226 ऋषि प्रसादः अक्तूबर 2011

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

साधना के विघ्न


पूज्य बापू जी की पावन अमृतवाणी साधना की कभी राह न छोड़, अगर आत्मतत्त्व को पाना है। संयम की नौका पर चढ़, तुझे भवसागर तर जाना है।। मत फँस प्यारे तू जीवन की, छोटी, सँकरी गलियों में। एक लक्ष्य बनकर पहुँच वहाँ, जहाँ औरों को पहुँचाना है।। आत्मदेव की साधना का मार्ग कहीं फूलों से …

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भगवत्स्मृति से भगवत्साक्षात्कार-पूज्य बापू जी


‘भगवद्गीता’ में अर्जुन कहते हैं- नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा….. मोह अर्थात् जो उल्टा ज्ञान था, शरीर को मैं मानता था, संसार को सच्चा मानता था, वह मेरा मोह नष्ट हो गया । स्मृतिर्लब्धा… अर्थात् मुझे स्मृति हुई । कैसी स्मृति हुई ? कि ‘मैं सत्-चित्-आनंदस्वरूप आत्मा हूँ….’ अपने आत्मस्वभाव की स्मृति हुई, ब्रह्मस्वभाव की स्मृति हुई …

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आत्मनिर्भर बनें


हाथी शेर अपेक्षा अधिक बलवान है । उसका शरीर बड़ा और भारी है फिर भी अकेला शेर दर्जनों हाथियों को मारने-भगाने में समर्थ होता है । शेर की ताकत का रहस्य क्या है ? हाथी अपने शरीर पर भरोसा करता है, जबकि शेर अपनी शक्ति (प्राणबल) पर भरोसा करता है । हाथी झुण्ड बनाकर चलते …

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