एक महिला संत के पास गयी और बोली ″बाबा जी ! मेरे पति मर गये । मैं उनके बिना नहीं जी सकती । मैं जरा सी आँख बन्द करती हूँ तो मुझे वे दिखते हैं । मेरे तन में, मन में, जीवन में वे छा गये हैं । अब मेरे को कुछ अच्छा नहीं लगता । मेरे पति का कल्याण भी हो ऐसा भी करो और मेरे को भी कुछ मिल जाये कल्याण का मार्ग । लेकिन मेरे पति का ध्यान मत छुड़ाना ।″
संतः ″नहीं छुड़ाऊँगा बेटी ! तेरे पति तुझे दिखता है तो भावना कर कि पति भगवान की तरफ जा रहे हैं । ऐसा रोज अभ्यास कर ।″
माई 2-5 दिन का अभ्यास हुआ । करके संत के पास गयी तो उन्होंने पूछाः ″अब क्या लगता है बेटी ?″
″हाँ बाबा जी ! भगवान की तरफ मेरे पति सचमुच जाते हैं ऐसा लगता है ।″
संत ने फिर कहाः ″बेटी ! अब ऐसी भावना करना कि ‘भगवान अपनी बाँहें पसार रहे हैं । अब फिर पति उनके चरणों में जाते हैं प्रणाम के लिए ।’ प्रणाम करते-करते तेरे पति एक दिन भगवान में समा जायेंगे ।″
″अच्छा बाबा जी ! उनको भगवान मिल जायेंगे ?″
″हाँ, मिल जायेंगे ।″
माई भावना करने लगी कि ‘पति भगवान की तरफ जा रहे हैं । हाँ, हाँ ! जा रहे हैं… भगवान को यह मिले… मिले… मिले….!’ और थोड़े ही दिनों में उसकी कल्पना साकार हुई ।
पति की आकृति जो प्रेत हो के भटकने वाली थी वह भगवान में मिलकर अदृश्य हो गयी और उस माई के चित्त में भगवदाकार वृत्ति बन गयी ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2021, पृष्ठ संख्या 21. अंक 321
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