भोगों में चार दोष हैं । एक तो भोग सदा उपलब्ध नहीं रहते हैं । दूसरा उनको भोगने की रूचि भी सतत नहीं रहती है । तीसरा वे नष्ट हो जाते हैं और चौथा भोक्ता क्षीण होने लगता है । आदमी जितना अधिक भोग भोगेगा उतना बेचैन रहेगा, अशांत रहेगा, बिखरा हुआ रहेगा और उतना ही वह सहनशक्ति और सूझबूझ का धनी नहीं रहेगा तथा जितना कम भोग भोगेगा उतना वह शांत रहेगा, उतनी उसमें सहनशक्ति होगी ।
भोक्ता जितना ज्यादा भोगी होगा उतना वह बिखर जाता है, इसीलिए विलासी आदमी को, भोगी आदमी को, चंचल आदमी को जल्दी चिढ़ आती है । स्वभाव को हमेशा मधुर रखो एवं प्रसन्न रहो । चिढ़, शोक, चिंता को मत आने दो । जिंदगी के 65 साल में से 28-30 साल गुजर गये, बाकी 35-37 साल भी गुजर जायेंगे, ऐसा सोचके निश्चिंत होओ । निश्चिंत रहने से सूझबूझ अच्छी रहती है । ज्यादा चिंता ठीक नहीं । क्या करना, क्या नहीं करना – इसका चिंतन करना चाहिए, लेकिन चिंतन करके फिर आप थोड़े चिंतन से फारिग (मुक्त) हो जायें । चिंतन चिंता न बन जाय – सावधानी रखें, नहीं तो उसमें आप खो जावेंगे । चिंतन में खो मत जायें, नहीं तो भोक्ता क्षीण हो जायेगा ।
भोग भोगने चाहिए, मना नहीं है । मजे से खाओ, खूब चबा-चबाकर खाओ, रस लेते हुए खाओ लेकिन इतना खाओ कि ठीक से पचे, शरीर भारी न लगे, एसिडिटी (अम्लपित्त) न हो और आपको भविष्य में उससे रोग न हों । तो भोक्ता क्षीण न हो जाय – भोक्ता का स्वास्थ्य बना रहे, भोक्ता की अक्ल-सूझबूझ ठीक रहे ऐसा भोजन करो ।
देखो ऐसा, जिसे देखने से विकार उत्पन्न न हों, जिसे देखने से शक्तियाँ कम-से-कम क्षीण हों । आप जितना ज्यादा देखते हैं उतनी आँखों से आपकी रश्मियाँ क्षीण होती हैं । लोग फुटबाल मैच देखने जाते हैं, क्रिकेट मैच देखने जाते हैं… सब पूछो तो क्रिकेट खेलने वाले जो खिलाड़ी हैं वे दर्शक को सुख नहीं देते । स्वयं उन बेचारों के पास ही सुख नहीं है तो वे दर्शकों को सुख थोड़े ही देंगे ! खिलाड़ी खेलते हैं और आपके अंदर खेल की वासना छुपी है, मौका नहीं है खेलने का । आप सुबह मैच देखने आते हैं तब तरोताजा होते हैं और जब आप खेल देखने में तन्मय हो जाते हैं तब आपकी जो आभा, ऊर्जा या जीवनशक्ति की रश्मियाँ हैं वे नेत्रों से पसार होती हैं । जब नेत्रों से आपकी जीवनीशक्ति की रश्मियाँ क्षीण होने लगती हैं तब आपको सुख मिलता है । आप अधिक समय देखोगे तो थक जाओगे, ऊब जाओगे और दूसरा दिन आप नींद के लिए अथवा आराम के लिए खर्च करोगे ।
तो भोगों में चार दोष होते हैं-
1. वे भोक्ता को क्षीण करते हैं ।
2. सदा उपलब्ध नहीं रहते हैं ।
3. मन की उनके प्रति रूचि सदा नहीं रहती ।
4. वे नष्ट हो जाते हैं ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2009, पृष्ठ संख्या 16 अंक 203
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