बड़े अदब से दो मुंह हाथों पर लिया और नैनो से चूमा। ए घूंघरू ऐसी खनक दिखा जो पी का जी मचलावे।ए घुंघरू ऐसी ठुमक लगा जो पी रीछ मोसे नैन मिलावे रुन रुन झुन झून ऐसी सुना जो रूठा यार हंसावे हाले दिल का कलमा गूंजा वो कायल मेरा हो जावे यहां से शुरू हुई बुल्लेशाह की तालिम वाह रे इश्क वाह रेे दर्द ए मोहब्बत अब ये तेरी कौन सी शक्ल है कैसी जिद है देखो आज ये कैसे इश्क नचा रहा है दीदार ए तलब में कोई अपनी राह बना रहा है ये इम्तिहान है इश्क की ये शौक है फिराक का आंसुओं के दलदल में भी कोई क़दमों को उठा रहा है कैसी तासिर है कैसा जुनून है कैसी जिद है तेरी जो जिस्म का रूह को लहू को नचा रहा है तड़प को आंहो को जुस्तजू को लहरा रहा है एक एक खनक के साथ हस्ती को मिटा रहा है देखो आज इश्क को कैसे इश्क़ नचा रहा है यह बिल्कुल सच है बुल्लेशाह को आपा नहीं इश्क़ नचा रहा है सदगुरु की रुसवाई ही मदारी बनकर डमरू बजा रही है।उनका इश्क़ ही थाप दे रहा है इश्क ही मानो आपा में बैठकर गा रहा है ता थई थई तत। इसी बीच आपा ने देखा कि बुल्लेशाह के पैरो में थकान घुसपैठ कर चुकी है आज के लिए इतनी ही तालीम काफी है भाईजान अगला सबक कल मुकम्मल करेंगे बुल्लेशाह बेकल सा हुआ गिड़गिड़ा उठा दूसरा सबक भी आज ही सीखा दो न।कहीं आप थक तो नहीं गई आपा? आपा हल्की सी मुस्कान मुस्कराते हुए भाईजान नाचना तो मेरा पेशा है भला में कैसे थक जाऊंगी? बुल्लेशाह फिर से नाचना शुरू कर दिया समय बीता अब तक बुल्लेशाह हांफने लगा था कंधे लटके और कमर झुक गई थी।पैर भारी हो चले थे आपा को एक तरफ बुल्लेशाह में जज्बातों का तूफान दिख रहा था परन्तु दूसरी ओर जिंदगी की असलियत भी नज़र आ रही थी वह दोनों मे फर्क समझती थी और ताल मेल भी बिठाना जानती थी लेकिन इस बेहोश मुरीद को कैसे समझाए आखिरकार आपा हांफने की अदाकारी करके बोली बस भाईजान बस आपके जज़्बे में तो मेरी पेशेवरी को भी मात दे डाली भाई अब तो बदन टूटने लगा है हम थक हारकर गए ये कहते हुए उसने अपने घुंघरू उतारने लगी और बुल्लेशाह के लिए दूसरा कोई मौका ही नहीं छोड़ा बुल्लेशाह ने भी अब धीरे से सिर हिलाया और अपने कैमरे की तरफ बढ़े।रास्ते में उसकी उखड़ी सांसे और तेज धड़कने मानो इनायत से पूछ रही थी कि हे मेरे हबीब मेरे सतगुरु जिस्म में अब तिल्ली भर भी ताकत नहीं रही यह पुर्जा पुर्जा बिखर गया है रो रो कर बर्बाद हो रहा है क्या अब भी इसकी बेचारगी पर तरस न खाओगे खैर मेरे ओलिया तू रूठने की हदे पार करता जा में तुझे मनाने की करता जाऊंगा क्योंकि मुझ नीमाने कैदी के पास इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है यह हद से गुजरना ही था कि बुल्लेशाह अपने कमरे में दाखिल होकर भी एक घड़ी सुकून से नहीं बैठा उसने अन्दर से किवाड़ बंद कर लिया फर्श पर से चटाई हटाकर फ़िर से नाचना शुरु कर दिया यह दिल खोलकर रोने नाचने लगा इस प्रकार बुल्लेशाह एक पल भी व्यर्थ न गवाता गुरु की याद में अपने शरीर का भान न रहता उसके लिए न दिन था न रात थी तो सिर्फ गुरु की जुदाई का ग़म और उनकी ही यादें।

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