गुरुभक्तियोग की महत्ता – ब्रह्मलीन स्वामी शिवानंद जी

गुरुभक्तियोग की महत्ता – ब्रह्मलीन स्वामी शिवानंद जी


जिस प्रकार शीघ्र ईश्वर दर्शन के लिए कलियुग-साधना के रूप में कीर्तन साधना है, उसी प्रकार इस संशय, नास्तिकता, अभिमान और अहंकार के युग में योग की एक नयी पद्धति यहाँ प्रस्तुत है – गुरुभक्तियोग । यह योग अदभुत है । इसकी शक्ति असीम है । इसका  प्रभाव अमोघ है । इसकी महत्ता अवर्णनीय है । इस युग के लिए उपयोगी इस विशेष योग पद्धति के द्वारा आप इस हाड़-चाम के पार्थिव देह में रहते हुए ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन कर सकते हैं । इसी जीवन में आप उन्हें अपने साथ विचरण करते हुए निहार सकते हैं ।

साधना का बड़ा दुश्मन रजोगुणी अहंकार है । अभिमान को निर्मूल करने के लिए एवं विषमय अहंकार को पिघलाने के लिए गुरुभक्तियोग सर्वोत्तम साधनमार्ग है । जिस प्रकार किसी रोग के विषाणु निर्मूल करने के लिए कोई विशेष प्रकार की जंतुनाशक दवाई आवश्यक है, उसी प्रकार अविद्या, अहंकार और दुःख-दोषों को मिटाने के लिए गुरुभक्तियोग सबसे अधिक प्रभावशाली, अमूल्य और निश्चित प्रकार का उपचार है । वह सबसे अधिक प्रभावशाली दुःख-दोष और अहंकार नाशक है । गुरुभक्तियोग की भावना में जो सद्भागी शिष्य निष्ठापूर्वक सराबोर होते हैं, उन पर माया और अहंकार के रोग का कोई असर नहीं होता । इस योग का आश्रय लेने वाला व्यक्ति सचमुच भाग्यशाली है क्योंकि वह योग के अन्य प्रकारों में भी सर्वोच्च सफलता हासिल करेगा । उसको कर्म, भक्ति, ध्यान और ज्ञानयोग के फल पूर्णतः प्राप्त होंगे । गुरुप्रीति और गुरुआज्ञा से भरा दिल सहज में ही सफलता पाता है ।

इस योग में संलग्न होने के लिए तीन गुणों की आवश्यकता हैः निष्ठा, श्रद्धा और आज्ञापालन । पूर्णता के ध्येय में सन्निष्ठ रहो । संशयी और ढीले-ढीले मत रहना । अपने स्वीकृत गुरु में सम्पूर्ण श्रद्धा दृढ़ कर लेने के बाद आप समझने लगेंगे कि उनका उपदेश आपकी श्रेष्ठ भलाई के लिए ही होता है । अतः उनके शब्द का अंतःकरणपूर्वक पालन करो । उनके उपदेश का अक्षरशः अनुसरण करो । आप हृदयपूर्वक इस प्रकार करेंगे तो मैं विश्वास दिलाता हूँ कि आप पूर्णता को प्राप्त करेंगे ही । मैं पुनः दृढ़तापूर्वक विश्वास दिलाता हूँ ।

व्यर्थ के संकल्पों से बचने की कुंजी

व्यर्थ के संकल्प न करें । व्यर्थ के संकल्पों से बचने के लिए ‘हरि ॐ……’ के गुंजन का भी प्रयोग किया जा सकता है । ‘हरि ॐ….’ के गुंजन में एक विलक्षण विशेषता है कि उससे फालतू संकल्प-विकल्पों की भीड़ कम हो जाती है । ध्यान के समय भी ‘हरि ॐ…’ का गुंजन करें और शांत हो जायें । मन इधर-उधर भागे तो फिर गुंजन करें । यह व्यर्थ संकल्पों को हटायेगा एवं महा संकल्प (परमात्मप्राप्ति) की पूर्ति में मददरूप होगा ।

(आश्रम से प्रकाशित पुस्तक जीवनोपयोगी कुंजियाँ से)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2009, पृष्ठ संख्या 25 अंक 201

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