पूज्यपाद संत श्री आसारामजी बापू
भगवान की यह दुनिया बड़ी विचित्र है। इसे समझ पाना वैज्ञानिकों के लिए भी बड़ा कठिन हो रहा है।
फ्राँस के मोमिन्स नगर में एक बालक, जिसका वार्डिस, उसकी एक आँख भूरी है और दूसरी नीली। वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हैं कि यह कैसे संभव हुआ ?
1829 में लंदन का एक बालक चार्ल्स वर्थ जब 4 साल का हुआ तभी उसे दाढ़ी-मूंछ उग आयी। इतना ही नहीं उसका व्यवहार और बुद्धि भी बड़े मनुष्य जैसी ही थी। सात साल की उम्र में उसके बाल सफेद हो गये और आठवें साल का प्रारंभ होने पर वह मर गया। अभी तक वैज्ञानिकों की बुद्धि में यह बात समझ में नहीं आ रही है कि यह हुआ कैसे ?
फ्राँस में टुर कुईंग नामक नगर में एक ऐसी बालिका का जन्म हुआ, जिसकी सामान्य मनुष्य की तरह दो आँखें नहीं, वरन् जहाँ तिलक करते हैं आज्ञाचक्र में एक आँख है। सब हैरान हो रहे हैं कि एक आँख कैसे ? वह भी आज्ञाचक्र में !
सुमात्रा में एक ऐसा कुआँ है, जिसमें झाँकने पर दो प्रतिबिंब दिखते हैं। वास्तव में दिखना तो एक चाहिए, किन्तु दो दिखते हैं। उसमें भी एक अपना प्रतिबिंब दिखता है दूसरा किसी अन्य का… तो क्या दो व्यक्ति होते हैं ? नहीं, एक ही व्यक्ति के दो प्रतिबिंब दिखते हैं। यदि दो व्यक्ति झाँकेंगे तो 4 प्रतिबिंब दिखेंगे और तीन व्यक्ति झाँकेंगे तो 6 प्रतिबिंब दिखेंगे, वह भी दर्पण की तरह बिल्कुल स्पष्ट। हालाँकि नीचे कोई दर्पण नहीं लगा हुआ है।
फ्राँस के लेटले नामक स्थल पर एक बार एक किसान के खेत में विद्युत गिरने से उसकी भेड़ों में से सब काली भेड़ें मर गयीं किन्तु सफेद भेड़ों का बाल तक बाँका नहीं हुआ।
अमेरिका की एडिस्टन लाइब्रेरी में सन 1961 से वॉयलिन की ध्वनि सुनायी दे रही है। कई लोग जा-जाकर सुनकर आये हैं। वॉयलिन की ध्वनि जरूर सुनाई देती है किन्तु कौन बजाता है यह नहीं दिखता।
कुछ समय पहले की बात हैः भारत के मैसूर में एक दुष्ट राजा राज्य करता था। एक बार उसने किसी साधु से कुछ कहा, किन्तु उस साधु ने राजा की बात सुनी-अनसुनी कर दी। इससे कुपित होकर राजा ने साधु को प्राणदंड देने का आदेश कर दिया। प्राणदंड भी किस प्रकार का ? तोप से मार डालने का हुक्म कर दिया गया। इतना दुष्ट था वह राजा !
सैनिकों ने आज्ञा पालन किया। वे साधु को पकड़कर ले आये और तोप के मुँह पर उसे बिठाकर तोप दगा दी। साधु उछलकर हाथी के हौदे पर जा पहुँचे। राजा ने दुबारा पकड़कर तोप के मुँह पर बैठाकर तोप चलवायी तो एक ऊँची छत पर साधु जा पहुँचे किन्तु मरे नहीं। राजा और भड़का। उसने तीसरी बार पकड़वाकर तोप चलवायी। तीसरी बार भी साधु एक रेती के टीले पर जा बैठे।
जा के राखे साईंया मार सके नहीं कोई।
बाल न बाँका कर सके चाहे जग वैरी होई।.
अफगानिस्तान में काबुल के पास एक रेतीला स्थान है जहाँ घोड़ों के दौड़ने की आवाज आती है हालाँकि वहाँ घोड़े दिखते नहीं हैं। इसी प्रकार नगाड़ों के बजने की आवाज भी आती है। लोग छान-बीन करके थक गये किन्तु अभी तक इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके कि ये कैसे होता है ?
जो भी देखने में आ रहा है, जानने में आ रहा है, उससे भी कहीँ करोड़गुना अधिक विचित्रताएँ हैं किन्तु हमारी इन्द्रियाँ इतनी सक्षम नहीं है कि उन्हें जान पायें।
कैलिफोर्निया में एक बालू के टीले में से रोने की आवाज आती है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी उस स्थान पर जाकर आये किन्तु वे भी नहीं जान सके कि आवाज कहाँ से आती है… कैसे आती है।
हवाई द्वीप में एक टीले से कुत्ते के रोने की आवाज आती है। कोई कह सकता है कि मरकर कोई भूत बना होगा और रो रहा होगा इसलिए आवाज आती है। तो क्या कुत्ता भी मरकर भूत होता है क्या ?
दक्षिण अफ्रीका की दीवालों से अट्टहास्य की, जोर-जोर से हँसने की आवाज आ रही है। यूरोप के कुछ समुद्र तट ऐसे हैं, जहाँ मधुर संगीत की आवाज आती है किन्तु गाने बजाने वाले का कोई पता नहीं।
बिजनौर के निवासी रामअवतार शर्मा ने पुनर्जन्म का खंडन करते हुए 2000 पृष्ठ की किताब लिखी लेकिन उन्हीं के यहाँ एक ऐसा पुत्र पैदा हुआ जो पुनर्जन्म की बातें बताता था।
प्रकृति के रहस्य बड़े अनूठे हैं। कांगड़ा जिले के दादा सिरवा गाँव में एक किसान ने अपनी जमीन को ठीक करने के लिए एक पहाड़ी को खोदना शुरु किया। खोदते-खोदते उसे एक अदभुत पत्थर मिला। उसकी जाँच करने पर पता चला कि उस पर एक चिड़िया अंकित है। कोई कहेगाः “हो सकता है किसी ने पहले अपने महल में चिड़िया बनवायी हो और समय पाकर वह महल जमीनदोस्त हो गया हो, फिर खोदने पर वही चिड़िया मिली हो…ʹ किन्तु ऐसा नहीं है।
प्रकृति के पास भी ऐसी कला है, जिससे चिड़िया बन सके। भगवान कब, कहाँ, कैसे और क्या कर दें यह किसी की समझ में नहीं आता है।
बुद्धि को लड़ा-लड़ाकर, थककर अंत में जब कुछ समझ में नहीं आया, तब आईन्स्टाईन ने कहाः “मैं ईश्वर को मानता हूँ। इस अविज्ञात सृष्टि में, अविज्ञात अदभुत रहस्यों में ईश्वर की शक्ति ही परिलक्षित होती है।”
हरबर्ट स्पेन्सर ने कहाः “जिस शक्ति को मैं बुद्धि से परे मानता हूँ वह धर्म का खण्डन नहीं करती अपितु उसे अधिक बल पहुँचाती है।”
बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी ईश्वर की सत्ता को स्वीकार किये बिना नहीं रह सके। उऩ्होंने भी ईश्वर की सत्ता को माना है लेकिन आजकल जो लोग ईश्वर को नहीं मानते, जो नास्तिकता की ओर बढ़ रहे हैं उनकी सचमुच बड़ी दयनीय स्थिति है। बड़े-बड़े बुद्धिमान लोग भी भगवान की प्रकृति के रहस्य को ही नहीं जान पाते तो भगवान को भला इस बुद्धि से कैसे जाना जा सकता है ?
सोई जानइ जेहि देहु जनाई।
जानत तुम्हहि तुम्हहि होइ जाई।।
यह फल साधन ते न होई….
भगवान को केवल भगवान की कृपा से ही जाना जा सकता है। कोई सोचे कि अपने बलबूते पर भगवान को जान लें कि ʹनंगे पैर चलेंगे…. इतनी तीर्थयात्रा करेंगे इतना उपवास करेंगे… हम इतना साधन-भजन करेंगे…. इतनी माला घुमायेंगे…. हम इतना योग करेंगे… इतने-इतने नियम करके हम भगवान को पा लेंगे….ʹ तो यह बात बड़ी कठिन है। किन्तु यदि हो जाय सदगुरु कृपा, ईश्वर-कृपा तो यह कठिन-सा दिखने वाला काम, असंभव सा दिखने वाला काम भी सहज हो जाता है, सरल हो जाता है। जैसे राजा जनक, खट्वांग, परीक्षित, शबरी आदि के जीवन में हुआ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 1997, पृष्ठ संख्या 21,22,23 अंक 50
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