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उनको छू के आने वाली हवा भी कल्याण कर देती है – पूज्य बापूजी



जिनकी अकाल मृत्यु होती है वे प्रेत हो जाते हैं । एक बुद्ध पुरुष
– एक ब्रह्मवेत्ता पुरुष ने सोचा कि ‘मुझे प्रेतों को देखना है ।’ वे भूत-प्रेत
फँसाने वाले व्यक्ति के पास गये और कहा कि “तुम्हारे भूत मुझे देखने
हैं ।”
उसने कहाः “बाबा जी ! यह धंधा बहुत खराब है, क्या देखना है !
ये तो बड़े मलेच्छ होते हैं और आप जैसे संत देखेंगे !”
बोलेः “हमारी साधना पूरी हो गयी, अब हमें कुछ पाना नहीं, कुछ
खोना नहीं। हमें तो विनोदमात्र देखना है ।”
उसने कहाः “बाबा जी ! कितने दिखाऊँ ? मेरे पास कई बँधे हुए हैं
। और मेरे पास ऐसे कई मंत्र भी हैं जिनसे मैं सैंकड़ों प्रेतों को बुला
सकता हूँ ।”
बाबा जी ने कहाः “2-4 ही दिखा दे, देखूँ कैसे होते हैं ।”
तो उसके पास करीब 108 छोटे-मोटे भूत थे । उसने पहली विधि
की और 4 को बुलाया पर एक भी नहीं आया । फिर उसने कुछ
शक्तिशाली विधि की और 8 को बुलाया । अब भी कोई नहीं आया ।
शाम हुई, बाबा जी ने कहाः “क्या तू भूत-वूत करता है, है तो कुछ नहीं
!”
बोलाः “बाबा जी ! क्या पता कहाँ चले गये, मेरा मंत्र खोटा तो नहीं
होता है !”
उसने फिर बँधे हुए जितने भी भूत थे, उन सबके नाम लिये और
उऩ्हें बुलाने के विधिवत प्रयोग किये । रात के 12, 1, 2, 3 बज गये,
कोई नहीं आया ।

संत ने कहाः “प्रभात हुई, अब हम अपने आपमें डूबने जा रहे हैं ।
देख लिया, तेरा भूत तो नहीं मिला, अब हम अपने-आपको देखेंगे ।”
संत वहाँ से चल दिये और वह भूत-प्रेत वाला सिर कूटता रहा ।
संत कुछ आगे निकल गये तब एक लँगड़ा भूत उस भूत बाँधने वाले
व्यक्ति को दिखा । वह बोलाः “तू अभी आया है ससुर ! और कहाँ मर
गये ? मेरी इज्जत का सवाल था !”
कर्मी-धर्मी, यशस्वी तपस्वी की इज्जत का सवाल होता है किंतु
ब्रह्मवेत्ता की इज्जत का कभी कोई सवाल ही नहीं होता है । वे महापुरुष
अपने स्वतंत्र स्वामी होते हैं क्योंकि वे प्रकृति में नहीं जीते, अपने शुद्ध
स्वरूप में जीते हैं ।
जब भूत से पूछा गया कि और कहाँ गये तो उसने कहाः “और तो
सब हट्टे-कट्टे थे, जिन-जिनको तुम बुलाते गये वे सब तुम्हारे पास
आये ।”
“मेरे पास तो एक भी नहीं आया !”
“सब दौड़ते-दौड़ते आये । मैं दुर्बल और लँगड़ा हूँ अतः सबसे पीछे
जरा धीरे-धीरे आया । कोई बाबा जी थे, कोई बुद्ध पुरुष थे, उनकी
छाया पड़ने से उन सभी भूतों की सद्गति हो गयी । मैं अभागा देर से
आया इसलिए वंचित रह गया ।” मुनि अष्टावक्र कहते हैं-
सर्वारम्भेषु निष्कामो… (अष्टावक्र गीताः 18.64)
ब्रह्मवेत्ता महापुरुष बड़े-से-बड़े कामों में भी बालक के समान
निष्काम व्यवहार करते हैं । उन बुद्धपुरुष को कोई कामना नहीं थी कि
‘मैं उनका उद्धार करूँ ।’ बर्फ को कोई कामना नहीं होती कि ‘मैं ठंडक
दूँ’, चन्द्रमा को कोई कामना नहीं होती कि ‘मैं शीतलता दूँ’… ऐसे ही
ज्ञानवान को कोई कामना नहीं होती कि ‘मैं इनका भला करूँ या बुरा

करूँ ।’ जिसको बुरा करने की कामना है वह बुरा कर सकता है, भला
करने की कामना है तो कल्पित भला कर सकता है, सच्चा भला नहीं
कर सकता है लेकिन जो निष्काम है, ओहो ! उनको तो छू के जो हवा
आती है न, वह भी कइयों का कल्याण कर देती है । सच्चा भला तो
निष्काम महापुरुषों के द्वारा ही होता है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2023, पृष्ठ संख्या 24,25 अंक 364
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ईश्वर का संबंध और सत्य का आश्रय – पूज्य बापू जी



बस दो ही तो बातें हैं !
मैं गुरु को और ईश्वर को साक्षी रख के बोलता हूँ कि तुम्हारा और
ईश्वर का शाश्वत संबंध है और तुम्हारा व शरीर का नश्वर संबंध है ।
तुम्हारा और ईश्वर का संबंध कभी, किसी भी स्थिति में मिट नहीं
सकता और तुम्हारा और संसार का संबंध सदा टिक नहीं सकता । जो
टिक नहीं सकता है उसका सदुपयोग करो, उसमें आसक्ति मत करो और
जो मिट नहीं सकता उसको खोजो तो मिल जायेगा ।
जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ ।
हेरत हेरत रह्या कबिरा हेराई ।
खोजते खोजते मैं खो गया,
जिसको खोजता था मैं वही हो गया ।
जिससे संबंध टिकता नहीं है उसका उपयोग करो और जिससे
मिटता नहीं है उसका अनुभव करो । बस, दो ही तो बातें हैं ! क्या
डरना-मरना ? जिससे तुम्हारा संबंध कभी टूट नहीं सकता उसको
पहचानने का दृढ़ संकल्प करो तो तुम अमर पद को पाने की यात्रा कर
लोगे । चाहे तुम चोर बन जाओ, डाकू बन जाओ, दुराचारी बन जाओ,
पापी-पापिन बन जाओ फिर भी ईश्वर के साथ तुम्हारा संबंध कोई तोड़
नहीं सकता ।
सत्य का आश्रय लो
बड़े-से-बड़ा पापी हो, उससे अलग से पूछोः “तू जो करता है वह
अच्छा काम है ?”
बोलेगाः “यार ! काम तो बुरा है लेकिन छूटता नहीं है, क्या करूँ !”

तो क्या उसके अंदर ईश्वर को पाने की प्यास, ईश्वर की तरफ
जाने की योग्यता नहीं है ? है ।
मैंने साधना करके यह पाया कि सत्य ही ईशवर है । तो फिर झूठ
न बोलने का विचार किया । फिर भी कभी-कभी गड़बड़ हो जाती है तो
मैं उस गड़बड़ के लिए बोलता हूँ कि भाई ! यह मेरी मिलावट थी । तो
मेरे को संतोष होता है और मेरी बात पर लोग विश्वास भी करते हैं कि
‘बापू ने कहा है, बस हो गया !’
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदै साँच हैं, ताके हिरदै आप ।।
अति जरूरी हो तब भी झूठ नहीं बोलना चाहिए । झूठ बोलने से
पुण्य और प्रभाव का नाश हो जाता है । जो झूठ बोलते हैं उनको दूसरे
जन्म में जिह्वा नहीं मिलती है । ईश्वर सत्यस्वरूप हैं तो सत्य का
आश्रय लेना चाहिए ।
ऐसे जगेगी भगवत्प्राप्ति की तड़प – पूज्य बापू जी
आपके मन में 2 शक्तियाँ हैं – एक तो प्रेम करने की शक्ति और
दूसरी तड़पने की शक्ति । तुम संसार की चीजों के लिए तड़पते हो और
संसार की वस्तुओं, व्यक्तियों को प्रेम करते हो, यदि तड़प भी भगवान
की हो और प्रेम भी भगवान में हो तो हृदय जल्दी शुद्ध होकर
भगवत्प्राप्ति की तड़प जगेगी ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2023, पृष्ठ संख्या 34 अंक 364
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इन सात गुणों से सम्पन्न विद्यार्थी छू लेगा बुलंदियाँ


इन सात गुणों से सम्पन्न विद्यार्थी छू लेगा बुलंदियाँ
उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वसक्तम् ।
शूरं कृतज्ञं दृढ़सौहृदयं च सिद्धिः स्वयं याति निवासहेतोः ।।
‘उत्साही, अदीर्घसूत्री (कार्य को शीघ्र पूर्ण करने वाला), क्रिया की
विधि को जानने वाला, व्यसनों से दूर रहने वाला, शूर, कृतज्ञ तथा
स्थिर मित्रता वाले मनुष्य को सफलताएँ, सिद्धियाँ स्वयं ढूँढने लगती है
” ।’
हे विद्यार्थी ! कल्याण करने वाली ये सात बातें अच्छी तरह से
अपने जीवन में लाना । उत्साहरहित नहीं, उत्साही बनो । दीर्घसूत्री (कार्य
को देर से करने वाला) नहीं, अदीर्घसूत्री हो । आज पढ़ने का पाठ कल
पढ़ेंगे, बाद में करेंगे, ऐसा नहीं । जिस समय का जो काम है वह उस
समय कर ही लेना चाहिए, बाद के लिए नहीं रखना चाहिए । काम करने
की विधि को ठीक तरह से जान लो फिर सुनियोजन करके काम शुरु
करो । फास्ट फूड, डबल रोटी, पीजा, कोल्ड-ड्रिंक्स, चाय-कॉफी, पान-
मसाला – ये सत्यानाश करते, करते और करते ही हैं । इसलिए इनके
सेवन से बचो । डरपोक जैसे विचार नहीं, शूरवीर जैसे विचार करो ।
किसी का उपकार न भूलो । अस्थिर मित्र नहीं, सज्जन, अच्छे मित्र
बनाओ । परम स्थिर मित्र तो परमात्मा है, उसका तुम ध्यान करो ।
बाहर भी अच्छे, चरित्रवान, सत्संगी स्थिर मित्र करो ।
ये सात गुण जिस विद्यार्थी के जीवन है, जिस मनुष्य के जीवन
में हैं, आज नहीं तो कल सफलता उसके चरण चूमती है ।
चाहे जितने तूफान आयें या चलें फिर आँधियाँ ।
इरादे हैं मजबूत तो छू लेंगे बुलंदियाँ ।।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2023, पृष्ठ संख्या 19 अंक 364

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