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आश्रम का कुप्रचार करने वालों को सर्वोच्च न्यायालय का करारा तमाचा


5 वर्ष पूर्व जुलाई 2008 में संत श्री आशारामजी गुरुकुल, अहमदाबाद में पढ़ने वाले दो बच्चों की अपमृत्यु के मामले को लेकर आजकल कुछ चैनलों पर समाज को गुमराह करने वाली झूठी खबरें चलायी जा रही हैं, जबकि सच्चाई इस प्रकार हैः

इस मामले में 9-11-2012 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में आश्रम के सात साधकों पर आपराधिक धारा 304 लगाने की गुजरात सरकार की याचिका को खारिज कर दिया था। मामले की सीबीआई से जाँच कराने की माँग को भी ठुकरा दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात उच्च  न्यायालय के फैसले को मान्य रखा था।

न्याय सहायक विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल), शव परीक्षण (पोस्टमार्टम) आदि कानूनी एवं वैज्ञानिक रिपोर्टें बताती हैं कि बच्चों के शरीर के अंगों पर मृत्यु से पूर्व किसी भी प्रकार की चोटें नहीं थीं। दोनों ही शवों में गले पर कोई भी जख्म नहीं था। सिर के बालों का मुंडन या हजामत नहीं की गई थी। बच्चों के साथ किसी ने सृष्टिविरुद्ध कृत्य (सेक्स) नहीं किया था। बच्चों के शरीर में कोई भी रासायनिक विष नहीं पाया गया।

एफएसएल रिपोर्ट में स्पष्टरूप से उल्लेख किया गया है कि दोनों बच्चों के शवों पर जानवरों के दाँतों के निशान पाये गये अर्थात् शवों के अंगों को निकाला नहीं गया था अपितु वे जानवरों द्वारा क्षतिग्रस्त हुए थे। दोनों बच्चों पर कोई भी तांत्रिक विधि नहीं की गयी थी। पुलिस, सीआईडी क्राइम और एफएसएल की टीमों के द्वारा आश्रम तथा गुरुकुल की बार-बार तलाशी ली गयी, विडियोग्राफी की गयी, विद्यार्थियों, अभिभावकों तथा साधकों से अनेकों बार पूछताछ की गयी परंतु उनको तांत्रिक विधि से संबंधित कोई सबूत नहीं मिला।

जाँच अधिकारी द्वारा धारा 160 के अंतर्गत विभिन्न अखबारों एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों तथा सम्पादकों को उनके पास उपलब्ध जानकारी इकट्ठी करने के लिए ‘समन्स’ दिये गये थे। ‘सूचना एवं प्रसारण विभाग, गांधीनगर’ द्वारा अखबार में प्रेस विज्ञप्ति भी दी गयी थी कि ‘किसी को भी आश्रम में यदि किसी भी प्रकार की संदिग्ध गतिविधि अथवा घटना होती है – ऐसी जानकारी हो तो वह आकर जाँच अधिकारी को जानकारी दे।’ यह भी स्पष्ट किया गया था कि ‘जानकारी देने वाले उस व्यक्ति को पुरस्कृत किया जायेगा एवं उसका नाम गुप्त रखा जायेगा।’ इस संदर्भ में कोई भी व्यक्ति सामने नहीं आया।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी जाँच आयोग में बयानों के दौरान आश्रम पर झूठे, मनगढंत आरोप लगाने वाले लोगों के साथ झूठ का भी विशेष जाँच में पर्दाफाश हो गया। लगातार 5 वर्षों तक जाँच करने के पश्चातत 1 अगस्त 2013 को न्यायमूर्ति श्री डी.के.त्रिवेदी जाँच आयोग ने अपनी जाँच रिपोर्ट गुजरात सरकार को सौंप दी है। कुछ मीडिया में आयी खबर के अनुसार इस रिपोर्ट में आश्रम पर लगाये गये झूठे आरोपों को नकार दिया गया है और आश्रम को क्लीन चिट दी गयी है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 9, अंक 251

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आप किस पर विश्वास करोगे ?


महानिर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी श्री नित्यानंद जी महाराज

मैंने बापू जी के केस का पूरी तरह से अध्ययन किया है और सारी जानकारी ली है।  मैंने कुछ डॉक्टरों से भी परामर्श लिया जो इस तरह की  मेडिकल रिपोर्ट बनाते हैं। मैंने उनसे इस रिपोर्ट के आधार पर कानूनी अभिप्राय माँगा तो उन्होंने कहाः “स्वामी जी ! मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर हम 100 प्रतिशत, निश्चित रूप से कह सकते हैं कि न रेप है न ही रेप की कोशिश की गयी है और यौन उत्पीड़न का केस भी नहीं है क्योंकि किसी भी नाबालिक की त्वचा बहुत ही मुलायम होती है और अगर कोई उत्पीड़न होता तो उसके निशान रहते।”

आप समझते हो ! 12-13 साल पहले कोई तथाकथित घटना होती है। कोई महिला आती है और वह कहती है तो आप उस पर विश्वास करोगे या फिर उस पुरुष पर जिसने अपना पूरा जीवन विश्व-कल्याण के लिए लगा दिया ? वे बोल रहे हैं 2002 में घटना घटी। वे सब स्पष्ट रूप से जानते हैं कि उनका केस न्याययालय में नहीं टिक पायेगा। 11-12 वर्ष तक किसी भी महिला का चुप रहना असम्भव है। अब 2013 चल रहा, 11-12  साल के बाद वे आते हैं और झूठा मामला दर्ज कराते हैं।

पुलिस भी जानती है कि यह केस न्यायालय में जाने लायक नहीं है। शायद पुलिस इस केस में चार्जशीट भी दायर नहीं करेगी।

तथाकथित हिन्दू गुरु, जिन्होंने आशाराम बापू और अन्य हिन्दू गुरुओं को दुर्वचन कहे, उनसे आपको प्रश्न पूछना चाहिए, उनको पाठ सिखाना चाहिए। अभी  मैं यहाँ  महानिर्वाणी अखाड़े का  महामंडलेश्वर होने के नाते अपना पक्ष स्पष्ट रूप से रखता हूँ कि किसी भी हिन्दू संत को यह अधिकार नहीं है कि वे किसी दूसरे हिन्दू संत की निंदा करें। उनमें से बहुत लोग जो आशारामजी बापू पर टीका-टिप्पणी कर रहे हैं, वे संत ही नहीं हैं। उनकी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की कि ‘आशारामजी बापू संत नहीं हैं !’ अब मैं कहता हूँ कि जो भी बापू की निंदा कर रहे हैं, वे संत नहीं हैं।

सभी भक्त और शिष्य यह स्पष्ट रूप से निर्णय कर लें (और अपने गुरु से कहें) कि ‘यदि आप दूसरे हिन्दू गुरुओं की निंदा  करेंगे तो हम आपका बहिष्कार करेंगे।’ अगर आप इस समय आशाराम जी बापू का समर्थन नहीं करना चाहते तो कम-से-कम चुप रहो। मैं आपको और पूरे देश को स्पष्ट रूप से कह रहा हूँ – जो बापू जी को गलत बता रहे हैं, मैं उन गुरुओं को जिन्हें लोग ‘गुरु’ कहते हैं, ‘गुरुजी’ कहते हैं, इस समय चुनौती देता हूँ….. मैं उनसे एक सीधा प्रश्न पूछता हूँ कि क्या आपने भक्तों की प्रेरणा को जीवित रखने के लिए आशारामजी बापू का उपयोग नहीं किया है ? क्या आपने उनके कठिन परिश्रम से लाभ नहीं लिया है ? तो फिर आपको उनके कठिन परिश्रम के प्रति कृतज्ञता क्यों नहीं है ? आप लोग कम्युनिस्ट और नास्तिक संस्था के नेताओं की तरह बात कर रहे हैं। आप समझो ! आप लोग आस्था पर आधारित संस्था के अधिष्ठाता हो। अगर हमें ईमानदारी पूर्वक विश्वास है कि यह सब झूठ है तो हमें आशारामजी बापू का समर्थन करना चाहिए। अगर विश्वास नहीं है, अगर संदेह है तो कम-से-कम चुप रहें।

तुम क्यों सब जगह जा-जाकर गलत बोल रहे हो जबकि न्यायालय में अभी तक कुछ भी साबित नहीं हुआ है। तुम न्यायालय के निर्णय आने तक इंतजार क्यों नहीं करते ? तुम वक्तव्य देने के लिए उतावले क्यों हो रहे हो ? अगर आपको लगता भी है कि कुछ हुआ है तो जब तक  न्यायालय निर्णय न ले ले तब तक चुप रहिये।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 11, अंक 251

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साजिश को सच का रूप देने की मनोवैज्ञानिक रणनीति


शिल्पा अग्रवाल, प्रसिद्ध मनोविज्ञानी

संत श्री आशारामजी बापू के खिलाफ जो षड्यन्त्र चल रहा है, उसका मनोवैज्ञानिक तरीके से किस तरह से सुनियोजन किया गया है, यह मैं एक मनोविज्ञानी होने के नाते बताना चाहती हूँ। आठ मुख्य पहलू समझेंगे कि किस तरह इस साजिश को सच का मुखौटा पहनाया जा रहा है।

जनता के विशिष्ट वर्गों पर निशानाः समाज के शिक्षित, जागरूक, उच्च एवं मुख्यतः युवा वर्ग को निशाना बनाया गया क्योंकि इनको विश्वास दिलाने पर ये तुरन्त प्रतिक्रिया करते हैं।

षड्यन्त्र का मुद्दाः देश की ज्वलंत समस्या ‘महिलाओं पर अत्याचार’ मुख्य मुद्दा बनाया है। इस भावनात्मक विषय पर हर कोई तुरन्त प्रतिक्रिया दे के विरोध दर्शाता है।

रणनीतिः  चीज को यथापूर्ण, विश्वसनीय, प्रभावशाली दिखाने जैसी मार्केटिंग रणनीति का उपयोग करके दर्शकों को पूरी तरह से प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है।

दर्शक मनोविज्ञान का भी दुरुपयोग किया जा रहा है। कोई विज्ञापन हमें पहली बार पसंद नहीं आता है  लेकिन जब हम बार-बार उसे देखते हैं तो हमें पता भी नहीं चलता है कि कब हम उस विज्ञापन को गुनगुनाने लग गये। बिल्कुल ऐसे ही बापू जी के खिलाफ इस बोगस मामले को बार-बार दिखाने से दर्शकों को असत्य भी सत्य जैसा लगने लगता है।

प्रस्तुतिकरण का तरीकाः पेड मीडिया चैनलों के एंकर  आपके ऊपर हावी होकर बात करना चाहते हैं। वे सिर्फ खबर को बताना नहीं चाहते बल्कि सेकंडभर की फालतू बात को भी ‘ब्रेकिंग न्यूज’ बताकर दिनभर दोहराते हैं और आपको हिप्नोटाइज करने की कोशिश करते हैं।

भाषाः खबर को बहुत चटपटे शब्दों के द्वारा असामान्य तरीके से बताते हैं। ‘बात गम्भीर है, झड़प, मामूली’ आदि शब्दों की जगह ‘संगीन, वारदात, गिरोह, बड़ा खुलासा, स्टिंग ऑपरेशन’ ऐसे शब्दों के सहारे मामूली मुद्दे को भी भयानक रूप दे देते हैं।

आधारहीन कहानियाँ बनाना, स्टिंग ऑपरेशन और संबंधित बिन्दुः ‘आश्रम में अफीम की खेती, स्टिंग ऑपरेशन’ आदि आधारहीन कहानियाँ बनाकर मामले को रूचिकर बना के उलझाने की कोशिश करते हैं।

मुख्य हथियारः बहुत सारे विडियो जो दिखाये जाते हैं, वे तोड़-मरोड़ के बनाये जाते हैं। ऐसे ऑडियो टेप भी प्रसारित किये जाते हैं। यह टेक्नालोजी का दुरुपयोग है।

इसके अलावा कमजोर, नकारात्मक मानसिकतावालों को डरा के या प्रलोभन देकर उनसे बुलवाते हैं। आश्रम से निकाले गये 2-5 बगावतखोर लोगों को मोहरा बनाते हैं ताकि झूठी विश्वसनीयता बढ़ायी जा सके।

मनोवैज्ञानिक वातावरण तैयार करनाः बापू जी की जमानत की सुनवाई से एक दिन पहले धमकियों की खबरे उछाली जाती हैं, कभी पुलिस को, कभी माता-पिता और लड़की को तो कभी न्यायाधीश को। ये खबरें कभी भी कुछ सत्य साबित नहीं हुई।

अब आप खुद से प्रश्न पूछिये और खुद ही जवाब ढूँढिये कि क्या यह आरोप सच है या एक सोची-समझी साजिश ?

और एक बात कि केवल पेड मीडिया चैनल ही नहीं बल्कि इसी के समान प्रिंट मीडिया भी खतरनाक तरीके से जनमानस को प्रभावित कर रहा है। इन दोनों से सावधान रहना चाहिए।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 29, अंक 250

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