तो तेरा जीवन रथ ठीक चलेगा – पूज्य बापू जी

तो तेरा जीवन रथ ठीक चलेगा – पूज्य बापू जी


एक नया-नया चेला शास्त्र पढ़ रहा था, गुरु लेटे-लेटे सुन रहे थे । गुरु गुरु थे (ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु थे) ।

तन तस्बीह मन मणियों, दिल दंबूरो जिन

से सुता ई सूंहनि, निंड इबादत जिन जी,

तंदूं जे तलब जूं, से दहदत सुर वजनि

जिनका तन माला हो गया, मन मनका हो गया और जिनका हृदय वीणा का तार बन गया, ऐसे पुरुष बैठे हैं तो क्या, लेटे हैं तो क्या, उनकी तलब (चाहत) के तार ईश्वरीय आलाप आलापते हैं । ऐसे पुरुषों के दर्शनमात्र से हमारे पाप-ताप कटते हैं, हृदय पवित्र होता है । धंधा नौकरी तो जिंदगीभर होता रहता है, असली धंधा तो ऐसे सद्गुरुओं के साथ कभी-कभी होता है ।

तो चेला पढ़ रहा था और घड़ी भी देख रहा था कि ‘अब महाराज मौन हों तो हम जायें । महाराज कहें कि ‘भई ! बंद करो’ तो हम खिसक जायें ।’

गुरु लेटे थे लेकिन गुरु का हृदय तो वही गुरु (अंतर्यामी, सर्वसाक्षी) था । चेला ने पढ़ने में जल्दबाजी की तो गुरु ने कहाः “देख बेटा ! एक शब्द छूट गया है ।”

“गुरुजी ! कौन सा शब्द छूट गया है ?”

“जो तू है वही शब्द छूट गया है ।”

“गुरु जी! समझ में नहीं आया ।”

“पन्ना फिर उलटा दे । फिर से पढ़, जो तू है वह शब्द छूट गया ।”

उसने पढ़ा तो देखा कि ‘उल्लू’ शब्द छूट गया था ।

गुरु बोलेः ‘तू उल्लू है ! जैसे उल्लू को सूरज नहीं दिखता है ऐसे ही तेरे को अपना कल्याण नहीं दिखता है । सत्संग में कितना कल्याण होता है संत के वचन सुनने से, हरि के लिए कुछ समय निकालने से कितना कल्याण होता है वह तू नहीं जानता । पेट के लिए तो सारी जिंदगी निकाली और दो घड़ी तू हरि के लिए नहीं निकालेगा तो तेरा और तेरे कुल में आने वालों का क्या होगा !”

“गुरुदेव ! माफ कीजिए !”

“मैं तो बेटा माफ करूँ पर तू अपने को माफ कर, अपना दुश्मन मत बन । चौसर और ताश खेलने में समय गँवाता है, फिल्म देखने और गपशप लगाने में समय गँवाता है और जब से शादी हुई तब से रात को चमड़ा चाटने में कितने घंटे चले गये उसके लिए तो कभी घड़ी नहीं देखी और अभी सत्संग में तेरी इक्कीस पीढ़ियाँ तर रही हैं तो तू घड़ी देख रहा है ! तो फिर तू उल्लू नहीं तो और क्या है ?”

मनुष्य था, आखिर संत के दर्शन का पुण्य था, उसने कहाः “गुरु जी! माफ कीजिये, ऐसी गलती दोबारा नहीं करूँगा ।”

“नहीं कैसे करेगा ? वह तो करेगी राँड़ ।”

“गुरु जी ! वह कौन ?”

“तेरी बुद्धिरूपी राँड़ । तू मन के पीछे-पीछे चलेगा तो तेरी बुद्धि भी मन के पीछे चलेगी । ऐसे काम नहीं बनेगी, बुद्धि के पीछे मन चले । बुद्धि की आज्ञा में मन चले और मन की आज्ञा में इन्द्रियाँ चलें तो तेरा रथ ठीक चलेगा । अगर इन्द्रियों के पीछे मन चला और मन के पीछे बुद्धि गयी तो खड्डे में गिरायेगी ।

बुद्धि को बलवान बनाने के लिए प्रतिदिन सुबह नींद में उठते ही 5-7 मिनट अपनी बुद्धि को बुद्धिदाता परमेश्वर में शांत कर दो । ‘मैं परमेश्वर का हूँ, वे मेरे हैं । मैं परमेश्वर की जाति का हूँ, मेरा उनके साथ नित्य संबंध है । मुझे उनसे कुछ नश्वर नहीं चाहिए । मैं उनसे उन्हीं की कृपा चाहता हूँ । ॐ शांति…..’ इस प्रकार परमात्म-विश्रान्ति में डूब जाओ । फिर भ्रूमध्य (दोनों भौहों के बीच) में ध्यान करो । श्वासोच्छ्वास की मानसिक रूप से भगवन्नाम-जपसहित गिनती (श्वास अंदर जाय तो ‘ॐ’, बाहर आये तो 1, श्वास अंदर जाये तो ‘शांति’ या ‘आनंद’ अथवा ‘माधुर्य’, बाहर आये तो ‘2’… इस प्रकार की गिनती) करते हुए शांत होते जाओ । फिर ‘आज क्या-क्या करना है, घर में बीमारी या समस्याएँ किस कारण हैं, हमारे पुण्य कैसे बढ़ें, हमारे हृदय में शांति कैसे रहे और जीवन की शाम हो जाये उसके पहले जीवनदाता से कैसे मुलाकात हो ?’ ऐसा 2 मिनट सोचो और फिर भगवान को प्रेम करो, प्रार्थना करो और हँसकर उठो ।  प्रभात सँवार ली तो दिन सुधर जायेगा ।”

गुरु की इस सुंदर सीख को समझकर नया नवेला चेला सावधान हो गया और सत्संग और विवेक रूपी दो निर्मल नेत्रों का आश्रय ले के ज्ञानदृष्टि से परिपक्व होने के रास्ते चल पड़ा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2021, पृष्ठ संख्या 18, 19 अंक 343

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