225 ऋषि प्रसादः सितम्बर 2011

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

संसार-आसक्तिरूप रोग के औषधः आत्मवेत्ता संत


गरुड़ जी ने भगवान से कहाः “हे दयासिंधो ! अज्ञान के कारण जीव जन्म-मरणरूपी संसारचक्र में पड़ता है, अनंत बार उत्पन्न होता है और मरता है। इस श्रृंखला का कोई अंत नहीं है। हे प्रभो ! किस उपाय से इस जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त हो सकती है ?” श्री भगवान ने कहाः “हे …

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भगवान का उद्देश्य – पूज्य बापू जी


जैसे कोई फैक्ट्री बनाता है तो उद्देश्य पैसा कमाना होता है, कोई चुनाव लड़ता है तो उद्देश्य पद का होता है, ऐसे ही भगवान का उद्देश्य क्या है ? भगवान ने हमें दास बनाने के लिए अथवा संसारी पिट्ठू बनने के लिए जन्म नहीं दिया। हमने अपनी अक्ल-होशियारी से, अपने बलबूते से यह शरीर नहीं …

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अहंकार और प्रेम


पूज्य बापू जी की पावन अमृतवाणी जो जगत से सुखी होना चाहता है वह अकड़ने का मजा लेगा – ‘मेरे पास इतनी गाड़ियाँ हैं, इतनी मोटरे हैं, इतना अधिकार है, और अधिकार हथियाऊँ….’ यह रावण का रास्ता है और गुरु के प्रसाद से जो तृप्त हुए हैं, उनका राम जी का रास्ता है। सब कुछ …

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