226 ऋषि प्रसादः अक्तूबर 2011

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

विश्व को नंदनवन बनाने के लिए…


पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से सनातन धर्म की सोलह कलाएँ हैं। आत्मदेव के, परमेश्वर के सत्स्वभाव की चार कलाएँ हैं- स्वयं रहें और दूसरों को रहने दें, मरने से डरें नहीं और दूसरों को डरायें नहीं। चित् की चार कलाएँ हैं – आप ज्ञान, स्वभाव में रहें और दूसरों ज्ञान-सम्पन्न करें, आप अज्ञानी नहीं …

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अपने भाग्य के विधाता आप !


परिचिन्मर्तो द्रविणं ममन्यादृतस्य पथा नमसा विवासेत्। उत स्वेन क्रतुना सं वदेत श्रेयांस दक्षं मनसा जगृभ्यात्।। ‘मनुष्य बल और धन को प्राप्त करना चाहे तो वह सत्य के मार्ग से नमन के साथ पूजा करे और अपने ही अंतरात्मा से अनुकूलता स्थापित करे। श्रेयस्कर, सबल, त्वरित निर्णय को मन से ग्रहण करे।’ (ऋग्दवेदः 10.31.2) मनुष्य बल …

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मन के चंगुल से बचें


एक आदमी ने एक भूत सिद्ध किया तो भूत ने अपनी शर्त बताते हुए कहाः “जब तक तुम मुझे काम देते रहोगे तब तक मैं तुम्हारे पास रहूँगा और जैसे ही तुम काम देना बंद करोगे, मैं तुम्हें मार डालूँगा।” उसने शर्त स्वीकार कर ली। अब वह आदमी जो भी काम बताये, भूत उसे दो …

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