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महापुरुष के दर्शन का चमत्कार


पहले मैं कामतृप्ति में ही जीवन का आनंद मानता था । मेरी दो शादियाँ हुईं परन्तु दोनों पत्नियों के देहान्त के कारण मैं 55 वर्ष की उम्र में 18 वर्ष की लड़की से शादी करने को तैयार हो गया । शादी से पूर्व मैं पूज्यपाद स्वामी श्री लीलाशाह जी महाराज का आशीर्वाद लेने डीसा आश्रम में जा पहुँचा । आश्रम में वे तो नहीं मिले मगर जो महापुरुष मिले उनके दर्शनमात्र से न जाने क्या हुआ कि मेरा सारा भविष्य ही बदल गया । उनके योगयुक्त विशाल नेत्रों में न जाने कैसा तेज चमक रहा था कि मैं अधिक देर तक उनकी ओर देख नहीं सका और मेरी नजर उनके चरणों की ओर झुक गयी । मेरा कामवासना तिरोहित हो गयी । घर पहुँचते ही शादी से इनकार कर दिया । भाइयों ने एक कमरे में उस 18 वर्ष की लड़की के साथ मुझे बंद कर दिया ।

मैं काम विकार को जगाने के कई उपाय किये परंतु सब निरर्थक सिद्ध हुए । जैसे कामसुख की चाबी उन महापुरुष के पास ही रह गयी हो ! एकांत कमरे में आग और पेट्रोल जैसा काम विकार का संयोग था, फिर भी… ! मैंने निश्चय किया कि अब मैं उनकी छत्रछाया को नहीं छोड़ूँगा, भले कितना ही विरोध सहन करना पड़े । उन महापुरुष को मैंने अपना मार्गदर्शक बनाया । उनके सान्निध्य में रहकर कुछ यौगिक क्रियाएँ सीखीं । उन्होंने मुझसे ऐसी साधना करवायी कि जिससे शरीर की सारी पुरानी व्याधियाँ जैसे मोटापा, दमा, टी.बी., कब्ज और छोटे-मोटे कई रोग आदि निवृत्त हो गये । मुझ पर ऐसी कृपादृष्टि डाली कि मेरी कुंडलिनी जागृत हो गयी । साधना करनी नहीं पड़ी, आसन, साधन, क्रियाएँ, मुद्राएँ होने लगीं ।

मैं बीमारीयों का थैला था, टी.बी., दमा, खाँसी, एलर्जी, और भी छोटी-मोटी बीमारियों का घर था, बिना छाते के धूप में 5 कदम चलना भी मुश्किल था, धूप नहीं सह सकता था । अब तो कई कि.मी. सुबह-शाम युवकों की तरह टहलने जाता हूँ ।

एकांत में साधना करता था तो शरीर से चंदन की खुशबू आती थी । एक बार मैं शौच के लिए बाहर गया था । शौच के समय मुझे चन्दन की तेजतर्रार सुगंध आने लगी । मैं चकित होकर घंटों तक इधऱ-उधऱ ढूँढता रहा कि ऐसी दिव्य सुगंध कहाँ से आ रही है ? बाद में मुझे पता चला कि मेरे मल में से चंदन की सुगंध आ रही थी । ऐसा कई बार हुआ ।

इस विषय में पूछने पर उन महापुरुष ने योगग्रंथों का उदाहरण देते हुए कहाः ‘ये अवस्थाएँ आती हैं, और आगे बढ़ो ।’ कफ और मेद से भरा शरीर अब फूल जैसा हलका हो गया है ।

विषय विकारों में लिप्त 55 वर्ष की उम्रवाला मेरे जैसा व्यक्ति कल्पना भी नहीं कर सकता कि ऐसा भी जीवन होता है, ऐसा भी नाड़ी शोधन होता है ! मैं धनभागी हूँ की तीसरी शादी के निमित्त आशीर्वाद लेने के लिए डीसा के आश्रम में गया और वहाँ मुझे ऐसे महापुरुष के दर्शन हुए, उनकी कृपा से ध्यान का अवसर मिला ।

जिन महापुरुष ने मेरा जीवन बदल दिया उनका नाम है परम पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू । उनका जो अनुपम उपकार मेरे ऊपर हुआ है उसका बदला तो मैं अपना सम्पूर्ण लौकिक वैभव समर्पण करके भी चुकाने में असमर्थ हूँ ।

महंत चंदीराम (भूतपूर्व चंदीराम कृपालदास)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 6 अंक 355

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कांधार विमान-अपहरण के दौरान हुआ एक चमत्कार !


24 दिसम्बर 1999 को इंडियन एयरलाइन्ज़ का एक जहाज कुछ अपहरणकर्ताओं द्वारा अपहरण कर कांधार (अफगानिस्तान)ले जाया गया था ।

27 दिसम्बर को हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने इस जहाज को छुड़वाने के लिए एक दूसरा जहाज भेजा जिसमें डॉक्टर, इंजीनियर व मंत्रालय के बंदे थे । उनमें मैं भी था ।

28 दिसम्बर को अपहृत जहाज में तकनीकी खराबी के कारण अँधेरा हो गया और अपहरणकर्ता पागल से हो गये । उन्होंने एलान कर दिया कि ‘पहले हमारे जहाज में रोशनी दो, नहीं तो हम यात्रियों को मारना शुरु कर देंगे ।’

एक तो अपहरणकर्ताओं का डर, दूसरा जहाज में रोशनी नहीं और तीसरा अपहरणकर्ताओं द्वारा यात्रियों को जान से मारने की धमकी । सुबह से शाम हो गयी । स्थिति काफी तनावपूर्ण हो गयी क्योंकि हमारी टीम का कोई भी व्यक्ति जहाज के अंदर जाकर काम करने को तैयार नहीं था ।

पर मैंने मन-ही-मन गुरुदेव की आज्ञा ले कर जहाज में काम करने की सम्मति दी, तो मेरे सभी साथी भौचक्के रह गये ! मैं गुरुदेव के दिये हुए गुरुमंत्र का जप करते-करते अपने मिशन पर चल दिया । मैं अपहृत जहाज की सीढ़ीयों पर चढ़ने लगा, जैसे ही आखिरी सीढ़ी पर पहुँचा, दो अपहरणकर्ताओं से मेरा सामना हुआ । दोनों के एक हाथ में रिवॉल्वर व दूसरे हाथ में हथगोले थे । उन्होंने मेरी तलाशी ली ।

तलाशी में सबसे पहले उनको मिला गुरुदेव की तस्वीर वाला पेन व चाबी का छल्ला, जिसे देखकर वे चौंके और पूछाः ″यह तस्वीर किसकी है ?″

मैंने कहाः ″मेरे गुरुदेव की ।″ उनका दूसरा सवालः ″इनका नाम क्या है ?″ मैंने गुरुदेव का नाम बताया । और जो भी उन्होंने पूछा मैंने सब बता दिया । उनका रुख थोड़ा नरम हुआ ।

मैंने उस जहाज में एक घंटे तक काम किया और तकनीकी खराबी को ठीक करके जहाज में रोशनी कर दी । जितनी देर मैं जहाज में रहा ऐसा लगा कि गुरुदेव मेरे साथ हैं और मुझसे काम करवा रहे हैं जबकि अपहरणकर्ता पिस्तौल ताने खड़ा था और मुझे बार-बार कह रहा था कि ‘कोई चालाकी की तो गोली मार दूँगा… लाइट नहीं आयी तो बम से उड़ा दूँगा ।’

जैसे ही मैं काम करके नीचे आया, मेरे सभी साथी मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे मैं जिंदा भूत हूँ ।

1 जनवरी को मैं अपनी टीम सहित अपहृत जहाज लेकर वापस दिल्ली आया । जब तक मैं वापस नहीं आया तब तक मेरी पत्नी व बच्चे गुरुदेव का ही ध्यान करते रहे । मैं अपने गुरुवर को पुनः शत-शत प्रणाम करता हूँ ।

राकेश कुमार शर्मा, सेवानिवृत्त प्रबंधक

एयर इंडिया, पालम, नई दिल्ली

सचल दूरभाषः 7836014080

अमृतबिन्दु – पूज्य बापू जी

गुरुमंत्र दिखता है साधारण शब्द या शब्द-समूह लेकिन सद्गुरु के आत्मा-परमात्मा का कृपा-प्रवाह उसके साथ जुड़ा है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 27 अंक 355

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और मुझे पढ़ना आ गया


मेरी उम्र 45 साल है और मैं बिल्कुल पढ़ी-लिखी नहीं हूँ । मेरे घर ऋषि प्रसाद आती थी पर मैं पढ़-लिख नहीं पाती थी, जिससे बहुत दुःख होता था । मैं प्रार्थना करतीः ″बापू जी मुझे पढ़ना सिखा दो ताकि मैं आपके अमृतवचन पढ़ सकूँ ।

मैं गुरुपूनम पर पूज्य श्री के दर्शन हेतु जोधपुर गयी । गाड़ी में से बापू जी ने आशीर्वाद दिया । मैं अपलक नेत्रों से गुरुदेव की मधुमय छवि को निहार रही थी । मुझे लगा जैसे गुरुदेव मुझ पर अपनी कृपा बरसा रहे हों ।

बापू जी ने सत्संग में एक विशेष ग्रह-नक्षत्र योग पर जपने हेतु विद्यालाभ का मंत्र, बीजमंत्र एवं विधि बतायी है । कुछ दिन बाद वह योग आया और मैं उस दिन आश्रम गयी । कुछ बहने मंत्र जप रही थीं, मैंने अपनी इच्छा व्यक्त की तो उन्होंने मंत्रजप में मेरी मदद की । एक बहन मंत्र पढ़ती गयीं और मैं दोहराती गयी । ऐसे एक माला जप हो गया और उसके बाद विधि-अनुसार मेरी जीभ पर बीजमंत्र लिख दिया गया ।

सुबह 3 बजे मैंने सपना देखा कि सरस्वती माता मेरे भ्रूमध्य पर प्रकट हुई हैं और पूज्य बापू जी बगल में खड़े होकर आशीर्वाद दे रहे हैं । उसके बाद नींद खुल गयी । सुबह जब पूजा करने बैठी तो प्रेरणा हुई कि श्री आशारामायण का पाठ कर । जैसे ही पाठ करना आरम्भ किया तो मैं दंग रह गयी ! मुझे पढ़ना आ गया । आज मैं भगवद्गीता, गुरुगीता आदि का श्लोकसहित पाठ करती हूँ और बड़े ही आनंद के साथ ऋषि प्रसाद को पढ़कर अपना जीवन धन्य अनुभव करती हूँ !

निर्मला बड़गूजर, मकरपुरा गाँव, वडोदरा (गुजरात)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 28 अंक 355

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