सैकड़ों वर्ष पूर्व हो चले त्रिकालज्ञ संत देवायत पंडितजी की भविष्यवाणियां

सैकड़ों वर्ष पूर्व हो चले त्रिकालज्ञ संत देवायत पंडितजी की भविष्यवाणियां


गुरु की कृपा गुरुभक्तियोग का आखिरी लक्ष्य है। गुरुभक्तियोग का अभ्यास जीवन के परम लक्ष्य आत्मसाक्षात्कार का स्पष्ट एवं सचोट मार्ग प्रस्तुत करता है। जहाँ गुरुकृपा है वहाँ योग्य व्यवहार है और जहाँ योग्य व्यवहार है वहाँ रिद्धि-सिद्धि और अमरता है । मायारूपी नागिन के द्वारा डसे हुए लोगों के लिए गुरु का नाम एक शक्तिशाली रामबाण औषधि है। सैकड़ों वर्ष पहले ‘ जूनागढ़ ‘ गुजरात के पास एक गाँव में एक शिव उपासक निःसंतान ब्राह्मण दम्पत्ति रहते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान शिव ने ब्राह्मण को सपने में दर्शन दिये और कहा कि – “भक्तराज मैं तुम्हारी मनोव्यथा को जानता हूँ। तुम्हारे भाग्य में संतानसुख नहीं है, परन्तु मेरे आशीर्वाद से मेरा अंश तुम्हारे घर पुत्र रूप में पलेगा। कल सुबह मंदिर की फूलों में तुम्हें एक बालक मिलेगा। उसे ही अपनी संतान मानकर पालन-पोषण करना। वह बड़ा होकर त्रिकलज्ञानी बनेगा।”सुबह पति-पत्नी दोनों बड़ी प्रसन्नता से मंदिर में पूजा कर ही रहे थे कि, इतने में किसी बालक की रोने की आवाज आई। पास जाकर देखा तो फूलों के ढेर में एक नवजात शिशु लेटा है। ब्राह्मणी ने उस तेजस्वी बालक को तुरंत गले से लगा लिया। सीने से लगाते ही माँ का वात्सल्य दूध बनकर फूट पड़ा।ब्राह्मण दम्पति बच्चे को घर ले आये। नामकरण की बात चली तो गाँव के मुखिया ने कहा, “यह तो देव का दिया हुआ है इसलिए इसका नाम देवो ही रखो।”बालक संस्कृत के श्लोकों को सहज में ही याद कर लेता था।उसकी वाणी रहस्यमयी थी।कभी-2 सुननेवालों को उसका रहस्य समझ में नहीं आता था।वही बालक बड़ा होकर देवायत पंडित के नाम से सुप्रसिद्ध हुआ।देवायत पंडित ने भजनों के माध्यम से कई सचोट भविष्यवाणियां की है। कई शताब्दियों पहले उन्होंने पहली भविष्यवाणी की थी। जिसके कुछ अंशो का भावार्थ इस प्रकार है कि, हमारे गुरु शोभाजी महाराज ने आगम अर्थात भविष्य के बारे में बताया है। सद्गुरु की वाणी झूठी नहीं होती, जैसा लिखा है, जैसा कहा है वैसे दिन आयेंगे।पाप का दौर आएगा और धरती पापिजनो का भोग माँगेगी। उनमें कुछ परस्पर लड़ाई-झगड़े करेंगे और उनका खड्ग से अर्थात आधुनिक शस्त्रों से संहार होगा।कुछ लोग विविध प्रकार के रोगों से पीड़ित होकर मरेंगे।पहले तेज हवाएँ चलेंगी, तूफान उठेंगे, अकाल से मनुष्य पीड़ित होंगे, नदियों का पानी सूख जायेगा। इसमें प्राकृतिक आपदाओं का संकेत है और परमाणु बम्ब विस्फोट के बाद ही ऐसा वातावरण बनता है। इसलिए तिसरे विश्वयुद्ध का भी संकेत है।हे देवलदे! देवायत पंडित की धर्मपत्नी का नाम था ‘ देवलदे ‘।हे देवलदे! ऐसे विकट समय में नर-नारी धर्म के आदेशों का पालन नहीं करेंगे। धर्मग्रंथ झूठे है और उनके आदेश झूठा है, ऐसा मानने लगेंगे।हे संतो! उत्तर दिशा से साहब अर्थात भगवान आयेंगे। यह बात गुजरात में कही गई है और सिंध प्रांत गुजरात की उत्तर में है।साबरमती के तट पर यति अर्थात पूज्य बापूजी और सती अर्थात पूजनीय मैय्याजी आसन जमायेंगे।वहाँ अच्छाई और बुराई के बीच संग्राम होगा। पूज्य बापूजी एवं उनके शिष्यों द्वारा देशधर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए विरोधी शक्तियों के साथ पिछले कई दशकों से सतत संघर्ष किया जा रहा है। वे सदा के लिए बुराई को मारकर निष्कलंक नाम धारण करेंगे।हे देवलदे! ऐसा समय आयेगा कि सौ-2 गाँवों की सीमा में रहनेवाले शहर और गाँव के लोग एकमत हो जायेंगे। अहमदाबाद आश्रम में जो ध्यानयोग शिविर लगते हैं, उनमें देश के अनेक गाँवो और शहरों के लोग सम्मिलित होकर एक आत्म उन्नति के लिए संमत होते थे, इस बात का संकेत है।और काकरियाँ तालाब पर बड़े तम्बू तानकर रहेंगे।उस समय अहमदाबाद का नाम कर्णावती था, परन्तु यह नाम बाद में बदल जायेगा यह बात जानकर देवायत पंडितजी ने कर्णावती नगर के बदले काकरियाँ तालाब का नाम दिया।उस समय की वे घड़ियाँ बड़ी रमणीय होगी। सूर्य अपनी 16 कलाओं से सम्पन्न तथा धरती खुशहाल होगी। कलियुग होगा फिर भी सत्य के आग्रही सच्चे संतो के तपोबल से सतयुग जैसा समय आयेगा। ऐसे भविष्य के लक्षण गुरुजी ने मुझे सुनाये है।सभी जानते हैं कि सनातन धर्म संस्कृति की रक्षा करने के लिए पूज्यश्री 50 वर्षों से लगे हुए हैं। आज पाश्चात्य जगत की पाश्विक शक्तियां भारत की संस्कृति, संस्कार व परम्पराओं को नष्ट करने में लगे हैं। पूज्य बापूजी अनेक प्रकार के झूठे आरोप सहकर भी संस्कृति की रक्षा में अपने करोड़ों साधको को साथ लेकर लगे हुए हैं। वे तो कहते हैं कि, विश्वगुरु हो भारत प्यारा , ऐसा है संकल्प हमारा!अब निश्चित ही सुंदर सुहावना समय आयेगा। युग परिवर्तन होकर सतयुग जैसा समय आयेगा। देवायत पंडित की भविष्यवाणी आज भी पत्थर पर शिलालेख के रूप में गुजराती भाषा में अंकित है।सामुद्रिक शास्त्र के एक प्रसिद्ध विद्वान ने पूज्य बापूजी के श्रीचरणों और करकमलों का अवलोकन करके पंचेड़ आश्रम (जो मध्यप्रदेश में है) में कहा था कि, *पूज्य बापूजी 16 बार अवतार ले चुके हैं और अब सत्रहवीं बार आये हैं।*इसलिए स्वामी शिवानंदजी कहते है कि ऐसे भक्तवत्सल सद्गुरु बिल्कुल हिचकिचाहट से रहित निःशेष एवं सम्पूर्ण आत्मसमर्पण के सिवा और कुछ भी नहीं चाहते। जैसे प्रायः आजकल के शिष्य करते हैं, वैसा आत्मसमर्पण केवल शब्दों की बात ही नहीं होनी चाहिए। उनको जितनी अधिक मात्रा में आत्मसमर्पण करोगे उतनी अधिक मात्रा में उनकी कृपा आप प्राप्त कर सकोगे।

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