198 ऋषि प्रसादः जून 2009

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

तेषां सततयुक्तानां…. पूज्य बापू जी


भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् । ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयन्ति ते ।। ‘उन निरंतर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेमपूर्वक भजने वाले भक्तों को मैं वह तत्त्वज्ञानरूप योग देता हूँ, जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं ।’ (भगवद्गीताः 10.10) सततयुक्तानां…. ‘सततयुक्त’ का अर्थ ऐसा नहीं कि आप …

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तर्क से नहीं होता तत्त्वज्ञान


(समर्थ स्वामी-रामदासजी महाराज की वाणी) सत्य खोजते-खोजते प्राप्त हो जाता है । हे मन ! बोध होते-होते होता है । ज्ञान होता है परंतु यह सब केवल श्री सद्गुरु की प्राप्ति और सहवास प्राप्त होने से और सद्गुरु-स्वरूप में व्यक्त, सदेह, सगुण परमात्मा की कृपा और उनका अनुराग प्राप्त करने से ही हो सकता है …

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दीक्षा से सुधरती है जीवन-दशा


(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से) उस मनुष्य का जीवन बेकार है जिसके जीवन में किन्हीं ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु की दीक्षा नहीं है । दीक्षारहित जीवन विधवा के श्रृंगार जैसा है । बाहर की शिक्षा तुम भले पाओ किंतु उस शिक्षा को वैदिक दीक्षा की लगाम देना जरूरी है । दीक्षाविहीन मनुष्य का जीवन तो बर्बाद …

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