कोई ईसाई नहीं चाहता कि ʹमेरी कन्या लोफरों की भोग्या हो जाय।ʹ कोई मुसलमान नहीं चाहता, ʹमेरी कन्या हवसखोरी की शिकार हो जायʹ और हिन्दू तो कैसे चाहेगा !
दिन-दहाड़े युवक युवती को, युवती युवक को फूल देगी, ʹआई लव यूʹ बोलेगी, एक-दूसरे को स्पर्श करेंगे तो रज-वीर्य नाश होगा, अकारण चश्मा आ जायेगा, जवानी खो देंगे। और लाखों—लाखों नहीं, करोड़ों-करोड़ों ऐसे युवक-युवतियों को तबाह होते देख मेरा हृदय द्रवित हो गया।
मैंने एकांत में सोचा कि इसका उपाय क्या है ? तो उपाय सुझाने वाले ने सुझा दिया कि ʹगंदगी से लड़ो नहीं, अच्छाई रख दो।ʹ इसलिए मैंने विचार रखा कि ʹवेलेन्टाइन डेʹ के विरोध की अपेक्षा 14 फरवरी के दिन गणेश जी की स्मृति करो और ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ मनाओ। आपका तीसरा नेत्र खुल जाय, सूझ-बूझ खुल जाये। और इस अच्छाई की सुवास तो ईसाइयों तक भी पहुँच रही है। कई मेरे ईसाई भक्त भी सहमत हैं, मुसलमान भी कर रहे हैं लेकिन इसको अभी और व्यापक बनाना है।
विश्व चाहता है, सभी चाहते हैं – स्वस्थ, सुखी, सम्मानित जीवन। बुद्धि में भगवान का प्रकाश हो, मन में प्रभु का प्रेम, मानवता का प्रेम हो, इन्द्रियों में संयम हो, बस हो गया ! आपका जीवन धनभागी हो जायेगा।
अपने पास खजाना है और यह खजाना विश्वात्मा की तरफ से सभी को मिले, इसीलिए मैंने 7 साल से यह प्रयत्न शुरु किया। अब इन संतों का साथ-सहकार मिलता जा रहा है। मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि सभी संत अपने-अपने भक्तों को प्रेरणा देंगे। वेलेंटाइन डे के निमित्त करोड़ों-करोड़ों की शराब बिकती है। हजारों-हजारों लड़के-लड़कियाँ वेलेंटाइन डे के दिन भाग जाते हैं। यह विकृति विदेशों में तो है लेकिन अपने देश में भी व्याप रही है, इसलिए इन संतों को श्रम देने का हमने साहस किया और संत भारत के युवक-युवतियों की जिंदगी बरबादी से बचे-ऐसे दैवी कार्य में सहभागी होने के लिए कहाँ-कहाँ से श्रम उठाकर आये हैं। इन सभी संतों का हम हृदयपूर्वक खूब-खूब धन्यवाद करते हैं, आभार मानते हैं क्योंकि संतों को भारत के लाल-लालियाँ तो अपने लगते हैं, विश्व के युवक-युवतियाँ भी अपने ही लगते हैं। पूरे विश्व के युवक-युवतियों की रक्षा हो, यही वैदिक संस्कृति है। किसी मजहब, किसी पंथवाली संस्कृति इन महानुभावों की नहीं है। ये मेरे हृदय की व्यथा अपनी व्यथा मानकर दौड़े-दौड़े चले आये हैं। ʹवेलेंटाइन डेʹ के नाम पर शराब पीना, आत्महत्या करना इसके आँकड़े सुनते हैं तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इन सभी संतों को आशाराम बापू के साथ स्नेह है, बापू के उद्देश्य के साथ भी इनको बड़ा भारी स्नेह है इसलिए जरा-से आमंत्रण से चले आये हैं।
साँच को आँच नहीं और झूठ को पैर नहीं।
यह झूठी परम्परा (वेलेंटाइन डे) मनाने वालों की दुर्दशा से हमारा हृदय व्यथित होता है, लाखों का हृदय व्यथित होता है। तो देर-सवेर यह गंदी परम्परा हमारे भारत से जाय…. इसलिए मानवमात्र के कल्याण का उद्देश्य रखकर ʹप्रेरणा-सभाʹ पिछले साल भी हुई और इस बार भी हुई और होती रहेगी। अमेरिका में 100 जगहों पर पूजन दिवस के बड़े-बड़े कार्यक्रम होंगे। बच्चे अपने माता-पिता का पूजन करें, तिलक करें, प्रदक्षिणा करें और माँ बाप बच्चों को तिलक करें और हृदय से लगायें। वैसे भी माँ-बाप का हृदय तो उदार होता है, वे ऐसे ही कृपा बरसाते रहते हैं ! लेकिन जब बच्चा कहता है न, “माँ ! तुम मेरी हो न ?” तो माँ की खुशी का ठिकाना नहीं रहता, “पिता जी ! तुम मेरे हो न ?” तो पिताजी का हृदय द्रवित हो जाता है। अगर ʹमातृ-पितृदेवो भवʹ करके नमस्कार करेगा तो माँ-बाप का आत्मा भी तो बच्चों पर रसधार, करूणा-कृपा बरसायेगा एवं मेरे भारत की कन्याएँ और मेरे भारत के युवक महान बनेंगे।
हम तो चाहते हैं कि ईसाइयों का भी मंगल हो, मुसलमानों का भी मंगल हो, मानवता का मंगल हो। इसलिए इन मंगल संदेश देने वाले संतों का साथ-सहकार लेकर लोगों के जीवन में उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम जैसे दिव्य गुण आयें, ऐसा यह प्रयास किया है। जिनके जीवन में ये छः सदगुण होते हैं, परमात्मा पद-पद पर उनको सहायता करता है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2013, पृष्ठ संख्या 11,12 अंक 241
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