Monthly Archives: May 2022

ये पाँच मंगलकारी बातें आज से ही जीवन में लाओ – पूज्य बापू जी


वाणी में विनय, हृदय में धैर्य, शरीर में वीर्य, हाथ में सत्कर्म व दान एवं मन में प्रभु का ज्ञान और भगवन्नाम हो । आप लोग इन 5 बातों को पकड़ लो । मैं हाथ जोड़ के प्रार्थना करता हूँ, आज से पक्का करो कि इन 5 बातों को जीवन में लायेंगे ।

1 आपकी वाणी में विनय हो

ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय ।

औरन को शीतल करे, आपहूँ शीतल होय ।।

जिसकी वाणी और व्यवहार में तू-तड़ाका है, उद्धतपना है, अभद्रता है उसका किया-कराया चौपट हो जाता है । यह मिटाना चाहते हो तो मधुर व्यवहार नाम की पुस्तक ( यह पुस्तक आश्रमों सत्साहित्य सेवा केन्द्रों से व समितियों से प्राप्त हो सकती है । ) पढ़ा करो रोज 2-4 पन्ने । वाणी में भगवान का नाम भी हो ।

2 हृदय में धैर्य हो ।

जरा-जरा सी बात में घबरा न जाओ, जरा-जरा सी बात में विह्वल न हो जाओ, जरा-जरा सी बात में आपे से बाहर न हो जाओ । धीरज सबका मित्र है ।

बहुत गयी थोड़ी रही, व्याकुल मन मत हो ।

धीरज सबका मित्र है, करी कमाई मत खो ।।

3 शरीर में वीर्य, बल व संयम हो… किसी लड़की को, लड़के को, किसी की पत्नी या किसी के पति को गलत नज़र से देखने की लोगों की आजकल नीच वृत्ति बढ़ गयी है । शरीर में वीर्य इन्द्रिय-संयम से आयेगा, क्या खाना-क्या न खाना यह ध्यान रखने से आयेगा ।

4 हाथ में दान-सत्कर्म हो । धन का दान, अन्न का दान, वस्तु का दान… इतना ही नहीं सेवा करते हैं, सत्कर्म करते हैं तो वह भी तो दान है – ‘श्रमदान’ ।

5 मन में, अंतःकरण में उस प्यारे प्रभु की स्मृति और नाम हो, उसका ज्ञान हो, इससे आपका तो मंगल होगा, आपके सम्पर्क में आने वाले का भी मंगल हुए बिना नहीं रहेगा ।

…मंङ्गलायतनं हरिः ।

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये…

सब मंगलों का मंगल है भगवान की स्मृति । मेटत कठिन कुअंक भाल के… उस प्यारे की स्मृति भाग्य के कुअंक मिटा देती है । और

तुलसी अपने राम को रीझ भजो या खीज ।

भूमि फेंके उगेंगे उलटे सीधे बीज ।।

खेत में बीज कैसे भी फेंको – नाराज होकर फेंको, राजी हो के फेंको, जैसे भी फेंकोगे वे उगेंगे । ऐसे ही भगवान का प्रेम से, नाराजगी से जैसे भी सुमिरन करोगे, मंगल ही मंगल होगा ।

…मंङ्गलानां च मंङ्गलम् ।

भगवत्सुमिरन से बड़ा मंगल होगा, तेजी से मंगल होगा । और जो दोष हैं वे सामने लाकर ईश्वर को, गुरु को प्रार्थना करो कि ‘इन दोषों से अब हम अपने को बचायेंगे ईश्वर की, गुरु की कृपा मान के ।’ समझो काम-विकार है तो काम-विकार का सुमिरन करके ‘ॐॐॐॐ अर्यमायै नमः, ॐ अर्यमायै नमः, ॐ अर्यमायै नमः…’ का जप करते हुए भ्रूमध्य में – जहाँ शिवनेत्र हैं वहाँ ध्यान करो, काम की वासना जल जायेगी । क्रोध का विकार है तो ‘ॐ शांति… प्रभु जी शांति… धैर्य…’ ऐसा चिंतन करो ।

तुम कितने भी गिरे हुए हो, बिगड़े हो, चिंता मत करो, इन 5 चीजों का आदर करोगे तो तुम आदरणीय हो जाओगे । तुम्हारा तो मंगल होगा, तुम्हारे को जो प्रेम से देखेंगे-सुनेंगे उनका भी मंगल, कल्याण हो जायेगा । ये 5 चीजें आज पकड़ लो और आज से शुरु कर लो थोड़ी-बहुत, सुमिरन तो कर ही सकते हो, धैर्य तो कर ही सकते हो । इससे तुम्हारा तो मंगल होगा, तुम्हारे को छूकर जो हवाएँ जायेंगी न, वे जहाँ जायेंगी वहाँ के लोगों को, घर-परिवार को पावन कर देंगी क्योंकि भगवान का सुमिरन करना और संयमी, वीर्यवान होना मंगलों का मंगल है ।

स तरति लोकांस्तारयति ।

‘वह तर जाता है और दूसरों को भी तारता है ।’ ( नारदभक्ति सूत्रः 50 )

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2022, पृष्ठ संख्या 4, 5 अंक 353

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गृहस्थ में रहने की कला – पूज्य बापू जी


( संत कबीर जी जयंतीः 14 जून 2022 )

एक बार संत कबीर जी से गोरखनाथ जी ने पूछाः ″आपने तो सफेद कपड़ा पहना है, आपको पत्नी है, बेटी है, बेटा भी है, आप तो गृहस्थी हैं फिर आप महान संत कैसे ?″

कबीर जी बोलेः ″भाई ! हम महान नहीं हैं, हम तो कुछ नहीं हैं ।″

″नहीं, आप मुझे बताओ ।″

तो कबीर जी उनको अपने घर ले गये । दोपहर के 2 बजे का समय था, पत्नी को बोलाः ″लोई ! दीया लाओ, मैं अब जरा ताना बुनूँ धूप में ।″

ऐसा नहीं कि घर में कमरे के अंदर । पत्नी लोई दीया पकड़ के खड़ी हो गयी धूप में और पति ताना बुन रहे हैं । गोरखनाथ जी सोचते हैं- ‘कबीर तो पागल हैं पर लोई भी पागल है ! माथे पर अभी दोपहर का सूर्य तप रहा है फिर दीये की क्या जरूरत है !’

इतने में विद्यालय से कबीर जी की बेटी कमाली आ गयी । कमाली माँ के हाथ से दीया लेकर स्वयं दीया ले के खड़ी हो गयी । वह नहीं पूछती है कि ‘अम्मा ! यह क्यों कर रही है ?’ माँ जो कर रही है न, बस माँ को काम से छुड़ा के स्वयं ने सेवा ले ली ।

इतने में बेटा कमाल आ गया । देखा कि बहन के हाथ में दीया है, ‘अरे मेरी कुँवारी बहन बेचारी कष्ट सहन कर रही है !’ बोलाः ″नहीं बहन ! तू जा के भजन कर ।″ कमाल ने दीया ले लिया ।

गोरखनाथ जी देखते रह गये कि ‘यहाँ एक पागल नहीं है, माई भी पागल है, भाई भी पागल, बेटी भी पागल, बेटा भी पागल ! ये तो चारों पागल हैं ।

गोरखनाथ जी कबीर जी को बोलते हैं- ″मेरे को आप बताओ कि आप घर में कैसे रहते हैं ? आप बोलते हैं कि हम अकेले हैं घर में, आप तो चार हैं !″

कबीर जी ने कहाः ″महाराज ! चार कैसे, हम एक ही हैं ।″

बोलेः ″एक कैसे ? तुम्हारी पत्नी है, बेटा है, बेटी है ।″

″महाराज ! बेटा-बेटी, पत्नी और मैं – हम चार दिखते हैं परंतु हम सब एकमत हैं । जहाँ सबका एकमत होता है वहाँ सिद्धान्त, सफलता आ जाती है । जैसे तरंगे भिन्न-भिन्न दिखती हैं परंतु गहराई में शांत जल है, ऐसे ही ऊपर-ऊपर से भिन्न-भिन्न स्वभाव दिखते हैं परंतु अंदर से वही चैतन्य है । यह अद्वैत ज्ञान है । इससे सारे सद्गुण पैदा होते हैं । विश्वभर की शंकाओं का समाधान केवल वेदांत के ज्ञान से ही आता है । इसलिए अद्वैत ज्ञान, एकात्मवाद का जो प्रकाश है वह जीवन में सुख-शांति देता है । हम घर में भी साधु हैं । एकमत हो के बैठते हैं ।″

कबीर जी की ऐसी अद्वैतनिष्ठा देखकर गोरखनाथ जी बड़े प्रसन्न हुए कि ″आ हा ! गृहस्थी हों तो ऐसे हों ।″

ऐसा कोई आनंद और सामर्थ्य नहीं है जो अद्वैत की भावना से पैदा न हो । जिन-जिन व्यक्तियों के जीवन में जितना-जितना अद्वैत व्यवहार, अद्वैत ज्ञान है उन-उन व्यक्तियों के जीवन में सुख-शांति, मधुरता व प्रसन्नता है और सफलता है और प्रकृति हर पग पर उनको सहायता पहुँचाती है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2022, पृष्ठ संख्या 11 अंक 353

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आयुर्वेद का अद्भुत प्राकट्य व एलोपैथी की शुरुआत – पूज्य बापू जी


ईसा के 460 वर्ष पूर्व ग्रीस देश में जन्मा हिप्पोक्रेट्स नाम का एक व्यक्ति औषधियों का रिसर्च करने बैठा । मिस्टर हिप्पोक्रेट्स को शाबाश है, आरोग्य के लिए प्रयत्न कि या और खोजें की । उसे एलोपैथी का जनक कहा गया । हिप्पोक्रेट्स ने इस चिकित्सा-पद्धति की खोज अपने दोस्तों के साथ, अपनी सहेलियों के साथ उठते-बैठते, खाते-पीते की होगी, अन्यथा ऋषि पद्धति से ध्यानयोग का आश्रय लेकर खोज करते तो इस पद्धति की दवाइयों में इतने दुष्परिणाम नहीं रहते । पाश्चात्य कल्चर में मांसाहार करते हैं, दारू भी पीते हैं, बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड, बनाते हैं और खोज भी करते हैं, उनको थैंक्स है लेकिन आयुर्वेद का प्राकट्य कैसे हुआ ?

भगवान ब्रह्मा जी, जो सृष्टि के कर्ता हैं, विश्व के गोप्ता ( गोपनीय रहस्यों के जानकार ) हैं और सारे भुवनों के रहस्यों को जानते हैं, उन्होंने समाधिस्थ होकर हमारे स्वास्थ्य के बारे में चिंतन किया और आरोग्य का पुनः प्राकट्य करने के लिए सच्चिदानंदरूप परमेश्वर से एक हो के आयुर्वेद प्रकट किया । मांसाहार तो क्या, शाकाहार भी क्या, ब्रह्मा जी तो ब्रह्मा जी हैं… ध्यान ही आत्मा का वास्तविक भोजन है यह वे भली-भाँति जानते हैं । धन्यवाद दे दो हिप्पोक्रेट्स को लेकिन ब्रह्मदेव तो भगवद् रूप हैं, सृष्टि के कर्ता हैं, उन्होंने समाधि-अवस्था में आयुर्वेद की खोज की, उनको तो खूब-खूब प्रणाम है ! फिर इस आयुर्वेद के ज्ञान को बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड वालों ने आगे नहीं बढ़ाया, ऋषि मुनियों ने आगे बढ़ाया ।

भगवान शिवजी के ससुर दक्ष प्रजापति ने ब्रह्मा जी से आयुर्वेद का ज्ञान लिया । उस आयुर्वेद के ज्ञान को अश्विनी कुमार, जो एकदम संयमी, सदाचारी, बुद्धिमान, ग्रहणशक्ति के धनी, ब्रह्मचर्य-व्रत में पक्के थे और विषय-विकारों से बचे हुए थे, उन्होंने झेला । उनसे देवराज इन्द्र ने और इन्द्र से महर्षि भरद्वाज जी तथा धन्वंतरि जी ने यह ज्ञान पाया । भरद्वाज जी ने पृथ्वी पर आ के अन्य ऋषियों को सुनाया । भरद्वाज जी के शिष्य ब्रह्मर्षि आत्रेय पुनर्वसु हुए और उनके अग्निवेश आदि 6 शिष्य हुए । उनमें प्रमुख अग्निवेश जी ने गुरु-उपदेश को एक शास्त्र के रूप में सूत्ररूप से ग्रंथित किया, जो ‘अग्निवेश तंत्र’ नाम से जाना गया । इस ग्रंथ का आचार्य चरक ने संस्कार कर संग्रह व भाष्य लिखा, जिससे उसका नाम ‘चरक संहिता’ पड़ा । कालांतर में आचार्य दृढ़बल ने चरक संहिता का विस्तार कर उसे सुसमृद्ध बनाया ।

भगवान धन्वंतरि जी ने आयुर्वेद का ज्ञान अपने शिष्य सुश्रुत आदि को दिया । उनमें प्रमुख शिष्य आचार्य सुश्रुत ने उस ज्ञान का श्रवण कर संहिता के रूप में संकलित किया, जो ‘सुश्रुत संहिता’ के नाम से आज भी सुविख्यात है ।

इन परम्पराओं में अन्य ऋषि-मुनियों ने भी इस प्रकार के अनेक ग्रंथ रचे । इस प्रकार ब्रह्मा जी से ऋषि परम्परा द्वारा आयुर्वेद मानवमात्र के कल्याणार्थ प्रचलित हुआ ।

अभी विदेशी भाषा और विदेशी दवाओं का जो आकर्षण लोगों में देखने को मिल रहा है, यह इश्तहारबाजी व प्रचार का ही प्रभाव है । एलोपैथी के इलाज से दुष्प्रभाव खूब भयंकर जानलेवा होते हैं । एलोपैथी का कुप्रभाव ऐसा है कि अभी तक हमारे जैसे आयुर्वेद का उपयोग नहीं करते तो चल पड़ते ( शरीर छूट जाता ) इसलिए हम बड़े भाग्यशाली हैं कि हमारी भारतीय संस्कृति में भगवान ब्रह्मा जी का, धन्वंतरि जी का, और भी एक-से-एक ऋषि-मुनियों की परम्परा वाले आयुर्वेद का प्रसाद हमको मिल रहा है, जिससे हम और लोगों की अपेक्षा ज्यादा स्वस्थ और ज्यादा सत्य के करीब हो जाते हैं ।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2022, पृष्ठ संख्या 31, 32 अंक 353

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