जितनी जिम्मेदारी और तत्परता, उतना विकास – पूज्य बापू जी
सत्संग को पाने और समझने के लिए तो राजे-महाराजे राजपाट छोड़कर सिर में खाक डाल के, हाथ में झाड़ू ले के सफाई करने या बर्तन माँजने की सेवा हो तो वह भी स्वीकार करके ब्रह्मवेत्ता गुरुओं को रिझाते थे तब उनको ज्ञान मिलता था । हम भी गुरुद्वार पर बर्तन माँजने की सेवा करते थे …