जब मुसीबत पड़ती है तब आपके अचेतन मन में क्या होता है ? यह जरा देखना यार ! जब मार पड़ती है तब ‘हाय !….’ निकलती है कि ‘हरि !….’ निकलता है, ‘डॉक्टर साहब !… इंजेक्शन….’ निकलता है कि ‘शिवोऽहम्… सब मिथ्या है’ यह निकलता है या इससे अलग कुछ निकलता है । यदि कचरा निकलता है तो जल्दी से बुहार कर सरिता में बहा देना क्योंकि सरिता में बाढ़ आयी है, बह जायेगा । किसका चिंतन निकलता है ? आकृति में विकृति दिखती है कि आकृति में सत्यस्वरूप दिखता है ? आकृति में निराकार दिखता है या निराकार में आकृति दिखती है ? यह आप अपने अंदर गहरा चिंतन करना । गायत्री का जप करते हैं तो संसार का कुछ माँगने के लिए करते हैं कि उससे माँगते हैं – धियो यो नः प्रचोदयात् । हमारी बुद्धि पवित्र हो । पवित्र बुद्धि में ही परमात्म-साक्षात्कार की क्षमता है ।
गायत्री जपना या न जपना कोई बड़ी बात नहीं । धनवान होना या निर्धन होना बड़ी बात नहीं लाला ! लाखों निर्धन भटकते है और हजारों-लाखों धनवान भी भटकते हैं । मंदिरों में जाना या फिल्मों में जाना कोई बड़ी बात नहीं । दूसरों के दुःख में आँसू बहाना और ‘हाय-हाय !….’ करके रोना कोई बड़ी बात नहीं । दूसरों को सुखी देखकर ईर्ष्या करना या दूसरों को सुखी देखकर सुखी हो जाना कोई बड़ी बात नहीं । देवता होकर स्वर्ण के विमान में घूमना या नरक में पापियों के साथ यातना सहना भी बड़ी बात नहीं । महाराज ! स्वर्ग में अमृतपान भी कोई बड़ी बात नहीं है । अमेरिका जाना और लौटकर आना या वहीं ग्रीनकार्ड लेकर बैठ जाना भी कोई बड़ी बात नहीं है ।
जहाँ में उसने बड़ी बात कर ली ।
जिसने अपने-आपसे मुलाकात कर ली ।।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2009, पृष्ठ संख्या 3 अंक 199
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