All posts by GuruNishtha

स्वस्तिक का महत्त्व क्यों ?



स्वस्तिक अत्यंत प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल प्रतीक
माना जाता रहा है । इसीलिए प्रत्येक शुभ और कल्याणकारी कार्य में
सर्वप्रथम स्वस्तिक का चिह्न अंकित करने का आदिकाल से ही नियम
है । स्वस्तिक शब्द मूलभूत सू और अस धातु से बना है । सु का अर्थ
है अच्छा, कल्याणकारी, मंगलमय । अस का अर्थ है – अस्तित्व, सत्ता ।
तो स्वस्तिक माने कल्याण की सत्ता, मांगल्य का अस्तित्व ।
स्वस्तिक शांति, समृद्धि एवं सौभाग्य का प्रतीक है । सनातन
संस्कृति की परम्परा के अनुसार पूजन के अवसरों पर, दीपावली पर्व पर,
बहीखाता पूजन में तथा विवाह, नवजात शिशु की छठी तथा अन्य शुभ
प्रसंगों में व घर तथा मंदिरों के प्रवेशद्वार पर स्वस्तिक का चिह्न
कुमकुम से बनाया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि ‘हे प्रभु ! हमारा
कार्य निर्विघ्न सफल हो और हमारे घर में जो अऩ्न, वस्त्र, वैभव आदि
आयें वे पवित्र हों ।’
किसी भी मंगल कार्य के प्रारम्भ में यह स्वस्ति मंत्र बोला जाता
हैः
स्वस्ति नऽ इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्षर्योऽरिष्टनेमिः स्वस्ति नौ बृहस्पतिर्दधातु ।।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।
महान कीर्ति वाले इन्द्रदेव ! हमारा कल्याण कीजिये, विश्व के
ज्ञानस्वरूप पूषादेव (सूर्यदेव) हमारा कल्याण कीजिए, जिनका हथियार
अटूट है ऐसे गरुड़देव ! हमारा मंगल कीजिये, बृहस्पति देव जी हमारे
घर में कल्याण की प्रतिष्ठा कीजिये ।’ (यजुर्वेदः 25.19)
स्वस्तिक का आकृति विज्ञान

स्वस्तिक हिन्दुओं का प्राचीन धर्म-प्रतीक है । यह आकृति ऋषि-
मुनियों ने अति प्राचीनकाल में निर्मित की थी । एकमेव अद्वितीय ब्रह्म
ही विश्वरूप में फैला है यह बात स्वस्तिक की खड़ी और आड़ी रेखाएँ
समझाती हैं । स्वस्तिक की खड़ी रेखा ज्योतिर्लिंग का सूचन करती है
और आड़ी रेखा विश्व का विस्तार बताती है । स्वस्तिक की चार भुजाएँ
यानी भगवान श्रीविष्णु के चार हाथ । भगवान विष्णु अपने चार हाथों से
दिशाओँ का पालन करते हैं । देवताओं की शक्ति और मनुष्य की
मंगलमय कामनाएँ – इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक यानी
‘स्वस्तिक’ !
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार भी स्वस्तिक एक मांगलिक चिह्न है ।
भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के चरणों में भी स्वस्तिक चिह्न अंकित था

ब्रह्मवेत्ता संत पूज्य बापू जी अपने सत्संगों में बताते हैं कि
”स्वस्तिक समृद्धि व अच्छे भावी का सूचक है । इसके दर्शन से
जीवनशक्ति बढ़ती है । स्वस्तिक के चित्र को पलकें गिराये बिना
एकटक निहारते हुए त्राटक का अभ्यास करके जीवनशक्ति का विकास
किया जा सकता है । आपके घर की दीवारों पर स्वस्तिक का चिह्न
अथवा ॐ का चित्र लगा दीजिए । उसको देखने से भी आपकी
आध्यात्मिक आभा बढ़ेगी और घर में सात्त्विकता बनी रहेगी ।”
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2023, पृष्ठ संख्या 22 अंक 363
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

विजातीय द्रव्यों को करें दूर पायें स्वास्थ्य लाभ भरपूर – पूज्य बापूजी



पेट साफ करने का अक्सीर इलाज यह है कि रात्रि को सोने से
पहले त्रिफला टेबलेट हलके गुनगुने पानी से लें, नहीं तो ऐसे ही चूस लें
– जिसको जितनी, जैसी अनुकूल पड़ें । मस्से (बवासीर) हों, पेट साफ
नहीं हो रहा हो तो रात को 2 टेबलेट ले लीं और फिर सुबह 2 ले लीं ।
आधे पौने घंटे में तो वे पेट की सफाई करके मस्से के जो भी दोष हैं
उन्हें कुछ ही दिन में साफ कर देंगी । किंतु केवल मस्से मिटाने के लिए
त्रिफला नहीं है, यह तो हमारे शरीर के समस्त हानिकारक द्रव्यों को ढूँढ
के निकाल देता है ।
एक मंत्री आता था मेरे पास । उसने एक बार मेरे से पूछाः “मैं
आपको कितने साल का लगता हूँ ?”
मैंने 40 से 50 के बीच का अनुमान लगाया ।
वह बोलाः “नहीं, मैं 65 साल का हूँ लेकिन लगता हूँ न 40 – 50
का !”
मैंने कहाः “इसका क्या कारण है ?”
बोलाः “मैं रोज त्रिफला लेता हूँ ।”
तो त्रिफला का उसको बड़ा अनुभव था । मेरे को भी बड़ा अनुभव
है । मेरे को मस्से हो गये थे तो त्रिफला लिया तो सब गायब हो गये ।
अब भी मस्से-वस्से जैसा कुछ उभरता है तो त्रिफला ले लेता हूँ तो दूसरे
दिन सब गायब ! तो ऋषि प्रसाद वालों को यह कुंजी मिल गयी । किसी
को मस्से हों तो बस, त्रिफला दे दो और यह प्रयोग बता दो, वह ठीक हो
जायेगा ।

त्रिफला से पेट की समस्त तकलीफें दूर हो जाती हैं । आलू-वालू
खाने से आगे चल के जो भयंकर टयूमर, हार्ट अटैक, ब्रेन टयूमर होने
वाला होता है वह भी हमारे सम्पर्कवालों को नहीं होगा क्योंकि मैंने उन्हें
त्रिफला की कुंजी दे दी है ।
मैंने भी तो आलू खाये हुए थे लेकिन मैंने आलू के दुष्प्रभाव को दूर
करने के लिए अंग्रेजी दवाइयों के साइड इफेक्ट्स को भगाने के लिए
त्रिफला रसायन के 40 दिन के 2 कल्प किये थे । अच्छा हुआ साइड
इफेक्ट हुआ एलोपैथी से, उसे दूर करने के लिए मैंने त्रिफला रसायन का
प्रयोग किया तो उससे मेरा सारा शरीर एकदम धुल गया, शुद्ध हो गया

(त्रिफला चूर्ण, त्रिफला रसायन (सादा व स्पेशल), त्रिफला टेबलेट –
ये संत श्री आशाराम जी आश्रमों में सत्साहित्य सेवा केन्द्रों से तथा
समितियों से प्राप्त हो सकते हैं ।)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2023, पृष्ठ संख्या 31 अंक 363
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सज्जनों की सक्रियता ने किया साजिश को विफल



चैतन्य महाप्रभु के एक शिष्य श्रीनिवास पंडित के घर भगवन्नाम-
संकीर्तन हमेशा दरवाजा बंद करके ही होता था । ईर्ष्या व द्वेष से भरे
कुछ लोग वहाँ आते और किवाड़ों को बंद देखकर भगवन्नाम-संकीर्तन
की निंदा करते हुए लौट जाते । उनमें गोपाल चापाल नाम का एक
व्यक्ति था । उसने इन भक्तों की झूठी बदनामी करने के लिए एक
षड्यंत्र रचा ।
एक रात्रि में जब श्रीनिवास पंडित के घर में संकीर्तन हो रहा था
तब चापाल उनके घर पहुँचा और उसने द्वार के सामने थोड़ी सी जगह
लीपकर वहॉँ चंडी पूजा की सारी सामग्री रख दी । शराब व मांस का
एक-एक पात्र रख के चला गया । दूसरे दिन जब भगवन्नाम-संकीर्तन
करके भक्त निकले तो यह सामग्री देख आश्चर्य से भर गये ।
उसी समय दुर्जनों-निंदकों का भी दल आ गया और वे एक दूसरे
को कहने लगेः “हम तो पहले ही जानते थे कि ये रात्रि में किवाड़ बंद
करके और स्त्रियों को साथ ले के जोरृ-जोर से हरिनाम की ध्वनि करते
हैं और भीतर ही भीतर वाममार्ग की पद्धति से भैरवी का पूजन करते हैं
। यह सामने चंडी पूजा की सामग्री प्रत्यक्ष ही देख लो !”
भक्तों ने उस सामान को उठा के दूर फेंक दिया और उस स्थान
को गाय के गोबर से लीपा तथा गंगाजल छिड़क के शुद्ध कर लिया ।
तत्कालीन समाज के सज्जन लोग बड़े सजग, सूझबूझ-सम्पन्न
और सुसंगठित थे । वे समझ गये कि यह किसी धूर्त की करतूत है । वे
जानते थे कि दुर्जनों द्वारा सज्जनों-भक्तों का किया जा रहा कुप्रचार
तथा साजिशें मूक बनकर सहन करते हैं तो वे बढ़ती ही जाती हैं और
इससे बहुत बड़े स्तर पर समाज की हानि होती है । अतः सज्जनों का

सजग व सक्रिय रहना, सत्य के समर्थन में सुसंगठित होकर आवाज
उठाना और संगठन बल बनाये रखना बहुत जरूरी है । उन्होंने एकत्र
होकर विचार विमर्श किया और ढिंढोर पिटवा दिया कि ‘दोबारा ऐसा हुआ
तो उस धूर्त की खबर ली जायेगी ?”
चापाल दुबक के बैठ गया । उसने सोचा, ‘अच्छा हुआ मैं बच गया
।! अन्यथा तो मेरी ही बुरी स्थिति हो जाती ।’ फिर क्या था, ऐसी
हरकत दोबारा करने का विचार भी कभी उसके मन में नहीं आया ।
इस घटना से समाज में श्रीनिवास पंडित की अपकीर्ति होने के
बजाय और अधिक कीर्ति फैल गयी । सज्जनों का मनोबल बढ़ गया,
दुर्जनों का मनोबल घट गया लेकिन भक्त श्रीनिवास पंडित इन सबसे
अप्रभावित थे । वे तो अपने भगवन्नाम-संकीर्तन में, भग्वद्ज्ञान,
भगवद्रस, भगवच्चिंतन में सराबोर रहते थे ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2023, पृष्ठ संख्या 8 अंक 363
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ