जीवन के सर्वांगीण विकास में धन, सत्ता या क्रिया का इतना महत्त्व नहीं है जितना उद्देश्य का है । आप कितने भी कर्म करो, अगर आपका उद्देश्य ऊँचा नहीं है तो उनका फल छोटा व नाशवान होगा और आपकी यात्रा नश्वर की तरफ होगी ।
एक होता है उद्देश्य सुन लेना, मान लेना । दूसरा है, उद्देश्य को जानकर निहाल हो जाना । परमात्मा ने हमें मनुष्य-शरीर किस उद्देश्य से दिया है, यह पहचानना और उस उद्देश्य की पूर्ति हेतु दृढ़ता से लग जाना ही मनुष्य जन्म का वास्तविक उद्देश्य है । यह मनुष्य शरीर हमें अपनी इच्छा से नहीं प्राप्त हुआ है ।
कबहुँक करि करुना नर देही । देत ईस बिनु हेतु सनेही ।। ‘बिना कारण ही स्नेह करने वाले ईश्वर कभी विरले ही दया करके जीव को मनुष्य का शरीर देते हैं ।’ (श्रीरामचरित. उ.कां. 43.3)
अगर हमने कोई अपना कल्पित उद्देश्य बना लिया पर वास्तविक उद्देश्य नहीं जाना तो क्या मिलेगा ? युवावस्था में हम न जाने कितनी-कितनी तरंगों पर नाचते हैं, ‘मैं वकील बनूँ, डॉक्टर बनूँ…’ फिर भी जीवन की तृप्ति, पूर्णता देखने में नहीं आती । उद्देश्य अगर पूर्ण का नहीं है तो पूर्ण सुख, पूर्ण शांति, पूर्ण संतोष, पूर्ण जीवन के दर्शन नहीं होते । कोई उद्देश्य मानकर उसकी पूर्ति में लग जाना उद्देश्यविहीन लोगों की अपेक्षा अच्छा है पर धनभागी वे हैं जो उद्देश्य जान लेते हैं । इसलिए हे मानव ! समय रहते चेत ! देर न कर, प्रमाद न कर अन्यथा विचार-विचार में जिंदगी यों ही पूरी हो जायेगी ।
मक्सदे जिंदगी (जीवन का उद्देश्य) न खो, यूँ हूँ उम्र गुजारकर । अक्ल को होश (विवेक) से जगा, होश को होशियार (विवेक को प्रखर बनाना) कर ।।
मनुष्य जीवन क्यों मिला है ? क्या करके क्या पाना चाहते हो ? इतनी विघ्न बाधाओं से घिरा हुआ मनुष्य-शरीर आखिर किस बात के लिए श्रेष्ठ माना जाता है ? जीवन का सही उद्देश्य क्या है ? आप हिन्दू, मुसलिम, पारसी, यहूदी… जो भी हो, सभी की जिगरी जान सच्चिदानंद आत्मा है । सभी का उद्देश्य है – सच्चिदानंद अर्थात् सदा रहने वाले ज्ञानस्वरूप को पाना ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2021, पृष्ठ संख्या 2 अंक 339
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