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Rishi Prasad 269 May 2015

”बापू जी को निर्दोष बरी करना ही पड़ेगा” सुप्रसिद्ध न्यायविद् डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी


जोधपुर में पूज्य बापू जी से मिलने आये सुप्रसिद्ध न्यायविद् डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने पत्रकारों से बातचीत में कहाः “हमें भी विधि और कानून के बारे में ज्ञान है। बापू जी के जोधपुर केस की जो परिस्थिति है उसको मैंने जाना, मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि जाँच की स्थिति में होते हुए भी बापू जी 20 महीने से जेल में हैं। मैं समझता हूँ कि एक प्रकार से यह भारत का रिकार्ड है कि ऐसे केस में इतने महीने किसी को जमानत के बिना जेल में रखा गया। दंडित लोगों को भी अपील करने पर जमानत मिली है तो बापू जी को क्यों नहीं ? उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ है। उनका मूलभूत अधिकार बनता है जमानत पर बाहर आने का।”
जब पत्रकारों द्वारा यह पूछा गया कि क्या बापू जी को षड्यंत्र के तहत फँसाया गया है तो उन्होंने कहा, “कुल मिलाकर सारी चीजों को देखने से इस विषय में तो मुझे लगता है कि आशाराम जी बापू के खिलाफ केस बनता ही नहीं है, इनको निर्दोष बरी करना ही पड़ेगा। जो शुरुआत में एफआईआर हुई थी दिल्ली में, वह तथाकथित घटना के 5 दिन बाद हुई थी। जो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय उनके अनुसार कोई पुलिस स्टेशन ऐसे एफआईआर दर्ज नहीं करता है। इन्होंने (बापू जी ने) डांग क्षेत्र (गुजरात) में वनवासियों की हिन्दू धर्म में वापसी करायी थी और आगे धर्मान्तरण होने नहीं दिया। तो सारी धर्मांतरण वाली लॉबी इनके बहुत खिलाफ थी। उन सभी की इस केस में निश्चित भूमिका है। जिस प्रकार से दिल्ली में जीरो एफआईआर दर्ज हुई और फिर बाद में (तत्कालीन) राजस्थान सरकार ने जो दिलचस्पी दिखायी, उससे तो लगता है कि ऊपर से जरूर इशारा था। नयी धाराएँ लगाकर केस बनाया और गिरफ्तार किया था। यह बड़ा आश्चर्य है परन्तु यह सब ट्रायल का विषय है। गिरफ्तारी के जो आधार हैं, उनमें ऐसा कुछ स्पष्ट देखा नहीं। मेडिकल रिपोर्ट कोई सपोर्ट नहीं करती है, केवल एक लड़की के आरोप पर एक संत को आपने बंद किया है। टेकनिकली (विधि-अनुसार) केस बनता नहीं है। केस को लम्बा खींच रहे हैं दुनियाभर में बापू जी को बदनाम करने के लिए। बापू जी को 20 महीने के बाद भी जमानत क्यों नहीं दी गयी है ? सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार कहा है कि ‘बेल इज़ द रूल ऐण्ड जेल इज़ द एक्सेप्शन’ (जमानत नियम है और जेल अपवाद)। जो शर्तें सर्वोच्च न्यायालय ने रखी थीं बापू जी की जमानत के लिए, वे पूरी हो गयी हैं। सब जाँच हो गयी है, अब उनको जेल में रहने का कोई कारण नहीं है, न्यायालय को जमानत देनी चाहिए।”
बापू जी पर लगे आरोपों के बारे में सवाल किये जाने पर सुब्रह्मण्यम स्वामी बोले, “आरोप तो हजार लगते हैं, सब पर लगते हैं। आरोप लगाना बहुत आसान है। सवाल है कि आधार क्या है ? और उस आधार के अनुसार में कह सकता हूँ कि इस केस में कोई दम नहीं है।
बापू जी एक संत हैं, इनका बड़ा व्यापक भक्त समुदाय है सारी दुनिया में। उनको बदनाम करना…. बड़ी गम्भीरता से विचारना चाहिए। जहाँ मुझे लगता है कि अन्याय हुआ है, वहाँ मैं लड़ूँगा।”
पत्रकार द्वारा यह पूछने पर कि “क्या आशाराम जी बापू के साथ अन्याय हुआ है ?” वे बोले, “बिल्कुल। केवल एक लड़की के आरोप हैं, कोई प्रूफ नहीं है। सारी बातें बनावटी हैं। तो इनको बेल क्यों नहीं दी 20 महीने से ? और 75 साल के हैं !”
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2015, पृष्ठ संख्या 6, अंक 269
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Rishi Prasad 269 May 2015

बच्चों पर तो वे जल्दी खुश होते हैं


मोहन के पिता का बचपन में ही स्वर्गवास हो गया था। गरीब ब्राह्मणी ने अपने इकलौते बेटे को गाँव से 5 मील दूर गुरुकुल में प्रवेश करवाया। गुरुकुल जाते समय बीच में जंगल का रास्ता पड़ता था। एक दिन घर लौटने में मोहन को देर हो गयी। भयानक जानवरों की आवाजें आने लगीं – कहीं चीता, कहीं शेर तो कहीं सियार… मोहन थर-थर काँपने लगा। वह जैसे-तैसे करके जंगल से बाहर निकला। उसकी माँ राह देख रही थी। माँ ने कहाः “बेटा क्यों डरता है ?”
मोहनः “माँ ! अँधेरा हो गया था। हिंसक प्राणियों की भयानक आवाजें आ रही थीं इसलिए बड़ा डर लगता था। भगवान का नाम लेता-लेता मैं किसी तरह भाग आया।”
“तू अपने बड़े भाई को बुला लेता।”
“माँ ! मेरा कोई भाई भी है क्या ?”
“हाँ-हाँ बेटा !”
“कहाँ है ?”
“जहाँ से बुलाओ, वहीं आ जाता है।”
“मेरे भाई का नाम क्या है माँ ?”
“बेटा ! तेरे भाई का नाम है गोपाल। परंतु कोई उसको गोपाल बुलाता है, कोई गोविन्द, कोई कृष्ण तो कोई केशव….। जब भी डर लगे तब तू ‘गोपाल भैया ! गोपाल भैया !…’ करके उसको पुकारना तो वह आ जायेगा।”
दूसरे दिन भी गुरुकुल से लौटते समय देर हो गयी तो जंगल में मोहन को डर लगा। उसने पुकाराः “गोपाल भैया ! गोपाल भैया ! आ जाओ न, मुझे बड़ा डर लग रहा है….।”
इतने में मोहन को बड़ा ही मधुर स्वर सुनाई दियाः “भैया ! तू डर मत। मैं यह आया।”
गोपाल भैया का हाथ पकड़कर मोहन निडर होकर चलने लगा। जंगल की सीमा तक मोहन को लौटाकर गोपाल लौटने लगा।
मोहनः “गोपाल भैया ! घर चलो।”
गोपालः “नहीं भैया ! मुझे और भी काम हैं।”
घर जाकर मोहन ने माँ को सारी बात बतायी, माँ समझ गयी कि जो दयामय प्रभु द्रौपदी और गजेन्द्र की पुकार पर दौड़ पड़े थे, मेरे भोले, निर्दोष और दृढ़ श्रद्धा वाले बालक की पुकार पर भी वे ही आये थे।
अब मोहन वन में पहुँचते ही गोपाल भैया को पुकारता और वे झट आ जाते। एक दिन गुरुकुल में सारे बच्चे और कुछ शिक्षक उपस्थित हुए। गुरु जी के यहाँ दूसरे दिन श्राद्ध था। कौन बच्चा इन निमित्त क्या लायेगा – इस पर बातचीत हो रही थी। किसी ने कहाः “मैं शक्कर लाऊँगा।”
किसी ने कहाः “चावल लाऊँगा।”
किसी ने कहाः “चरौली और इलायची लाऊँगा।”
मोहन गरीब था, फिर भी उसने कहाः “गुरु जी ! गुरु जी ! मैं दूध लाऊँगा।”
मोहन ने घर जाकर गुरु जी के यहाँ श्राद्ध की बात बतायी और कहाः “माँ ! मुझे भी एक लोटा दूध ले जाना है।”
गरीब माँ कहाँ से दूध लाती ? माँ ने कहाः “बेटा ! जब गुरुकुल जायेगा न, तो गोपाल भैया से दूध माँग लेना, वे ले आयेंगे।”
दूसरे दिन मोहन ने जंगल में जाते ही गोपाल भैया को पुकारा और कहाः “आज मेरे गुरु जी के पिता का श्राद्ध है। मुझे एक लोटा दूध ले जाना है। माँ ने कहा है कि गोपाल भैया से माँग लेना।”
गोपाल ने मोहन के हाथ में दूध से भरा लोटा दे दिया।
मोहन लोटा लेकर गुरुकुल पहुँचा और बोलाः “गुरुजी ! गुरु जी ! गोपाल भैया ने दूध भेजा है।”
गुरु जी व्यस्त थे, सामने तक न देखा। उन्हें पता था कि गरीब मोहन क्या लाया होगा।
मोहन ने फिर से कहा तो गुरु जी बोलेः “बैठ अभी।”
थोड़ी देर बाद मोहन फिर बोलाः “गुरु जी ! दूध लाया हूँ। गोपाल भैया ने दिया है।”
गुरु जी ने कहाः “सेवक ! ले जा। जरा-सा दूध लाया है और सिर खपा दिया। जा, इसका लोटा खाली कर दे।”
सेवक लोटा ले गया। खाली बर्तन में दूध डाला। बर्तन भर गया। दूसरे बर्तन में डाला, दूसरा बर्तन भी भर गया। जितने बर्तनों में दूध डालता बर्तन भर जाते पर लोटा खाली होता। सेवक चौंका। उसने जाकर गुरु जी को बताया।
गुरु जीः “कहाँ से लाया है यह अक्षयपात्र ?”
मोहनः “एक मेरे गोपाल भैया हैं, उनसे माँगकर लाया हूँ। मेरी पुकार सुनते ही वे आ जाते हैं ?”
“तेरी आवाज सुनकर तेरे गोपाल भैया कैसे आ जाते हैं ?”
“मेरी माँ ने बताया था कि कोई यदि प्रेम से और विश्वास से उसको पुकारे, ध्यान करे तो वह प्रकट हो जाता है।” उसने प्रारम्भ से सारी घटना बतायी।
गुरु जी ने मोहन को प्रणाम किया और कहाः “मोहन ! मुझे भी ले चल, अपने गोपाल भैया के दर्शन करा।”
मोहनः “चलिये गुरु जी ! जब मैं घर जाऊँगा, तब जंगल के रास्ते में गोपाल भैया को बुलाऊँगा। तब आप भी उन्हें देख लीजिये।”
श्राद्ध-विधि पूरी होने के बाद गुरु जी मोहन के साथ चले। रास्ते के जंगल में मोहन ने आवाज लगायी- “गोपाल भैया ! गोपाल भैया ! आ जाओ न !”
मोहन को आवाज सुनाई दी- “आज तुम अकेले तो हो नहीं, डर तो लगता नहीं, फिर मुझे क्यों बुलाते हो ?”
मोहन- “डर तो नहीं लगता मेरे गुरु जी तुम्हारे दर्शन करना चाहते हैं।”
गुरु जी- “मेरे कर्म ऐसे हैं कि मुझे देखकर भगवान नहीं आते। तू दूर जाकर पुकार।”
मोहन ने दूर जाकर पुकारा- “गोपाल भैया दिखे। मोहन ने कहा- “मेरे गुरु जी को भी दर्शन दो न !”
गोपाल- “वे मेरा तेज सहन नहीं कर सकेंगे। तेरी माँ तो बचपन से भक्त थी, तू भी बचपन से भक्ति करता है। तुम्हारे गुरु जी ने इतनी भक्ति नहीं की है। उनसे कहो कि ‘जो प्रकाश-पुंज दिखेगा, वे ही गोपाल भैया हैं।’ जाओ, गुरु जी को मेरे प्रकाश का दर्शन हो जायेगा, उसी से उनका कल्याण हो जायेगा।”
मोहन ने आकर कहाः “देखिये गुरु जी ! गोपाल भैया खड़े हैं।”
गुरु जी- “मेरे को नहीं दिखते, केवल प्रकाश दिखता है।”
मोहन- “हाँ, वे ही हैं, वे ही हैं गोपाल भैया !”
गुरु जी गदगद हो गये, उनका रोम-रोम आनंदित हो उठा, अष्टसात्विक भाव प्रकट हो गये। गुरु जी- “गोपाल ! गोपाल !…. ” पुकार उठे। अब तो गुरु जी मोहन को अपना गुरु मानने लगे क्योंकि उसी ने भगवद् दर्शन का रास्ता बताया।
बच्चो ! तुम भी मोहन की नाईं भगवन्नाम जपते जाओ। गोपाल भैया तुम पर भी प्रसन्न हो जायेंगे। स्वप्न में भी दर्शन दे देंगे। बच्चों पर तो वे जल्दी खुश होते हैं। तुम भी भगवान के साथ सेवक-स्वामी, सखा-भैया के भाव से कोई भी संबंध जोड़कर प्रेम से उन्हें पुकारोगे तो तुम्हारे हृदय में भी आनंद प्रकट हो जायेगा।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2015, पृष्ठ संख्या 12,13 अंक 269
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Rishi Prasad 269 May 2015

प्रार्थना की अथाह शक्ति


सच्चे हृदय की पुकार को वह हृदयस्थ परमेश्वर जरूर सुनता है, फिर पुकार चाहे किसी मानव ने की हो या किसी प्राणी की हो। गज की पुकार को सुनकर स्वयं प्रभु ही ग्राह से उसकी रक्षा करने के लिए वैकुण्ठ से दौड़ पड़े थे, यह तो सभी जानते हैं।
एक कथा आती है, एक पपीहा पेड़ पर बैठा था। वहाँ उसे बैठा देखकर एक शिकारी ने धनुष पर बाण चढ़ाया। आकाश से एक बाज पक्षी भी उस पपीहे को ताक रहा था। अब पपीहा क्या करता ?
कोई और चारा न देखकर पपीहे ने प्रभु से प्रार्थना की- “हे प्रभु ! तू सर्वसमर्थ है। इधर शिकारी है, उधर बाज है। अब तेरे सिवा मेरा कोई नहीं। हे प्रभु ! तू ही रक्षा कर….’
जब अपने बल का अभिमान छूट जाता है और भगवान की समर्थता हृदय में सुदृढ़ होती है तो की हुई प्रार्थना भगवान स्वीकार कर लेते हैं। एक ही प्रार्थना 9 बार की जाय तो उनमें से एक बार तो जरूर फल जाती है। प्रार्थना में शब्द कैसे हैं उसका महत्त्व नहीं है, आर्तभाव से प्रार्थना करके शांत हो जायें।
पपीहा प्रार्थना में तल्लीन हो गया। वृक्ष के पास बिल में से एक साँप निकला। उसने शिकारी को दंश मारा। शिकारी का निशाना हिल गया। हाथ में से बाण छूटा और आकाश में जो बाज मँडरा रहा था, उसे जाकर लगा। शिकारी के बाण से बाज मर गया और साँप के काटने से शिकारी मर गया। पपीहा बच गया।
इस सृष्टि का कोई मालिक नहीं है – ऐसी बात नहीं है। यह सृष्टि समर्थ संचालक की सत्ता से चलती है।
1970 की घटना अमेरिका के विज्ञान जगत में चिरस्मरणीय रहेगी।
अमेरिका ने 11 अप्रैल, 1970 को अपोलो-13 नामक अंतरिक्षयान चन्द्रमा पर भेजा। 2 दिन बाद पृथ्वी से 2 लाख मील की दूरी पर, चन्द्रमा पर पहुँचने के पहले ही उसके प्रथम यूनिट (कमांड मोड्यूल) की ऑक्सीजन की टंकी में अचानक विस्फोट हुआ, जिससे उस यूनिट में ऑक्सीजन खत्म हो गयी और विद्युत आपूर्ति बंद हो गयी।
उस यूनिट के तीनों अंतरिक्षयात्री कमांड मोड्यूल यूनिट की सब प्रणालियाँ बंद कर एक्वेरियस (ल्युनार मोड्यूल) यूनिट में चले गये। परन्तु पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रविष्ट होकर पुनः पृथ्वी पर वापस लौटने में उसका सफल उपयोग कर पाने की सम्भावनाएँ कम थीं। साथ ही ल्युनार मोड्यूल यूनिट दो व्यक्तियों को दो दिन तक सँभालने की क्षमता के हिसाब से बनाया गया था। परन्तु यहाँ उसे 4 दिन तक 3 लोगों को सँभालना था। और इतने लम्बे समय तक का भोजन पानी का संग्रह भी नहीं बचा था। इसके अतिरिक्त इस यूनिट के अंदर बर्फ की तरह जमा दे ऐसा ठंडा वातावरण एवं अत्यधिक कार्बन डाइऑक्साइड थी। जीवन बचने की सम्भावनाएँ बहुत कम थीं।
इस विकट परिस्थिति में सब निःसहाय हो गये। कोई मानवीय ताकत अंतरिक्षयात्रियों को सहायता पहुँचा सके यह सम्भव नहीं था।
देशवासियों ने प्रार्थना की। अंतरिक्षयात्रियों ने ईश्वर के भरोसे पर एक साहस किया। चन्द्र पर अवरोहण करने के लिए ल्युनार मोड्यूल यूनिट के जिस इंजन का उपयोग करना था, उसकी गति एवं दिशा बदलकर अपोलो-13 पृथ्वी की ओर मोड़ दिया। और आश्चर्य ! तमाम जीवनघातक जोखिमों से पार होकर अंतरिक्षयान ने सही सलामत 17 अप्रैल 1970 के दिन प्रशांत महासागर में सफल अवरोहण किया।
उन अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने बाद में सभी देशवासियों को समाचार पत्र के द्वारा कहाः ‘ऐसी कठिन परिस्थिति में सुरक्षित लौटने के लिए आप सभी ने हमारे लिए प्रार्थना की, इसके लिए आप सभी को हृदयपूर्वक धन्यवाद है।’
वह परमात्मा कैसा समर्थ है ! वह कर्तुं अकर्तुं अन्यथा कर्तुं समर्थः…. है। असम्भव भी उसके लिए सम्भव है। सृष्टि में चाहे कितनी भी उथल-पुथल मच जाये लेकिन जब वह अदृश्य सत्ता किसी की रक्षा करना चाहती है तो वातावरण में कैसी भी व्यवस्था करके उसकी रक्षा कर देती है। ऐसे तो कई उदाहरण हैं।
कितना बल है प्रार्थना में ! कितना बल है उस अदृश्य सत्ता में ! अदृश्य सत्ता कहो, अव्यक्त परमात्मा कहो, एक ही बात है लेकिन वह है जरूर। उसी अव्यक्त, अदृश्य सत्ता का साक्षात्कार करना यही मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2015, पृष्ठ संख्या 15,19 अंक 269
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