यह अभिमान न आना चाहिए कि ‘मैंने दूसरों का कोई उपकार किया है । ‘ ऐसा समझना चाहिए कि जो कुछ उन्हें दिया जाता है वह उनके लिए ही प्राप्त हुआ है । जैसे कोई डाकिया डाकघर से प्राप्त की गयी वस्तुएँ, पार्सल आदि लिखे पते पर लोगों को पहुँचाता है परंतु इसलिए उन पर कोई उपकार नहीं करता । हाँ, वह यह बात अनुभव करता है कि ‘मैं अपने कर्तव्य का पूरा पालन करके सरकार की प्रसन्नता प्राप्त कर सकूँगा ।’ इस प्रकार हम भी विश्वनियंता परमात्मा की प्रसन्नता के लिए आचरण करेंगे तो हम पर उसकी कृपा और प्रसन्नता होगी ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2020, पृष्ठ संख्या 17 अंक 333
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