198 ऋषि प्रसादः जून 2009

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

जो तेरा है तो सो मेरा हो जाय


(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से) राजा बृहदश्व बड़ी ही श्रद्धा से अपने गुरुदेव का पूजन करता था । वह गुरु में भगवद्बुद्धि करके उनके सम्मुख बैठकर उन्हें एकटक निहारा करता था । ऐसे समय गुरु के रूप में छिपे हुए परमात्मा की कृपा उस पर बरसने लगती । इससे उसका पुण्य बढ़ता गया । …

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ऐसी हो गुरु में निष्ठा


सभी शिष्यों में अपने गुरु के प्रति प्रेम तो होता ही है पर गुरुभक्त की गुरुभक्ति इतनी अवस्था में पहुँच जाय कि गुरु जो कहे वही उसके लिए प्रमाण हो जाय तो फिर उसको अपने गुरु में एक भी दोष दिखायी नहीं देगा । पांडुरोगवाले मनुष्य को सब कुछ पीला-ही-पीला दिखायी देता है, वैसे ही …

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गुरु की आवश्यकता क्यों ?


हर मनुष्य के भीतर ज्ञान का भण्डार छुपा है अर्थात् उसमें गुरुत्व विद्यमान है परंतु उसके उद्घाटन के लिए गुरु की आवश्यकता है । किसी भी दिशा में ज्ञान प्राप्त करने के लिए उस विषय के गुरु की जरूरत होती है । मनुष्य को डॉक्टर बनना हो तो डॉक्टर की, वकील बनना हो तो वकील …

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