सुख-दुःख में स्वस्थ रहें…
संत श्री आसाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से श्रीमद् भगवदगीता में आता हैः समदुःखसुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकाञ्चनः। तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः।। ʹजो निरन्तर आत्म भाव में स्थित, दुःख-सुख को समान समझने वाला, मिट्टी, पत्थर और स्वर्ण में समान भाववाला, ज्ञानी, प्रिय तथा अप्रिय को एक-सा मानने वाला और अपनी निन्दा स्तुति में समान भाववाला है (ऐसा पुरुष गुणातीत …