गुरूभक्ति योग ही सर्वोत्तम योग है। कुछ शिष्य गुरु के महान शिष्य होने का आडम्बर करते हैं। लेकिन उनको गुरु वचन मे या कार्य मे विश्वास और श्रद्धा नही होती जो अद्वितीय है। सर्वशक्तिमान गुरु की संपूर्ण शरण मे जाओ। गुरु भक्ति योग आपको इसी जन्म मे धीरे-धीरे दृढ़ता, निश्चिंतता एवं अविचलता पूर्वक ईश्वर के प्रति ले जाता है। अहं भाव के विनाश से गुरुगुरुभक्तियोग का प्रारंभ होता है। और शाश्वत सुख की प्राप्ति मे परिणत होता है।
एक संत हो गए #तोकामाई चैतन्य बड़े ही अलमस्त ब्रह्मनिष्ठ संत एक बार संत तोकामाई चैतन्य के पास बारह वर्ष का एक बालक आया। उसने कहा हे महाराज मैं आपके चरणों मे रहना चाहता हूँ। आपकी सेवा में जीवन सफल करना चाहता हूँ। आपका सानिध्य पाकर धन्य धन्य होना चाहता हूँ।
संत तोकामाई ने कहा देख मेरे साथ तेरा गुजारा हो न सकेगा। तू यहाँ से चला जा। बालक बिलखने लगा कहा प्रभु कुछ दिन हमे अवसर दिया जाय। अगर मैं असफल हुआ तो आप जहाँ कहेंगे मै चला जाऊँगा। संत ने हामी भर दी। बालक का नाम गणू था।
बालक गणू तोकामाई जी की सेवा में दत्त चित् रहता झाडू पोछा करना, कपड़े साफ करना, स्नान के लिए पानी भरना जो भी सेवा होती दौड़ दौड़कर करता। संत बालक को प्यार तो करते थे परंतु जरा सी भी भूल हो तो इतना अधिक डाँटते कि आसपास देखने वालों को भी बालक पर दया आ जाती। कभी कभी तो तोकामाई जी इतना अधिक गणू को मारने के लिए दौड़ते और कभी कसकर पीट भी दिया करते।
संत के प्रति सभी आंगतुकों की श्रद्धा थी। इसलिए वे कुछ कहते तो नही परंतु बालक के प्रति सबके हृदय मे सहानुभूति और दया का भाव होता। सभी आंगतुक यही सोचते बल्कि गणू घर लौट जाता तो अच्छा होता। दिन रात सेवा तदुपरांत उपर से कटु कटु वाणियो का चाखन और कभी कभी छड़ी की पिटाई। परंतु बालक गणू अपने गुरु चरणो को पकड़े ही रहता। कोई शिकायत नही, न मोह से, न मन से।
एक बार तोकामाई जी ने कहा बेटे आज भिक्षा के लिए मै भी चलूँगा। झोली और कमण्डल गणू के हाथ मे थमाया। भिक्षाटन हो गया नगर भ्रमण हो गया। भिक्षा करके दोनो एक जगह बैठ कर भोजन किये। तदुपरांत पानी पीने के लिए नदी के तट पर आये। दोनो पानी पिये संत ने आंखे उठाकर आसपास देखा तो उन्होंने देखा कि तीन माइयाँ नदी मे कपड़े धो रही है। उनके तीन छोटे छोटे बच्चे थोड़ी दूर खेल रहे है।
संत एक किनारे थोड़ी दूर चले गये गणू को इशारे से बुलाया। गणू आया। संत ने कहा गणू जल्दी से एक गड्ढा खोद डाल। गड्ढा क्यूँ किसलिए? गणू ने कोई सवाल नही किया बस आदेश मिला गुरु का और गणू ने खोदना शुरू किया। अच्छा खासा गड्ढा खुलवाया तदुपरांत संत ने कहा बेटे देख तीनो माइयाँ मशगूल है कपड़े धोने मे। उनके तीनो बच्चे खेल रहे हैं। उन सबको चुपके से पकड़कर ले आओ। चिल्लाने न पाये। संत ने कहा तीनो बच्चो को गड्ढे मे डाल और जो मिट्टी है उसे भर दे उसमे और उसके उपर बैठकर तू ध्यान लगा।
बारह साल का बालक गणू तीनो बच्चो को गड्ढे मे धकेल दिया उपर से ढक दिया और फिर उसके उपर बैठकर ध्यान करने लगा। तीनो माइयाँ जब कपड़े धो ली तब अपने बच्चो को ढूंढने लगी जब चारो और ढुढ़ी। परंतु जब बच्चे नही दिखे दूर मे संत तोकामाई दिखे संत की प्रसिद्धी थी संत को देखकर तीनो माइया उनके पास दौड़ी और कहने लगी।
बाबा आपने मेरे बच्चो को देखा है क्या? बच्चे अभी यही खेल रहे थे और अभी कहाँ चले गए दिखते ही नही। संत ने कहा वह देख जो ढोंगी, कपटी आंख मूंदकर बैठा हुआ है वही तुम्हारे बच्चो को जानता है उससे पूछो कि तुम्हारे बच्चे कहाँ है। तीनो माइयाँ आयी बालक गणू को झकझोर कर पूछा कि कहाँ है हमारे बच्चे?
परंतु गणू चुप। बोले तो कैसे?
गुरु आज्ञा तो थी नही बोलने की।
तोकामाई दूर से ही चिल्लाये ऐसे नही बोलेगा, इसको पीटो। यही जानता है कि बच्चे कहाँ है। पीटो तब पता चलेगा। तीनो ने कसकर पिटाई की गणू की। जब मारते मारते थक गयी तो फिर आसपास के पेड़ की डालियो को तोड़कर जितना पीट सकी पीटा। गणू का पूरा शरीर मार खाकर चिन्ह सहित हो गया। फिर भी वह चुप रहा गुरु की आज्ञा न थी बोलने की।
संत तोकामाई पास आ गये उन्होंने कहा यह दुष्ट बहुत दम्भी है कपटी है देखो मिट्टी अभी नई नई लग रही है कहीं ऐसा तो नही इसने गड्ढा खोदकर तुम्हारे बच्चो को गड्ढे मे डाल दिया हो। गणू को धकेलकर एक तरफ हटाया गया संत ने कहा चलो चलो देखते हैं कहीं मिट्टी के अंदर तो बच्चे नही। जब मिट्टी को हटाया गया तो तीनो बच्चे मूर्छित। तीनो बच्चो को बाहर लेटा दिया गया। माइयो ने अपने बच्चो को मरा हुआ समझा। देखा तो वो तीनो की तीनो गणू के ऊपर भूत की तरह टूट पड़ी। जितनी पिटाई करनी थी जितना श्राप देना था दिया। इधर बिलख बिलख कर रो रही है और पिटाई भी करे जा रही है । खूब मार मारा और उसके बाद कहा मेरे बच्चे को तुमने मार डाला तो हम तुमको छोडेंगे नही। तुम्हे भी मार डालेंगे उसके बालो को पकड़कर घसीटने लग गई। दुसरी ने उसके गले को दबाया और तीसरी उसके पैर को पकड़कर विपरीत दिशा मे घसीटने लगी।
जब अच्छी तरह पिटाई हो गई गणू की तो संत तोकामाई चैतन्य ने कहा माइयाँ जरा देख तो बच्चे को जो तुम लोग मरा हुआ समझ रहे हो लेकिन ऐसा तो नही है वे बेहोश हैं। माइयाँ आई तो संत तोकामाई ने अपने कमण्डल से जल छिड़कते हुए कहा यह बच्चे तो बेहोश है थोड़ी देर मे ठीक हो जाएंगे। बच्चे थोड़ी देर मे होश मे आ गये। बच्चो को होश मे आया देखकर माइयो का सारा क्रोध उड़ गया अब कौन गणू को पीटे। अपने अपने बच्चे को गले लगा लिया उन्हे लगा कि कितने दिनो के बाद उनका खोया हुआ बच्चा उन्हे मिल गया और बड़ी अनहोनी टल गई।
आसपास बहुत भीड़ लग गई लोगो ने सुना की गणू की यह सब करामात है तो सबके सब जूता चप्पल जो भी मिला उसी से गणू की पिटाई करना शुरू कर दी तो भी गणू ने यह नही कहा कि यह गुरू की आज्ञा है। वह चुप ही रहा संत चुपके से गणू को अपने साथ लेकर आश्रम पहुचे उसके बाद शांति से बैठे। पूरे शरीर मे जुते और छङियो के निशान दर्द से बेहाल बच्चा। संत ने कहा क्यो बेटे और रहेगा मेरे साथ। कैसी रही आज की शिक्षा। बच्चे ने हाथ जोड़कर कहा #गुरू कृपा ही केवलम।
संत तोकामाई चैतन्य उसकी भक्ति उसकी श्रध्दा उसकी आस्था उसकी अटूट निष्ठा को देखकर उसके सिर पर हाथ फेरे बिना रह ना सके। उसे हृदय से लगा लिया और कहा बेटे तु तो सफल हुआ। तेरी गुरु भक्ति, गुरु निष्ठा रंग लाई। वही गणू नाम का बालक आगे चलकर महान सिध्द संत हुआ। जिसका नाम ब्रह्म चैतन्य #गौंदवलेकर जी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।