संत की करें जो निंदा, उन्हें होना पड़े शर्मिन्दा
(संत तुलसीदास जी जयंतीः 13 अगस्त) संत तुलसीदास जी काशी में प्रवचन करते थे। दूर-दूर तक उनकी ख्याती फैल चुकी थी। कहते हैं जहाँ गुलाब वहाँ काँटे, जहाँ चन्दन वहाँ विषैले सर्प, ऐसे ही जहाँ सर्वसुहृद लोकसंत वहाँ निंदक-कुप्रचारकों का होना स्वाभाविक है। उसमें भी विधर्मियों की साजिश के तहत हमारे ही संतों के खिलाफ, …