व्यक्ति जिस किसी क्षेत्र में जितना एकाग्र होता है उतना ही चमकता है । पशु और मनुष्य के बच्चे में मौलिक फर्क यह है कि पशु का बच्चा डंडे खाकर जो बात 6 महीने में अनुकरण करता है या सीखता है, वही बात मनुष्य का बच्चा 6 मिनट में सीख के, करके दिखा देगा । इसलिए मनुष्य ऊँचा है । और मनुष्यों में भी जो 6 मिनट की जगह पर 4 मिनट में वही बात समझ लेता है या अनुकरण कर देता है वह ज्यादा ऊँचा है । 4 मिनट की अपेक्षा 2 मिनट और 2 मिनट की अपेक्षा 1 मिनट और 1 मिनट की अपेक्षा जो इशारे में ही समझ जाता है वह और ज्यादा बुद्धिमान माना जाता है, उसका स्थान ऊँचा होता है । तो जितना-जितना मन एकाग्र होता है, सूक्ष्म होता है उतना वह ऐहिक जगत में या आध्यात्मिक जगत में उन्नत होता है ।
गुरुकुल के गुरु ने एक विद्यार्थी को बुलाया और बोलेः “लो यह काँच की पेटी, इसमें मछली है । मछली क्या-क्या चेष्टाएँ करती है, उसका विश्लेषण करना और उस पर जरा विचार करके एक घंटे के बाद मुझे बताना ।”
एक घंटे बाद विद्यार्थी ने वर्णन करके बताया कि “मछली पहले ऐसे हुई फिर ऐसे हुई, बाद में ऐसे हुई….।”
गुरु जी ने कहाः “बस इतना ही….! और भी कुछ खोज । और भी बहुत कुछ होता है । एक घंटा और देते हैं ।”
उसने और खोजा तो बड़ा एकाग्र हुआ और मछली की और भी जो कुछ चेष्टाएँ हो रही थीं वे सामने आयीं ।
गुरु जी ने फिर कहाः “एक घंटा और देते हैं, अभी और भी है ।”
तो ज्यों-ज्यों उसने अनुसंधान किया त्यों-त्यों उसकी मन की वृत्ति सूक्ष्म हुई । एकाग्रता बढ़ी।
गुरु जी कहाः “बेटा ! यह मछली का तो निमित्त था, अब कोई भी बात होगी तो तेरा मन अनुसंधान करने की योग्यतावाला हो गया । अब तू अपने कार्यों में अच्छी तरह से सफल हो पायेगा । विश्लेषण करने की तेरी क्षमता का विकास हुआ है ।”
ऐसे ही आपके जीवन में जब दुःख आये तो विश्लेषण करो, सुख हुआ तो विश्लेषण करो और भोग मिला तो विश्लेषण करो, भोग का नाश हुआ तो विशलेषण करो कि ‘आखिर किसका कुछ सदा के लिए टिका है ?’ दुःख या सुख आये तो विचार करो कि ‘क्यों आया ?’ कितने दिन टिकता है, देखो । सावधान होकर दुःख के द्रष्टा बनोगे तो दुःख तुम्हें दुःख का भोक्ता नहीं बनायेगा । ऐसे ही सावधान होकर सुख को भी देखो कि ‘आखिर कब तक ?’ आकर्षित हुए, वस्तु मिली, आखिर क्या ?
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2020, पृष्ठ संख्या 18 अंक 330
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