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आयु अनुसार विशेष आहार


शरीर को स्वस्थ व मजबूत बनाने के लिए प्रोटीन्स, विटामिन्स व खनिज (Minerals) युक्त  पोषक पदार्थों की आवश्यकता जीवनभर होती है। विभिन्न आयुवर्गों हेतु विभिन्न पोषक तत्त्व जरूरी होते हैं, किस उम्र में कौन-सा तत्त्व सर्वाधिक आवश्यक है यह दिया जा रहा है।

जन्म से लेकर 5 वर्ष की आयु तकः इस उम्र में बच्चों के स्वस्थ शरीर तथा मजबूत हड्डियों के लिए विटामिन ʹडीʹ जो कैल्शियम ग्रहण करने में मदद करता है व लौह तत्त्व अत्यावश्यक होता है। विटामिन ʹडीʹ की पूर्ति में दूध, घी, मक्खन, गेहूँ, मक्का जैसे पोषक पदार्थ तथा प्रातःकालीन सूर्य की किरणें दोनों अत्यंत मददरूप होते हैं। किसी एक की भी कमी होने से बच्चों की हड्डियाँ कमजोर व पतली रह जाती हैं, वे सूखा रोग से ग्रस्त हो जाते हैं। लौह तत्त्व की कमी से बुद्धि का स्तर भी कम रहता है, अतः स्तनपान छुड़ाने के बाद बच्चों के आहार में लौह व विटामिन ʹडीʹ युक्त पदार्थ जरूर शामिल करने चाहिए।

6 से 19 वर्ष की आयु तकः 6 से 12 वर्ष की आयु बाल्यावस्था और 13 से 19 वर्ष की आयु किशोरावस्था है। इस आयु में शरीर तथा हड्डियों का तेजी से विकास होता है इसलिए कैल्शियम की परम आवश्यकता होती है। बड़ी उम्र में हड्डियों की मजबूती इस आयु में लिए गये कैल्शियम की मात्रा पर निर्भर रहती है। दूध, छाछ, दही, मक्खन, तिल, मूँगफली, अरहर, मूँग, पत्तागोभी, गाजर, गन्ना, संतरा, शलजम, सूखे मेवों व अश्वगंधा में कैल्शियम खूब होता है। आहार-विशेषज्ञों के अनुसार इस आयुवर्ग को कैल्शियम की आपूर्ति के लिए प्रतिदिन एक गिलास दूध अवश्य पीना चाहिए।

इस उम्र में लौह की कमी से बौद्धिक व शारीरिक विकास में रूकावट आती है। राजगिरा, पालक, मेथी, पुदीना, चौलाई आदि हरी सब्जियों एवं खजूर, किशमिश, मुनक्का, अंजीर, काजू, खुरमानी आदि सूखे मेवों तथा करेले, गाजर, टमाटर, नारियल, अंगूर, अनार, अरहर, चना, उड़द, सोयाबीन आदि पदार्थों के उपयोग से लौह तत्त्व की आपूर्ति सहजता से की जा सकती है।

किशोरावस्था में प्रजनन क्षमता के विकास हेतु जस्ता () एक महत्त्वपूर्ण खनिज है। सभी अनाजों में यह पाया जाता है। इस आयु में खनिज की कमी से  बालकों का स्वभाव हिंसक व क्रोधी हो जाता है तथा बालिकाओं में भूख की कमी एवं मानसिक तनाव पैदा होता है। अनाज, दालों, सब्जियों व कंदमूलों (गाजर, शकरकंदी, मूली, चुकन्दर आदि) में खनिज विपुल मात्रा में होते हैं।

20 से 30 वर्ष की आयु तकः इस युवावस्था में सर्वाधिक आवश्यकता होती लौह तत्त्व, एंटी-ऑक्सीडैन्टस, फॉलिक एसिड तथा विटामिन ʹईʹ व ʹसीʹ की।

लौह तत्त्वः मासिक धर्म के कारण पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को लौह तत्त्व की दोगुना जरूरत होती है।

एंटी-ऑक्सीडैंट्सः कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त होने से बचाने हेतु तथा स्त्री-पुरुषों के प्रजनन-संस्थान को स्वस्थ बनाये रखने के लिए एंटी-ऑक्सीडेन्टस आवश्यक होते हैं। आँवला, मुनक्का, अंगूर, अनार, सेवफल, जामुन, बेर, नारंगी, आलूबुखारा, स्ट्राबेरी, रसभरी, पालक, टमाटर में एंटी-आक्सीडेंट्स अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। फलों के छिलके व बिना पकाये पदार्थ जैसे सलाद चटनी आदि में भी ये विपुल मात्रा में होते हैं। अन्न को अधिक पकाने से वे घट जाते हैं।

फॉलिक ऐसिड- महिलाओं में युवावस्था में प्रारम्भिक गर्भावस्था में फॉलिक एसिड की भी आवश्यकता होती है। यह फूलगोभी, केला, संतरा, सेम पत्तेदार हरी सब्जियों, खट्टे-रसदार फलों, आड़ू, मटर, पालक, फलियों व शतावरी आदि में पाया जाता है।

विटामिन ʹʹपुरुषों में पुंसत्वशक्ति व स्त्रियों में गर्भधारण क्षमता बनाये रखने के लिए इसकी आवश्यकता होती है। यह हृदय व रक्तवाहिनियों को स्वस्थ रखकर रक्तदाब नियंत्रित रखता है। इससे गम्भीर हृदयरोगों से रक्षा होती है। अंकुरित अनाज, वनस्पतिजन्य तेल (तिल, मूँगफली, सोयाबीन, नारियल तेल आदि) व सूखे मेवे विटामिन ई के अच्छे स्रोत हैं। एक चुटकी तुलसी के बीज रात को भिगोकर सुबह सेवन करने से भी विटामिन ई प्राप्त होता है।

विटामिन ʹसीʹरक्त को शुद्ध व रक्तवाहिनियों को लचीला बनाये रखने के तथा हड्डियों की मजबूती के लिए यह आवश्यक है। संतरा, आँवला, नींबू, अनानास, आदि खट्टे व रसदार फल, टमाटर, मूली, पपीता, केला, अमरूद, चुकंदर आदि में यह अच्छी मात्रा में पाया जाता है।

31 से 50 वर्ष की आयु तकः इस प्रौढ़ावस्था के दौरान कैल्शियम, विटामिन ई और फॉलिक एसिड की आवश्यकता अधिक होती है। फॉलिक एसिड व विटामिन ई हृदयरोगों की सम्भावनाओं को कम करते हैं

महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद इस्ट्रोजन हार्मोन स्रावित होना बंद हो जाता है, जिसके अभाव में कैल्शियम का अवशोषण मंद पड़ जाता है, अतः रजोनिवृत्ति के बाद हड्डियों को कमजोर होने से बचाने के लिए कैल्शियमयुक्त पदार्थों की जररूत अधिक होती है।

51 से 70 वर्ष या इससे ऊपर की आयुः इस उम्र के दौरान कोशिकाओं में होने वाले वार्धक्यजन्य परिवर्तनों को रोकने के लिए एंटी-आक्सीडेंट्स सहायक तत्त्व हैं। इनके अभाव में लकवा, हृदयरोग तथा ज्ञानतंतु व ज्ञानेन्द्रियों की दुर्बलता एवं कैंसर होने की सम्भावना अधिक होती है। वृद्धावस्था में रक्तचाप को सामान्य रखने में पोटाशियमयुक्त पदार्थ लाभदायी हैं। फलों और सब्जियों, खुरमानी, आलूबुखारा, आड़ू, मुनक्का, खजूर, सूखे नारियल आदि में पोटाशियम समुचित मात्रा में मौजूद होता है। इस आयु में दूध, फल और सब्जियों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।

इस प्रकार आयु अनुसार आहार लेने से व्यक्ति स्वस्थ रोगमुक्त रहता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2013, पृष्ठ संख्या 30,31 अंक 248

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संत की करें जो निंदा, उन्हें होना पड़े शर्मिन्दा


(संत तुलसीदास जी जयंतीः 13 अगस्त)

संत तुलसीदास जी काशी में प्रवचन करते थे। दूर-दूर तक उनकी ख्याती फैल चुकी थी। कहते हैं जहाँ गुलाब वहाँ काँटे, जहाँ चन्दन वहाँ विषैले सर्प, ऐसे ही जहाँ सर्वसुहृद लोकसंत वहाँ निंदक-कुप्रचारकों का होना स्वाभाविक है। उसमें भी विधर्मियों की साजिश के तहत हमारे ही संतों के खिलाफ, संस्कृति व परम्पराओं के खिलाफ हमारे ही लोगों को भड़काने का कार्य अनेक सदियों से चलता आया है। काशी में तुलसीदासजी की बढ़ती ख्याति देखकर साजिशों की श्रृंखला को बढ़ाते हुए काशी के कुछ पंडितों को तुलसीदासजी के खिलाफ भड़काया गया। वहाँ कुप्रचारकों का एक टोला बन गया, जो नये-नये वाद-विवाद खड़े करके गोस्वामी जी को नीचा दिखाने में लगा रहता था। परंतु जैसे-जैसे कुप्रचार बढ़ता, अनजान लोग भी सच्चाई जानने के लिए सत्संग में आते और भक्ति के रस से पावन होकर जाते, जिससे संत का यश और बढ़ता जाता था।

अपनी सारी साजिशें विफल  होती देख विधर्मियों ने कुप्रचारक पंडितों के उस टोले को ऐसा भड़काया कि उऩ दुर्बुद्धियों ने गोस्वामी जी को काशी छोड़कर चले जाने के लिए विवश किया। प्रत्येक परिस्थिति में राम-तत्त्व का दर्शन व हरि-इच्छा की समीक्षा करने वाले तुलसीदास जी काशी छोड़कर चल दिये। जाते समय उन्होंने एक पत्र लिख के शिवमंदिर के अंदर रख दिया। उस पत्र में लिखा था कि ʹहे गौरीनाथ ! मैं आपके नगर में रहकर रामनाम जपता था और भिक्षा माँगकर खाता था। मेरा किसी से वैर-विरोध, राग-द्वेष नहीं है परंतु इस चल रहे वाद-विरोध में न पड़कर मैं आपकी नगरी से जा रहा हूँ।ʹ

भगवान भोलेनाथ संत पर अत्याचार कैसे सह सकते थे ! संत के जाते ही शिवमंदिर के द्वार अपने-आप बन्द हो गये। पंडितों ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया पर द्वार न खुले। कुछ निंदकों के कारण पूरे समाज में बेचैनी-अशांति फैल गयी, सबके लिए संत-दर्शन व शिव-दर्शन दोनों दुर्लभ हो गये। आखिर लोगों ने भगवान शंकर से करुण प्रार्थना की। भोलेनाथ ने शिवमंदिर के प्रधान पुजारी को सपने में आदेश दियाः “पुजारी ! स्वरूपनिष्ठ संत मेरे ही प्रकट रूप होते हैं। तुलसीदास जी का अपमान कर निंदकों ने मेरा ही अपमान किया है। इसीलिए मंदिर के द्वार बंद हुए हैं। अगर मेरी प्रसन्नता चाहते हो तो उन्हें प्रसन्न कर काशी में वापस ले आओ वरना मंदिर के द्वार कभी नहीं खुलेंगे।”

भगवान अपना अपमान तो सह लेते हैं परंतु संत का अपमान नहीं सह पाते। निंदक सुधर जायें तो ठीक वरना उऩ्हें प्रकृति के कोप का भाजन अवश्य बनना पड़ता है।

अगले दिन प्रधान पुजारी ने सपने की बात पंडितों को कह सुनायी। समझदार पंडितों ने मिलकर संत की निंदा करने वाले दुर्बुद्धियों को खूब लताड़ा और उन्हें साथ ले जाकर संत तुलसीदासजी से माफी मँगवायी। सभी ने मिलकर गोस्वामी जी को काशी वापस लौटने की करूण प्रार्थना की। संत श्री के मन में तो पहले से ही कोई वैर न था, वे तो समता के ऊँचे सिंहासन पर आसीन थे। करूणहृदय तुलसीदासजी उन्हें क्षमा कर काशी वापस आ गये। शिवमंदिर के द्वार अपने-आप खुल गये। संत दर्शन और भगवद्-दर्शन से सर्वत्र पुनः आनंद-उल्लास छा गया।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2013, पृष्ठ संख्या 15, अंक 247

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शिष्य को जोड़े सदगुरु सेः संप्रेषण शक्ति


पूज्य बापू जी

शरीर का श्रृंगार तो रात को बिखर जाता है लेकिन अपने ʹमैंʹ का श्रृंगार तो मौत के बाद भी सुवास देता है। जैसे शबरी का शरीर तो मर गया लेकिन उसके श्रृंगार की सुवास अभी भी है। की बार शिष्यों को सपने में गुरु प्रेरणा देते हैं। कई बार ध्यान में प्रेरणा देते हैं। कई बार भावों से भरा हुआ शिष्य जो कहता है वैसा हो जाता है अथवा जो होने वाला होता है, शिष्य को पूर्व-सूचना मिल जाती है। ऐसी-ऐसी गुरु-शिष्यों के संबंधों की कई ऐतिहासिक गाथाएँ हैं। ये घटनाएँ ʹसंप्रेषण शक्तिʹ के प्रभाव से होती है।

संप्रेषण शक्ति का आभास तब होता है जब शिष्य मनोमय और विज्ञानमय शरीर में पहुँचता है। अन्नमय शरीर (स्थूल शरीर) और प्राणमय शरीर से तो वह आता है लेकिन गुरु के सान्निध्य में एकाकार होकर शिष्य मनोमय और विज्ञानमय शरीर में पहुँचता है।

संप्रेषण शक्ति का माध्यमः गुरुमंत्र

जैसे मोबाइल फोन के टावर से तुम्हारे मोबाइल में ध्वनि की विद्युत चुम्बकीय तरंगे आती हैं तो बीच में सिम कार्ड की व्यवस्था है, ऐसे ही गुरु और ईश्वर की अध्यात्म-शक्ति की तरंगे जिस सिम कार्ड से शिष्य के अंदर संचार करती हैं उसका नाम है गुरुमंत्र। सिम कार्ड तो एक्सपायर हो जाता है और मनुष्य का बनाया हुआ है लेकिन मंत्र मनुष्य का बनाया हुआ नहीं है। ऋषि मंत्र के द्रष्टा हैं, ऋषियों ने भी नहीं बनाया है। गुरु जब मंत्र देते हैं तो मनोमय और विज्ञानमय शरीर के साथ आत्मिक स्तर पर गुरु-शिष्य का संबंध हो जाता है। मंत्र एक माध्यम बन जाता है, जोड़ देता है गुरु की शक्ति के साथ। गुरु मंत्रदीक्षित साधक को संप्रेषित कर देते हैं। बौद्धिक प्रदूषणों से दूर कर देते हैं। उसके द्वारा कोई गलती होती है तो तुरंत उसको एहसास होता है। जो निगुरा है वह गलत करेगा तो भी उसे गलती नहीं लगेगी। सगुरा गलत करेगा तो उसको गलती दिखेगी, उसकी बुद्धि में गुरुमंत्र का प्रकाश है। गुरुमंत्र के प्रकाश से चित्त ऐसा प्रकाशित होता है कि विज्ञान की वहाँ दाल नहीं गलती। विश्लेषण, गणित और आधुनिक विज्ञान से यह अलग प्रकाश है।

जैसे पयहारी बाबा को पृथ्वीराज चौहान न कहा किः “मैं आपको द्वारिका ले जाऊँगा।”

वे बोलेः “तू क्या ले जायेगा ! मैं तुझे ले जाऊँगा।”

बाबा रात को पृथ्वीराज चौहान के कमरे में प्रकट हो गये। पृथ्वीराज चौहान को द्वारिकाधीश का दर्शन करा के सुबह होने के पहले अपने कमरे में पहुँचा दिया। यहाँ विज्ञान तौबा पुकार जायेगा। मेरे गुरुजी मुझे याद करके कुछ दे रहे हैं, तुरंत पता चल जाता। ऐसे ही कोई शिष्य याद करता है तो गुरु के चित्त में उसका स्फुरण हो जाता है।

यह जो गुरुओं की परम्परा है और संप्रेषण शक्ति से रूपांतरण है, वह और किसी साधन से नहीं हो सकता है। संत तुलसीदास जी कहते हैं-

यह फल साधन ते न होई।

गुरुकृपा ही केवलं शिष्यस्य परं मंगलम्।

परम मंगल तो गुरु की कृपा से ही होता है, बिल्कुल पक्की बात है। मेरा तो क्या, मेरे जैसे अऩेक संतों का अनुभव है।

सपने में गुरुदर्शन देता अदभुत संकेत

सपने में सिर पर गुरु जी हाथ रख रहे हैं तो यह समझ लेना कि गुरु जी का आशीर्वाद आया है। सपने में गुरु जी से बात कर रहे हैं तो समझो गुरु जी सूझबूझ का धन देना चाहते हैं। सपने में गुरुजी को हम स्नेह कर रहे हैं तो प्रेमाभक्ति का प्रकाश होने वाला है। अगर आप सपने में चाहते हैं कि हमारे सिर पर गुरु जी हाथ रखें तो आपके अंदर आशीर्वाद पचाने की क्षमता आ रही है। यह इसका गणित है। अगर आपकी आँखें गुरुजी सपने में बंद कर देते हैं तो आपको स्थूल दृष्टि से पार सूक्ष्म दृष्टि गुरु जी देना चाहते हैं। सपने में गुरुजी तुमसे या किसी से बात करते हुए दिखते हैं तो मानो तुम पर बरसना चाहते हैं।

भक्ति आरम्भ में मंदिर, गिरजाघर, पूजा-स्थल पर होती है लेकिन सच्ची भक्ति सदगुरु की दीक्षा के बाद शुरु होती है। उसके पहले तो के.जी. में सफाई करना होता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2013, पृष्ठ संख्या 20,21 अंक 247

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