दैवी सहायता उन्हें प्राप्त होती है जो अपनी पात्रता विकसित करते
हैं । गुरु की सहायता, ईश्वर की सहायता वहीं टिकती है जो अपने को
थोड़ा कसते हैं, पात्रता विकसित करते हैं ।
संत ज्ञानेश्वर महाराज अपनी कथा में बता रहे थे कि “बड़े-बड़े
अनुदान बिना योग्यता के नहीं मिलते हैं । इसीलिए अपने-आपका
उद्धार करना चाहिए, अपनी योग्यता विकसित करनी चाहिए ।”
एक बड़े घराने की माई ने कथा पूरी होने के बाद कहाः “महाराज !
ईश्वर तो ईश्वर है । क्या योग्यता, क्या अयोग्यता देखेगा ? सब ईश्वर
के बच्चे हैं, ईश्वर तो खुले हाथ बाँटेगा । योग्यता देखना – न देखना
ईश्वर के लिए क्या मायने रखता है !”
ज्ञानेश्वर जी ने कहाः “अच्छा !”
माई बोलीः “हम धनी लोग भी जब योग्यता अयोग्यता नहीं देखते
हैं, ऐसे ही लुटाते हैं तो ईश्वर तो धनियों का धनी है । ईश्वर तो लुटाये,
वह क्यों योग्यता देखे ?”
ज्ञानेश्वर जी देखा कि यह माई उपदेश से नहीं समझेगी, प्रत्यक्ष
प्रयोग करना पड़ेगा ।
कुछ दिनों बाद ज्ञानेश्वर जी ने चरस गाँजा पीने वाले एक अपराधी
भिखमंगे को उस माई के पास यह कह कर भेजा कि “फलानी माई से
2-4 गहने माँग ले, 2-4 दिन के लिए ही माँग । फिर क्या कहती है,
मुझे चुपके से बताना ।”
भिखमंगा उस माई के पास गया, बोलाः “बहन जी ! तुम बड़ी
धनाधय हो । तुम्हारी ये दो चूड़ियाँ, 2 अँगूठियाँ और 1 हार मुझे चाहिए
थे, अगर दान में नहीं दे सकती हो तो कम-से-कम 2-4 दिन के लिए ही
दे दो ।”
माई बोलीः “चल रे मुआ ! मैं तेरे को चूड़ियाँ दूँगी अपनी !”
“बहन जी ! 2-4 दिन के लिए दे दो फिर वापस दे दूँगा ।”
“जा-जा, मैं नहीं देती ।”
“अच्छा ! केवल एक चूड़ी और एक अँगूठी ही दे दे ।”
“मैं एक अँगूठी तो क्या, एक धक्का भी नहीं दूँगी ! जा दूर हट !”
उसने खूब अनुनय-विनय किया लेकिन माई ने न चूड़ी दी, न हार
दिया, न अँगूठी दी ।
थोड़ी देर बाद ज्ञानेश्वर जी उस माई के पास गये और बोलेः
“बहन जी ! जरा तुम्हारे थोड़े गहने 2-5 दिन के लिए मेरे को चाहिए ।”
माईः “महाराज ! आपको…. गहने !” सारे-के-सारे उतार के रुमाल
में धरे और प्रसाद धरा, बोलीः “प्रभु ! 2-5 दिन ही क्यों, हमेशा के लिए
ले जाइये ।”
ज्ञानेश्वर जी ने कहाः “बहन ! अभी-अभी वह भिखारी माँग रहा
था, नाक रगड़ रहा था, गिड़गिड़ा रहा था, उसको तो तुमने कुछ भी नहीं
दिया और मेरे को सारा-का-सारा दे रही हो !”
“महाराज ! उसकी पात्रता कहाँ, आपकी पात्रता कहाँ ! आप जैसे
संत को देखकर तो देने का जी करता है, उसको कौन दे !”
ज्ञानेश्वर जी बोलेः “जब तू चार पैसे के गहने देने में पात्र-अपात्र
का ख्याल करती है, तो जो प्रभु अपना-आपा देना चाहेगा वह क्या बिना
पात्रता के बरसेगा !”
एकलव्य ने गुरु-ध्यान से अपनी पात्रता विकसित की तभी अब
तक संतों की जिह्वा पर उसका नाम है । शबरी भीलन ने मतंग ऋषि
की आज्ञा मानने की अपनी पात्रता विकसित की थी । धन्ना जाट ने
एकाग्रता और ठाकुर जी को बुलाने की अपनी पात्रता विकसित की थी ।
तुकाराम महाराज, नामदेव महाराज छोटी जाति में जन्मे थे तो जात-
पाँत के उस जमाने में अपने को ऊँची जाति वाले मानने वालों ने
नामदेव जी को बोलाः “तुम कैसे मंदिर में आ सकते हो ? तुम कैसे यह
सब कर सकते हो ?”
नामदेव जी ने कहाः “कोई बात नहीं ।” और नामदेव जी भजन
करने बैठ गये । कहते हैं कि जिधर को मुँह करके नामदेव जी बैठ गये
थे उसी तरफ भगवाने ने मंदिर का मुख घुमा दिया और पंडित देखते
रह गये । आपकी पात्रता है तो प्रकृति करवट लेने को भी तैयार है और
परमात्मा तुम्हारे आगे प्रकट होने को भी तैयार है । आप अपनी प्रेम-
पात्रता (निष्काम भाव से प्रेम करने की पात्रता बढ़ाइये । अपने को
कोसिये मत कि ‘हाय रे ! क्या करें, जमाना बड़ा खराब है… क्या करें,
जाति छोटी है… क्या करें, यह छोटा है…।’ ऐसे अपने को कोसिये मत,
आप अपने प्रेम-पात्रता बढ़ाइये ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2022, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 356
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