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लड़की की कहानी विश्वास करने योग्य नहीं है


सुप्रसिद्ध वरिष्ठ अधिवक्ता एवं न्यायविद् श्री राम जेठमलानी

संत श्री आशारामजी बापू पर किया गया केस झूठा है, लड़की को कुछ नहीं हुआ। यह असम्भव है कि उस कमरे में लड़की को कुछ हुआ हो। जैसा कि लड़की दावा कर रही है, जब उस रात 3 लड़के कमरे के बाहर बैठे थे और लड़की की माँ भी बैठी थी, उसी समय डेढ़ घंटे तक घटना घटी और माँ साथ थी, आयी थी देखने के लिए क्या हो रहा है और उसने कुछ नहीं सुना ! यह कैसे सम्भव है ?

लड़की कमरे के बाहर आयी और माँ से मिली। दोनों साथ गयीं और लड़की के पिता से मिलीं। सभी फार्म के मालिक से मिले, उनके साथ रात को खाना खाया,  सारी रात वे वहीं रूके। सुबह उनके साथ नाश्ता किया। फिर फार्म के मालिक ने (स्टेशन छोड़ने हेतु) कार की व्यवस्था की और तब तक किसी  से कोई भी शिकायत नहीं की गयी।

इन तथ्यों के आधार पर स्पष्ट होता है कि पूज्य बापू जी सही हैं और लड़की की कहानी विश्वास करने योग्य नहीं है।

मैं न्यायालय को समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि बापू जी को जमानत दी जानी चाहिए ताकि वे आगे के सबूत एकत्र कर सकें कि यह झूठा केस बनाया गया है। हमें कुछ सबूत मिले हैं पर अभी भी कुछ और सबूतों की जरूरत है क्योंकि जब मैं बापू जी के अनुयायियों से मिला तो उन्होंने खबर दी कि एफ आई आर लिखवाने से पहले लड़की और उसके माता-पिता ऐसे कुछ राजनेताओं से मिले थे जो बापू जी से शत्रुता रखते हैं।

यह केस किसी भी तरह से खत्म नहीं हुआ है और अभियुक्त का बचाव विश्वसनीय है। हमको और बापू जी के अनुयायियों को भगवान से अवश्य प्रार्थना करनी चाहिए कि अभियोक्ता इस अभियोग की मूर्खता देख सकें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 20, अंक 251

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आप किस पर विश्वास करोगे ?


महानिर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी श्री नित्यानंद जी महाराज

मैंने बापू जी के केस का पूरी तरह से अध्ययन किया है और सारी जानकारी ली है।  मैंने कुछ डॉक्टरों से भी परामर्श लिया जो इस तरह की  मेडिकल रिपोर्ट बनाते हैं। मैंने उनसे इस रिपोर्ट के आधार पर कानूनी अभिप्राय माँगा तो उन्होंने कहाः “स्वामी जी ! मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर हम 100 प्रतिशत, निश्चित रूप से कह सकते हैं कि न रेप है न ही रेप की कोशिश की गयी है और यौन उत्पीड़न का केस भी नहीं है क्योंकि किसी भी नाबालिक की त्वचा बहुत ही मुलायम होती है और अगर कोई उत्पीड़न होता तो उसके निशान रहते।”

आप समझते हो ! 12-13 साल पहले कोई तथाकथित घटना होती है। कोई महिला आती है और वह कहती है तो आप उस पर विश्वास करोगे या फिर उस पुरुष पर जिसने अपना पूरा जीवन विश्व-कल्याण के लिए लगा दिया ? वे बोल रहे हैं 2002 में घटना घटी। वे सब स्पष्ट रूप से जानते हैं कि उनका केस न्याययालय में नहीं टिक पायेगा। 11-12 वर्ष तक किसी भी महिला का चुप रहना असम्भव है। अब 2013 चल रहा, 11-12  साल के बाद वे आते हैं और झूठा मामला दर्ज कराते हैं।

पुलिस भी जानती है कि यह केस न्यायालय में जाने लायक नहीं है। शायद पुलिस इस केस में चार्जशीट भी दायर नहीं करेगी।

तथाकथित हिन्दू गुरु, जिन्होंने आशाराम बापू और अन्य हिन्दू गुरुओं को दुर्वचन कहे, उनसे आपको प्रश्न पूछना चाहिए, उनको पाठ सिखाना चाहिए। अभी  मैं यहाँ  महानिर्वाणी अखाड़े का  महामंडलेश्वर होने के नाते अपना पक्ष स्पष्ट रूप से रखता हूँ कि किसी भी हिन्दू संत को यह अधिकार नहीं है कि वे किसी दूसरे हिन्दू संत की निंदा करें। उनमें से बहुत लोग जो आशारामजी बापू पर टीका-टिप्पणी कर रहे हैं, वे संत ही नहीं हैं। उनकी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की कि ‘आशारामजी बापू संत नहीं हैं !’ अब मैं कहता हूँ कि जो भी बापू की निंदा कर रहे हैं, वे संत नहीं हैं।

सभी भक्त और शिष्य यह स्पष्ट रूप से निर्णय कर लें (और अपने गुरु से कहें) कि ‘यदि आप दूसरे हिन्दू गुरुओं की निंदा  करेंगे तो हम आपका बहिष्कार करेंगे।’ अगर आप इस समय आशाराम जी बापू का समर्थन नहीं करना चाहते तो कम-से-कम चुप रहो। मैं आपको और पूरे देश को स्पष्ट रूप से कह रहा हूँ – जो बापू जी को गलत बता रहे हैं, मैं उन गुरुओं को जिन्हें लोग ‘गुरु’ कहते हैं, ‘गुरुजी’ कहते हैं, इस समय चुनौती देता हूँ….. मैं उनसे एक सीधा प्रश्न पूछता हूँ कि क्या आपने भक्तों की प्रेरणा को जीवित रखने के लिए आशारामजी बापू का उपयोग नहीं किया है ? क्या आपने उनके कठिन परिश्रम से लाभ नहीं लिया है ? तो फिर आपको उनके कठिन परिश्रम के प्रति कृतज्ञता क्यों नहीं है ? आप लोग कम्युनिस्ट और नास्तिक संस्था के नेताओं की तरह बात कर रहे हैं। आप समझो ! आप लोग आस्था पर आधारित संस्था के अधिष्ठाता हो। अगर हमें ईमानदारी पूर्वक विश्वास है कि यह सब झूठ है तो हमें आशारामजी बापू का समर्थन करना चाहिए। अगर विश्वास नहीं है, अगर संदेह है तो कम-से-कम चुप रहें।

तुम क्यों सब जगह जा-जाकर गलत बोल रहे हो जबकि न्यायालय में अभी तक कुछ भी साबित नहीं हुआ है। तुम न्यायालय के निर्णय आने तक इंतजार क्यों नहीं करते ? तुम वक्तव्य देने के लिए उतावले क्यों हो रहे हो ? अगर आपको लगता भी है कि कुछ हुआ है तो जब तक  न्यायालय निर्णय न ले ले तब तक चुप रहिये।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 11, अंक 251

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क्यों नज़रअंदाज किया गया महत्त्वपूर्ण गवाहों को ?


आरोप लगाने वाली लड़की ने जिस जगह की वह मनगढ़ंत घटना बतायी है, जोधपुर के  मणई गाँव में स्थित उस कुटिया की देखभाल करने वाले विष्णु ने एक इंटरव्यू में ऐसे कई तथ्य बताये जिनसे यह सिद्ध हो जाता है  यह एक सुनियोजित षड्यन्त्र है।

विष्णुः “आरोप लगाने वाली लड़की व उसका परिवार 16 अगस्त की सुबह को मणई से जोधपुर रेलवे स्टेशन जाने के लिए निकले थे। मणई और रेलवे स्टेशन के बीच में तकरीबन 4 से 5 पुलिस स्टेशन पड़ते हैं तो वे लोग वहाँ पर भी एफ आई आर दर्ज करा सकते थे। दिल्ली जाकर एफ आई आर दर्ज कराने से एक नया सवाल खड़ा होता है।

16 अगस्त की सुबह को लड़की व उसके पिताजी हमारे घर आये, खाना खाया और लड़की अपने पिता जी के साथ एकदम हँस-मिल के बातचीत कर रही थी तथा खुशी से मेरे बेटे-बेटी को 100-100 रूपये भी दिये, फिर मेरा चचेरा भाई उनको रेलवे स्टेशन तक छोड़कर आया।”

गवाह विष्णु की इन तथ्यपूर्ण बातों से लड़की के मनगढ़ंत आरोपों की पोल खुल जाती है। परंतु आश्चर्य की बात तो यह है कि अधिकांश मीडिया ने इतने महत्त्वपूर्ण गवाह का इंटरव्यू समाज तक नहीं पहुँचाया। आखिर क्यों ?

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 31, अंक 250

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