हकीकत में हम इतने महान हैं कि उसका वर्णन करने लिए शारदा जी बैठें तो थक जायेंगी किंतु हमारी महानता पूरी नहीं होगी । हर मनुष्य इतना महान है । जैसे हर बीज में अनन्त वृक्ष छुपे हैं ऐसे ही हर जीव में अनन्त शिवत्व का सामर्थ्य छुपा है लेकिन अपनी अक्ल नहीं और शास्त्रों की मानते नहीं इसलिए दीन-हीन, लाचार होकर दुःख भोग रहे हैं ।
एक छोटी सी कहानी समझ लेंगे । हंस ऊँची उड़ान उड़ रहे थे । वसंतु ऋतु का मौसम था । सुबह-सुबह का समय था । एक हंस ने देखा कि ‘एक चूहा बेचारा ठिठुर गया है । नदी की ठंडी हवाओं के कारण उस बेचारे को ठंड लग गयी है ।’ हंस के चित्त में दया आयी, वह नीचे उतरा । वह ठिठुरे हुए चूहे को अपने पंखों में लेकर गर्मी देने लगा । चूहे की थोड़ी ठंडी दूर हुई तो वह फूँक मारता गया और उसका पंख कुतरता गया । जिस पंख से हंस ने उसे गर्मी दी, सत्ता दी, शक्ति दी, उसी पंख को काटता गया । हंस को पता न चला । जब एक पंख का काफी हिस्सा कट चुका था और ठीक बिन्दु पर उसके मांस को दाँत लगे, काटते-काटते चूहा मूल तक आया तो रक्त की धार बह चली और हंस को थोड़ा पता चला किंतु अब उसकी उड़ने की शक्ति शांत हो गयी । एक पंख से कैसे उड़े ! चूहे को कृतघ्न मानकर उसने छोड़ दिया किंतु सोचा कि ‘भलाई का बदला अगरा बुराई मिलता है तो भलाई कौन !’
फिर सोचा, ‘भलाई का बदला तो भला होता है किंतु असावधानी से की हुई भलाई बुराई का रूप ले लेती है । मेरा तो एक पंख कटा, संसार के लोग अपने मनरूपी चूहे को सत्ता देते हैं और मनरूपी चूहा व्यक्ति की सत्ता पाकर व्यक्ति के ईश्वरीय उड़ान के कर्म और ज्ञानरूपी दोनों पंखों को कुतरता जाता है, फिर व्यक्ति उड़ने योग्य नहीं रहता । मेरा तो एक पंख बचा है, दूसरा फूट निकलेगा किंतु जो मन को सत्ता असावधानी से देते जाते हैं और मन उनकी शक्तियों को क्षीण करता जाता है व कब गगनगामी होंगे और परमात्मा की यात्रा करेंगे ! यह आश्चर्य है !’
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2020, पृष्ठ संख्या 25 अंक 333
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