विषमता हो तो ऐसी – पूज्य बापू जी

विषमता हो तो ऐसी – पूज्य बापू जी


आचार्य विनोबा भावे के पिता का नाम था नरहरि भावे और उनकी माँ का नाम था रखुमाई । रखुमाई और नरहरि भावे मानते थे कि ‘अपनी कमाई के कुछ हिस्से का दान पुण्य करना चाहिए’ तो एक गरीब विद्यार्थी को लाकर घर में रख देते थे । जब विनोबा विद्यार्थी थे तो नकी माँ उनको धर्म की बातें सुनाती थीं- “बेटा ! ध्यान करने से यह लाभ होता है । भगवान का नाम लेना चाहिए, गरीब-गुरबे की मदद करनी चाहिए, मौन रहना चाहिए । बेटा ! सबमें ईश्वर है तो सबमें समानता रखनी चाहिए ।”

एक दिन विनोबा भावे ने अपनी माँ से ही सवाल पूछ लियाः “माँ ! मेरे को एक शंका होती है कि यह जो मोहताज, गरीब कुटुम्ब का विद्यार्थी अपने घर में रखते हैं तो तुम गर्म-गर्म रोटी तो उसको खिलाती हो और कभी बासी रोटी बच जाती है तो मेरे को खिलाती हो । कभी खिचड़ी या चावल बच जाते हैं बासी तो तुम मेरे को देती हो और उसके लिए ताजा बनाती हो । माँ ! तुम्हीं बोलती हो कि ‘सबसे समता का व्यवहार करना चाहिए’ और तुम्हीं विषमता का व्यवहार करती हो । मेरी माँ होकर अपने बेटे को तो बासी रोटी देती हो और उस गरीब-अनाथ को तुम ताजी रोटी देती हो । तो यह भी तो विषमता है !”

तो भारत की नारी ने क्या सुंदर जवाब दिया है ! रखुमाई को धन्यवाद हो ! ऐसी देवियों की कोख से ही तो संत-हृदय महापुरुष पैदा होते हैं ।

रखुमाई ने कहाः “बेटा ! मेरे मन में अभी विषमता है । उस गरीब विद्यार्थी में तु मुझे भगवान दिखते हैं । वह तो अतिथि है, भगवान का रूप है किंतु तेरे में मेरा अभी पुत्रभाव है । अपने पुत्र को तो कभी बासी-वासी भी खिलाया जा सकता है लेकिन वह भगवान का रूप है तो उसको बासी क्यों खिलाऊँ ? जब तू भी भगवान का रूप दिखेगा और संत बन जायेगा तो तुझे भी ताजा-ताजा खिलाऊँगी ।”

बोलेः “माँ ! मैं संत बन के दिखाऊँगा ।”

प्रण कर लिया और आचार्य विनोबा भावे सच्चे संत बनकर दिखे, दुनिया जानती है । तो ऐसी-ऐसी माताएँ हो गयीं ! ऐसी माताएँ, शिक्षक बंधु बच्चों में अच्छे-अच्छे संस्कार भर देते हैं ।

ऐहिक पढ़ाई के साथ-साथ भक्ति की पढ़ाई, मानवता की पढ़ाई, योग की पढ़ाई, आत्मविद्या की पढ़ाई पढ़ने वाले विद्यार्थी भी धनभागी हैं और उनके माता-पिता, शिक्षक बंधु भी धनभागी हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2020, पृष्ठ संख्या 18 अंक 331

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