सहजन (मुनगा) की फली खाने में मधुर, कसैली एवं स्वादिष्ट तथा पचने में हलकी, गरम तासीरवाली एवं जठराग्नि प्रदीप्त करने वाली होती है। इसके फूल तथा+ कोमल पत्तों की सब्जी बनायी जाती है। सहजन कफ तथा वायु शामक होने से श्वास, खाँसी, जुकाम आदि कफजन्य विकारों तथा आमवात, संधिवात, सूजनयुक्त दर्द आदि वायुरोगों में विशेष पथ्यकर है। यकृत एवं तिल्ली वृद्धि, मूत्राशय एवं गुर्दे की पथरी, पेट के कृमि, फोड़ा, मोटापा, गंडमाला (कंठमालाझ), गलगंड (घेघा) – इन व्याधियों में इसका सेवन हितकारी है। सहजन में विटामिन ‘ए’ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। आयुर्वेद के मतानुसार सहजन वीर्यवर्धक तथा हृदय एवं आँखों के लिए हितकर है।
औषधीय प्रयोगः
सहजन की पत्तियों के 30 मि.ली. रस में 1 चम्मच शहद मिलाकर रात को सोने से पूर्व 2 माह तक लेने से रतौंधी में लाभ होता है। यह प्रयोग सर्दियों में करना हितकर है।
लौह तत्त्व की कमी से होने वाली रक्ताल्पता (एनीमिया) व विटामिन ‘ए’ की कमी से होने वाले अंधत्व में पत्तियों की सब्जी (अल्प मात्रा में) लाभकारी है।
पत्तों को पानी में पीसकर हलका गर्म करके जोड़ों पर लगाने से वायु की पीड़ा मिटती है।
सहजन के पत्तों का रस लगाकर सिर धोने से बालों की रूसी में लाभ होता है।
सावधानीः सब्जी के लिए ताजी एवं गूदेवाली फली का ही प्रयोग करें। सूखी, बड़े बीजवाली एवं ज्यादा रेशेवाली फली पेट में अफरा करती है। गरम (पित्त) प्रकृति के लोगों के लिए तथा पित्तजन्य विकारों में सहजन निषिद्ध है। सहजन की पत्तियों का उपयोग पित्त-प्रकृतिवाले व्यक्ति वैद्यकीय सलाह से करें। गुर्दे की खराबी में इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2015, पृष्ठ संख्या 31, अंक 266
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