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इसको दूर करो तो सब दोष दूर


सुखी जीवन जीने के लिए एक बड़ी और सारभूत बात है । यदि यह ठीक से समझ ली और दृढ़ता से पकड़ ली तो किसी भी दुःख की ताकत नहीं कि आपको छू तक सके ।

मानव का अपना बनाया हुआ यह महान दोष है कि जिनसे अपना कोई संबंध नहीं है, जो किसी प्रकार भी अपने नहीं हो सकते उन मन, बुद्धि और इन्द्रियों के समूहरूप शरीर को और उससे संबंधित पदार्थों को अपना मान लिया है तथा जिन पर किसी प्रकार भी विश्वास नहीं करना चाहिए उन पर विश्वास कर लिया है । जिन परम सुहृद परमेश्वर पर विश्वास करना चाहिए, जो सब प्रकार से विश्वास के योग्य हैं और सजातीय (जीवात्मा परमात्मा का अविभाज्य स्वरूप होने से उसकी और परमात्मा की जाति समान है ।) होने के नाते जो सचमुच सब प्रकार से अपने हैं, उन पर न तो विश्वास करता है न उन्हें अपना मानता है और न वर्तमान में उनकी आवश्यकता का ही अनुभव करता है । यही एक ऐसा महान दोष है जिससे सब प्रकार के बड़े-बड़े दोष उत्पन्न हुए हैं और होते रहते हैं । अतः इस दोष का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए ।

यह दोष मनुष्य का अपना बनाया हुआ है इसलिए स्वयं ही इसे दूर करना पड़ेगा । अपने बनाये हुए दोष को दूर करने में कोई भी साधक असमर्थ नहीं हो सकता । इस पर भी यदि उसे अपनी कमजोरी का भान हो, यदि वह अपने को सचमुच असमर्थ समझता हो तो उसे निर्बलता के दुःख से दुःखी होकर उस सर्वसमर्थ प्रभु की शरण में जाना चाहिए जो निर्बलों के बल हैं, पतितों को पवित्र बनाने वाले और दीनबंधु हैं । निर्बलता के दुःख से दुःखी साधक को उस निर्बलता का नाश होने से पहले चैन कैसे पड़ सकता है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2021,  पृष्ठ संख्या 34 अंक 345

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कैसा भी बिखरा हुआ जीवन हो, सँवर जायेगा – पूज्य बापू जी


अगर अशांति मिटानी है तो दोनों नथुनों से श्वास लें और ‘ॐ शांतिः… शांतिः’ जप करें और फिर फूँक मारके अशांति को बाहर फेंक दें । जब तारे नहीं दिखते हों, चन्द्रमा नहीं दिखता हो और सूरज अभी आने वाले हों तो यह समय मंत्रसिद्धि योग का है, मनोकामना-सिद्धि योग का है । इस काल में किया हुआ यह प्रयोग अशांति को भगाने में बड़ी मदद देगा । अगर निरोगता प्राप्त करनी है तो आरोग्यता के भाव से श्वास भरें और आरोग्य का मंत्र नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ।। जपकर ‘रोग गया’ ऐसा भाव करके फूँक मारें । ऐसा 10 बार करें । कैसा भी रोग, कैसा भी अशांत और कैसा भी बिखरा हुआ जीवन हो, सँवर जायेगा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 33 अंक 345

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श्राद्धकर्म व उसके पीछे के सूक्ष्म रहस्य – पूज्य बापूजी


जिन पूर्वजों ने हमें अपना सर्वस्व देकर विदाई ली, उनकी सद्गति हो ऐसा सत्सुमिरन करने का अवसर यानी ‘श्राद्धपक्ष’ ।

श्राद्ध पक्ष का लम्बा पर्व मनुष्य को याद दिलाता है कि ‘यहाँ चाहे जितनी विजय प्राप्त हो, प्रसिद्धि प्राप्त हो परंतु परदादा के दादा, दादा के दादा, उनके दादा चल बसे, अपने दादा भी चल बसे और अपने पिता जी भी गये या जाने की तैयारी में  हैं तो हमें भी जाना है ।’

श्राद्ध हेतु आवश्यक बातें

जिनका श्राद्ध करना है, सुबह उनका मानसिक आवाहन करना चाहिए । और जिस ब्राह्मण को श्राद्ध का भोजन कराना है उसको एक दिन पहले न्योता दे आना चाहिए ताकि वह श्राद्ध के पूर्व दिन संयम से रहे, पति-पत्नी के विकारी व्यवहार से अपने को बचा ले । फिर श्राद्ध का भोजन खिलाते समय-

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ।

नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः ।। (अग्नि पुराणः 117.22)

यह श्लोक बोलकर देवताओं को, पितरों को, महायोगियों को तथा स्वधा और स्वाहा देवियों को नमस्कार किया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि ‘मेरे पिता को, माता को…. (जिनका भी श्राद्ध करते हैं उनको) मेरे श्राद्ध का सत्त्व पहुँचे, वे सुखी व प्रसन्न रहें ।’

श्राद्ध के निमित्त गीता के 7वें अध्याय का माहात्म्य  पढ़कर पाठ कर लें और उसका पुण्य जिनका श्राद्ध करते हैं उनको अर्पण कर दें, इससे भी श्राद्धकर्म सुखदायी और साफल्यदायी होता है ।

श्राद्ध करने से क्या लाभ होता है ?

आप श्राद्ध करते हो तो-

  1. आपको भी पक्का होता है कि ‘हम मरेंगे तब हमारा भी कोई श्राद्ध करेगा परंतु हम वास्तव में मरते नहीं, हमारा शरीर छूटता है ।’ तो आत्मा की अमरता का, शरीर के मरने के बाद भी हमारा अस्तित्व रहता है इसका आपको पुष्टीकरण होता है ।
  2. देवताओं, पितरों, योगियों और स्वधा-स्वाहा देवियों के लिए सद्भाव होता है ।
  3. भगवद्गीता का माहात्म्य पढ़ते हैं, जिससे पता चलता है कि पुत्रों द्वारा पिता के लिए किया हुआ सत्कर्म पिता की उन्नति करता है और पिता की शुभकामना से पुत्र-परिवार में अच्छी आत्माएँ आती हैं ।

ब्रह्मा जी ने सृष्टि करने के बाद देखा कि ‘जीव को सुख-सुविधाएँ दीं फिर भी वह दुःखी है’ तो उन्होंने यह विधान किया कि एक-दूसरे का पोषण करो । आप देवताओं-पितरों का पोषण करो, देवता-पितर आपका पोषण करेंगे । आप सूर्य को अर्घ्य देते हैं, आपके अर्घ्य के सद्भाव से सूर्यदेव पुष्ट होते हैं और यह पुष्टि विरोधियों, असुरों के आगे सूर्य को विजेता बनाती है । जैसे राम जी को विजेता बनाने में बंदर, गिलहरी भी काम आये ऐसे ही सूर्य को अर्घ्य देते हैं तो सूर्य विजयपूर्वक अपना दैवी कार्य करते हैं, आप पर प्रसन्न होते हैं और अपनी तरफ से आपको भी पुष्ट करते हैं ।

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयतन्तु वः ।

परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ।।

‘तुम इस यज्ञ  (ईश्वरप्राप्ति के लिए किये जाने वाले कर्मों) के द्वारा देवताओं को तृप्त करो और (उनसे तृप्त हुए ) वे देवगण तुम्हें तृप्त करें । इस प्रकार निःस्वार्थ भाव से एक-दूसरे को तृप्त या उन्नत करते हुए तुम परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे ।’ (गीताः 3.11)

देवताओं का हम पोषण करें तो वे सबल होते हैं और सबल देवता वर्षा करने, प्रेरणा देने, हमारी इन्द्रियों को पुष्ट करने में लगते हैं । इससे सबका मंगल होता है ।

(श्राद्ध से सम्बंधित विस्तृत जानकारी हेतु पढ़ें आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘श्राद्ध-महिमा )

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 32,33 अंक 345

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