अध्यात्म-मार्ग कठिन तथा प्रवण ( टेढ़ा ) है । यह अंधकार से आवृत है । इस पथ में एक ऐसे गुरु की आवश्यकता होती है जो इस पथ पर पहले चल चुके हों । वे पथ पर प्रकाश डालेंगे तथा साधक की कठिनाइयों को दूर करेंगे । परम्परा से सद्गुरु के द्वारा शिष्य को अनुक्रम से आत्मज्ञान दिया जाता है । गहिनीनाथ जी ने निवृत्तिनाथ जी को ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया । निवृत्तिनाथ जी ने श्री ज्ञानदेव जी को यह ज्ञान बतलाया । गौड़ापादाचार्य जी ने गोविंदाचार्यजी को कैवल्य के रहस्य का ज्ञान दिया । गोविंदाचार्या जी ने आद्य शंकराचार्य जी को शिक्षा दी, आद्य शंकराचार्य जी ने सुरेश्वराचार्य जी को शिक्षा दी । ( संत दादू दयाल जी की परम्परा में संत निश्चलदास जी हुए और इसी में आगे स्वामी केशवानंद जी हुए जिन्होंने भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज पर कृपा बरसायी । साँईं लीलाशाह जी महाराज ने पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू को अपने कृपा-अमृत से तृप्त करके अपने स्वरूप में जगाया । – संकलक )
अध्यात्म मार्ग सर्वथा भिन्न मार्ग है । यह स्नातकोत्तर परीक्षा के लिए प्रबंध लिखने जैसा नहीं है । प्रत्येक पग पर सद्गुरु की सहायता की आवश्यकता होती है । आजकल नवयुवक साधक अभिमानी, स्वाग्रही तथा उद्धत बन जाते हैं । वे लोग गुरु की आज्ञाओं का पालन करने की चिंता नहीं करते । वे प्रारम्भ से ही स्वतंत्र रहना चाहते हैं । वे सद्गुरु के चयन में ‘नेति-नेति’ सिद्धान्त तथा ‘भाग-त्याग-लक्षण’ ( वह लक्षण जिसमें पद या वाक्य के कुछ भाग के अर्थ को ग्रहण करके कुछ भाग के अर्थ को त्याग किया गया हो । ) का प्रयोग करते हैं और कहते हैं – गुरुर्नैव शिष्यः चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ।। वे सोचते हैं कि वे तुरीय अवस्था में हैं जबकि उन्हें अध्यात्म अथवा सत् के सरगम का भी ज्ञान नहीं होता । वे स्वेच्छाचारिता अथवा मनमानी को स्वतंत्रता समझते हैं । यह एक गम्भीर तथा शोचनीय भूल है । यही कारण है कि वे उन्नति नहीं करते । वे साधना की प्रभावोत्पादकता तथा भगवान के अस्तित्व में विश्वास खो बैठते हैं । वे कश्मीर से गंगोत्री और गंगोत्री से रामेश्वरम् तक निरुद्देश्य अलमस्त घूमा करते हैं और मार्ग में पंचदशी, विचारसागर तथा गीता से उद्धरण देकर कुछ अनाप-शनाप बकते रहते हैं । वे जीवन्मुक्त होने का ढोंग रचते हैं ।
जो सद्गुरु के पथ-प्रदर्शन में चिरकाल तक रहता तथा उनके उपदेशों का निर्विवाद पालन करता है, वह अध्यात्म-पथ पर निःसंदेह उन्नति कर सकता है । आध्यात्मिक प्रगति का इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है ।
अमृतबिंदु – पूज्य बापू जी
जो गुरु की बात का आदर करता है, जिसकी गुरु वचनों में आस्था है और उनके अनुसार चलने में तत्परता है, वह आदरणीय बन जायेगा ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2022, पृष्ठ संख्या 7 अंक 354
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