बड़ी बेर जैसे गोल एवं बेलनाकार एक से डेढ़ इंच के, बारीक काँटेदार, हरे रंग के खेखसे केवल वर्षा ऋतु में ही उपलब्ध होते हैं। ये प्रायः पथरीली जमीन पर उगते हैं एवं एक दो महीने के लिए ही आते हैं। अंदर से सफेद एवं नरम बीजवाले खेखसों का ही सब्जी के रूप में प्रयोग करना चाहिए।
खेखसे स्वाद में कड़वे-कसैले, कफ एवं पित्तनाशक, रूचिकर्त्ता, शीतल, वायुदोषवर्धक, रूक्ष, मूत्रवर्धक, पचने में हल्के, जठराग्निवर्धक एवं शूल, पित्त, कफ, खाँसी, श्वास, बुखार, कोढ़, प्रमेह, अरूचि, पथरी तथा हृदयरोगनाशक हैं।
औषधि-प्रयोग
बुखार एवं क्षयः खेखसे (कंकोड़े) के पत्तों के काढ़े में शहद डालकर पीने से लाभ होता है।
हरस (मसे) खेखसे के कंद का 5 ग्राम चूर्ण एवं 5 ग्राम मिश्री के चूर्ण को मिलाकर सुबह शाम लेने से खूनी बवासीर (मसे) में लाभ होता है।
आधासीसीः खेखसे की जड़ को थोड़े से घी में तल लें। उस घी की दो-तीन बूँदें नाक में डालने से आधासीसी के दर्द में लाभ होता है।
अत्यधिक पसीना आने परः खेखसे के कंद का पावडर बनाकर, रोज स्नान के वक्त वह पावडर शरीर पर मसलकर नहाने से शरीर से दुर्गन्धयुक्त पसीना बंद होता है एवं त्वचा मुलायम बनती है।
खाँसीः खेखसे के कंद का 3 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ लेने से लाभ होता है।
खेखसे के जड़ की दो से तीन रत्ती (250 से 500 मिलीग्राम) भस्म को शहद एवं अदरक के रस के साथ देने से भयंकर खाँसी एवं श्वास में राहत मिलती है।
पथरीः खेखसे की जड़ का 10 ग्राम चूर्ण दूध अथवा पानी के साथ रोज लेने से किडनी एवं मूत्राशय में स्थित पथरी में लाभ होता है।
शिरोवेदनाः खेखसे की जड़ को कालीमिर्च, रक्तचंदन एवं नारियल के साथ पीसकर ललाट पर उसका लेप करने से पित्त के कारण उत्पन्न शिरोवेदना में लाभ होता है।
विशेषः खेखसे की सब्जी में वायु प्रकृति की होती है। अतः वायु के रोगी इसका सेवन न करें। इस सब्जी को थोड़ी मात्रा में ही खाना हितावह है।
खेखसे की सब्जी बुखार, खाँसी, श्वास, उदररोग, कोढ़, त्वचा रोग, सूजन एवं डायबिटीज के रोगियों के लिए ज्यादा हितकारी है। श्लीपद (हाथीपैर) रोग में भी खेखसे की सब्जी का सेवन एवं उसके पत्तों का लेप लाभप्रद है। जो बच्चे दूध पीकर तुरन्त उल्टी कर देते हों, उनकी माताओं के लिए भी खेखसे की सब्जी का सेवन लाभप्रद है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 1999, पृष्ठ संख्या 26, अंक 80
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