परम उन्नति के शिखर पर पहुँचाने वाली महान सीढ़ीः विश्वगुरु भारत प्रकल्प

परम उन्नति के शिखर पर पहुँचाने वाली महान सीढ़ीः विश्वगुरु भारत प्रकल्प


विश्वगुरु भारत कार्यक्रमः 25 दिसम्बर से 1 जनवरी पर विशेष

भारत ही विश्वगुरु पद का अधिकारी क्यों ?

किसी भी व्यक्ति, जाति, राज्य. देश को जितने ऊँचे स्तर पर पहुँचना हो, उसके लिए उसे अपना दृष्टिकोण, कार्य, सिद्धान्त और हृदय भी उतना ही व्यापक रखना आवश्यक होता है । उसको व्यापक मांगल्य का भाव रखने के साथ-साथ संकीर्णता को दूर रखना जरूरी होता है । ऐसे उच्चातिउच्च सिद्धांत, भाव एवं कार्य भारतीय संस्कृति के मुख्य अंग हैं और ऐसे सिद्धान्तों को हृदय के अनुभव से प्रकट करने वाले, जीवन में उतारने वाले, लोगों के जीवन में भी उन सिद्धांतों को सुदृढ़ करने की क्षमता रखने वाले महापुरुष भी भारत में ही अधिक हुए हैं, हो रहे हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे । भगवान के अवतार भी भारत में ही होते रहे हैं और आगे भी होंगे । इस कारण भारत विश्वगुरु पहले भी था और फिर से उस पद पर आसान होने का अधिकारी भी है ।

प्रकल्प का उद्देश्य व नींव

अन्य देशों पर अपना आधिपत्य जमाना यह औपनिवेशिक सभ्यताका उद्देश्य व्यवहार करना, सबकी आध्यात्मिक उऩ्नति, सर्वांगीण उन्नति को महत्त्व देना तथा हर व्यक्ति अपने  वर्तमान जीवन के हरेक पल को आनंदमय, रसमय व प्रेममय बनाये, सबका वर्तमान में एवं भविष्य में भी मंगल हो, सम्पूर्ण विश्व एक सूत्र में, आत्मिक सूत्र में बँधे और सबका मंगल, सबका भला हो – यह भारतीय संस्कृति का उद्देश्य है और इसको जन-जन के जीवन में प्रत्यक्ष करना, साकार करना यह ‘विश्वगुरु भारत प्रकल्प’ का उद्देश्य है ।

इस प्रकल्प की नींव क्या है ? इसकी नींव है आध्यात्मिकता, ब्रह्मविद्या, योगविद्या, वेदांत-ज्ञान, वेदांत के अनुभवनिष्ठ महापुरुषों की अमृतवाणी, उनके अमिट एवं अकाट्य सिद्धांत, उनका जीवन, दर्शन और मंगलमय पवित्र प्रेम-प्रवाह, जो समस्त संसार को एक सूत्र में बाँधने में पूर्ण सक्षम है, हर दिल पर राज करने में सक्षम है । इसके अलावा दूसरी किसी भी नींव पर विश्व को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास करना बालू की नींव पर विशाल बहुमंजिला इमारत बनाने के समान निरर्थक एवं बालिश प्रयास है ।

इस प्रकल्प की आवश्यकता क्यों ?

भारत विश्वगुरु होते हुए भी कुछ सदियों से अपनी आत्ममहिमा को ही भूल गया ।

अधिकांश समाज अपना आत्मविश्वास एवं आत्मबल का धन खो बैठा । क्यों ? इसलिए कि वह अपने ब्रह्मवेत्ता संतों के सान्निध्य के महत्त्व व उनसे मिलने वाले वेदांतपरक सत्शास्त्रों के ज्ञान और सिद्धांतों को भूल गया । इससे वह अपनी सुषुप्त शक्तियों को जगाने की सर्वसुलभ पद्धति से विमुख हो गया । फलतः पाश्चात्य सभ्यता के बहिर्मुखतापोषक, भौतिकवादी संस्कारों व चकाचौंध की ओर आकर्षित हो गया ।

भारत को अपनी आत्ममहिमा पुनः जगाने हेतु भारत की एकता और परम उन्नति के प्रबल पक्षधर ब्रह्मनिष्ठ संत श्री आशाराम जी बापू ने ब्रह्मसंकल्प किया कि ‘भारत विश्वगुरु था और फिर से विश्वगुरु का प्रकाश भारत से फैलेगा ।’ और इसे साकार रूप देने हेतु संत श्री द्वारा व्यापक स्तर पर अनेक प्रकल्प शुरु हुए ।

दो परिवर्तन एक साथ

आज देश व विश्व में दो परिवर्तन एक साथ देखे जा रहे हैं । जहाँ एक और निर्दोष, पवित्र, राष्ट्रसेवी, विश्वसेवी ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष पूज्य बापू जी कारावास में हैं, बाल व युवा पीढ़ी का पतन करने वाले साधनों को बढ़ावा मिल रहा है – महा पतन का युग चल रहा है, वहीं दूसरी ओर इन्हीं महापुरुष एवं उनके शिष्यों के अथक प्रयासों से भारत को पुनः विश्वगुरु पद पर आसीन करने के प्रकल्प में लोगों की सहभागिता तेजी से बढ़ रही है । देश में हो रही आध्यात्मिक क्रान्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण है – पूज्य बापू जी द्वारा आरम्भ किये गये मातृ-पितृ पूजन दिवस, तुलसी पूजन दिवस, विश्वगुरु भारत कार्यक्रम आदि संस्कृतिरक्षक पर्वों में लोगों की  प्रतिवषर्ष बढ़ती जा रही सहभागिता तथा जन्मदिवस, होली, दीवाली, नूतन वर्ष व अन्य अनेक पर्वों को बापू जी के मार्गदर्शन अऩुसार प्राकृतिक, वैदिक रीति से मनाने की ओर समाज का मुड़ना, दीपावली अनुष्ठान शिविर में प्रतिवर्ष शिविरार्थियों की संख्या लगातार बढ़ना, इतने कुप्रचार के बाद भी गुरुपूर्णिमा पर प्रतिवर्ष आश्रमों में लोगों का हुजूम उमड़ना आदि ।

विश्वगुरु भारत कार्यक्रम

पूज्य बापू जी प्रणीत ‘विश्वगुरु भारत कार्यक्रम’ विश्वगुरु भारत प्रकल्प का ही एक भाग है । इसके अन्तर्गत ‘तुलसी पूजन दिवस, जप माला पूजन, सहज स्वास्थ्य एवं योग प्रशिक्षण शिविर, गौ-पूजन, गौ-गीता गंगा जागृति यात्राएँ, राष्ट्र जागृति यात्राएँ, व्यसनमुक्ति अभियान, सत्संग, कीर्तन, पाठ आदि कार्यक्रम 25 दिसम्बर से 1 जनवरी के बीच किये जाते हैं ।

यह कार्यक्रम इसी समय क्यों ?

यही वह समय है जब विश्व में सबसे ज्यादा नशाखोरी, आत्महत्याएँ, प्राणी-हत्याएँ होती हैं, तथा लोग डिप्रेशन में आ जाते हैं । यह झंझावात भारत के लोगों को पतनोन्मुख कर रहा था ।

भगवान और भगवत्प्राप्त महापुरुषों की यह एक बहुत बड़ी कला है कि वे पतन की सम्भावनाओं को धराशायी करके उसी पर  उत्थान की सीढ़ी बना देते हैं, विषाद को भी भगवत्प्रसाद पाने का विषादयोग बना देते हैं । पूज्य बापू जी कहते हैं- “हिम्मत, दृढ़ संकल्प और प्रबल पुरुषार्थ से ऐसा कोई ध्येय नहीं जो सिद्ध न हो सके । बाधाएँ पैरों तले कुचलने की चीज है । प्रेम और आनंद दिल से छलकाने की चीज है ।”

वैसे तो यह महापतन का युग है किंतु इऩ महापुरुष का पवित्र आत्मबल एवं दृढ़ संकल्प तो देखिये कि वे इस निकृष्ट काल को ही भारत को पुनः विश्वगुरु के पद पर आसीन करने के सुकाल के रूप में बदलने का भगीरथ प्रयास कर रहे हैं । देश को कुसंस्कारों की धारा व विकारी प्रेम में बहाने वाले वेलेंटाइन डे के ही काल को पूज्य बापू जी निष्काम, निर्विकारी, सच्चे प्रेम के आँसुओं से पवित्र करने वाले ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’ जैसे सुकाल के रूप में बदल रहे हैं ।

क्या चाहते हैं बापू आशाराम जी ?

बापू जी किसी एक जाति, धर्म, देश का ही उत्थान नहीं चाहते बल्कि ‘हिन्दु मुस्लिम सिक्ख ईसाई, बापू चाहें सबकी भलाई ।’ (श्री आशारामायण)

इसलिए ‘सबका मंगल, सबका भला ।’ यह दैवी सिद्धांत ब्रह्मवाणी के रूप में पूज्य बापू जी के श्रीमुख से और संकल्परूप में हृदय से प्रायः स्फुरित होता रहता है । बापू जी चाहते हैं कि ‘सबके बेटे-बेटियाँ संस्कारी हों, सब दुर्व्यसनों, अवसाद व आत्महत्याएँ से बचें । अपने जीवन में गीता-ज्ञान लायें, गौ-महिमा जानें, भगवन्नाम-जप का लाभ लें व संकीर्तन यात्रा निकालकर वैचारिक प्रदूषण को मिटा के वैचारिक क्रांति लायें । भगवन्नाम, भगवत्प्रेम व संकीर्तन से वातावरण में फैली नकारात्मकता को धो डालें और पूरे देश में एक ऐसा वातावरण बना दें कि जिसकी आभा में आने मात्र से, इस भारतभूमि पर कदम रखने मात्र से व्यक्ति के विचार बदलने लगें ।’

क्या होगा इस प्रकल्प का परिणाम ?

पूज्य बापू जी का यह दैवी प्रकल्प आज देशभर में सराहा जा रहा है और वैश्विक स्तर पर व्यापक होता जा रहा है । अनेक लोग इससे जुड़कर अपने जीवन को उन्नत बना रहे हैं और जो थोड़े बहुत लोग पाश्चात्य अंधानुकरण के मार्ग पर जा रहे थे, पूज्य श्री उनको फिर से अपनी सस्कृति और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करा रहे हैं ।

आप यदि पूज्य बापू जी के आश्रम में तो क्या, उस ओर जाने वाली निकट की सड़क पर भी कदम रखते हैं तो भी आप अपने विचारों में दिव्यता का अनुभव कर सकते हैं । असंख्य लोगों का यह प्रत्यक्ष अनुभव है । जब बापू जी के आश्रम की आभा में आने मात्र से ऐसा वैचारिक परिवर्तन होता है तो हम सब भारतवासी इन महापुरुष के इस ईश्वरीय प्रकल्प में जुड़कर एकजुट हो जायें तो वह दिन भी दूर नहीं जब भारत की पुण्यभूमि पर कदम रखने मात्र से पतित-से-पतित विचारों वाले के विचार भी पुण्यमय बनने लगें । उनके हृदय में बसा विकारी आकर्षण, स्वार्थ, अपराध-वृत्ति – यह सब मटियामेट हो के भगवत्प्रेम हिलोरे लेने लगे ।

प्रकल्प का विशेष लाभ लेना हो तो…..

पूज्य बापू जी का यह अकाट्य संकल्प पूरा होकर ही रहेगा पर हमें विशेष लाभ, आत्मसंतोष एवं रस तो तब मिलेगा जब हम भी इसमें निमित्त बनने का लाभ लेते हुए वर्तमान में भी रसमय आनंदमय होते जायें ।

पूज्य बापू जी द्वारा ‘विश्वगुरु भारत प्रकल्प’ के अंतर्गत चलाये जा रहे विभिन्न सेवा-प्रकल्पों से जुड़ के व औरों को जोड़ के आप भी परम लाभ के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं, स्वर्णिम इतिहास में अपनी भूमिका निभा सकते हैं ।

अधिक जानकारी हेतु सम्पर्कः

079 – 39877788, 27505010-11

ईमेलः ashramindia@ashram.org  – मनोज मेहेर

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 2, 28,29 अंक 312

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *