संसार-आसक्तिरूप रोग के औषधः आत्मवेत्ता संत
गरुड़ जी ने भगवान से कहाः “हे दयासिंधो ! अज्ञान के कारण जीव जन्म-मरणरूपी संसारचक्र में पड़ता है, अनंत बार उत्पन्न होता है और मरता है। इस श्रृंखला का कोई अंत नहीं है। हे प्रभो ! किस उपाय से इस जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त हो सकती है ?” श्री भगवान ने कहाः “हे …