रोग-उपचार के भी विविध उपाय हैं- शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक । व्यक्ति इन तीन संसारों का नागरिक है । आध्यात्मिक शक्तिसम्पन्न व्यक्ति प्रत्येक स्तर के रोगों का उपचार कर सकता है किंतु जिस समय वह इसे अपना व्यवसाय बना लेता है, उसी उसकी संकल्पशक्ति क्षीण होकर मन बहिर्मुख हो जाता है ।
विक्षिप्त तथा संसार में लिप्त मन किसी भी प्रकार का उपचार करने के योग्य नहीं है । स्वार्थ के आते ही मन और उसकी शक्ति का पतन हो जाता है । आध्यात्मिक शक्ति का दुरुपयोग साधक की इच्छाशक्ति को नष्ट कर देता है । महापुरुषों का कहना है कि सभी शक्तियाँ ईश्वर की अनुचरी हैं । वे हमें केवल साधन के रूप में प्राप्त हैं ।
प्रत्येक मनुष्य को रोगों के उपचार की शक्ति प्राप्त है । सर्वरोगहारी शक्ति प्रत्येक मनुष्य के हृदय में प्रवाहित हो रही है । इच्छाशक्ति के सहयोग से इस रोगहारी शक्ति को व्यक्ति के व्याधिग्रस्त शरीर अथवा मन की ओर अभिमुख किया जा सकता है । यह रोगहारी शक्ति व्याधिग्रस्त व्यक्ति का उपचार करके उसे स्वास्थ्य प्रदान कर सकती है । स्वार्थरहित होना, प्रेम, इच्छाशक्ति तथा घट-घटवासी अविनाशी ईश्वर में अखंड-भक्ति यही रोग-शमन के रहस्यमय साधन हैं । – श्री उड़िया बाबा ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2009, पृष्ठ संख्या 24 अंक 201
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