केवल तभी तुम वास्तव में हिन्दू कहलाने योग्य हो…. स्वामी विवेकानंद जी

केवल तभी तुम वास्तव में हिन्दू कहलाने योग्य हो…. स्वामी विवेकानंद जी


यदि कोई हिन्दू धार्मिक नहीं है तो मैं उसे हिन्दू ही नहीं कहूँगा। दूसरे देशों में भले ही मनुष्य पहले राजनैतिक हो और फिर धर्म से थोड़ा सा लगाव रखे पर यहाँ भारत में तो हमारे जीवन का सबसे बड़ा एवं प्रथम कर्तव्य धर्म का अनुष्ठान है और फिर उसके बाद यदि अवकाश मिले तो दूसरे विषय भले ही आ जायें। इस तथ्य को ध्यान में रखने से हम यह बात अधिक अच्छी तरह समझ सकेंगे कि अपने जातीय हित के लिए हमें आज क्यों सबसे पहले अपनी जाति की समस्त आध्यात्मिक शक्तियों को ढूँढ निकालना होगा, जैसा की अतीत काल में किया गया था और चिरकाल तक किया जायेगा। अपनी बिखरी हुई आध्यात्मिक शक्तियों को एकत्र करना ही भारत में हिन्दुत्व की एकता स्थापित करने का एकमात्र उपाय है। जिनके हृदय एक ही आध्यात्मिक स्वर में बँधे हैं, उन सबके सम्मिलन से ही भारत में हिन्दुओं का संगठन होगा।

मेरी बात पर ध्यान दो, केवल तभी तुम वास्तव में हिन्दू कहलाने योग्य होगे जब ‘हिन्दू’ शब्द सुनते ही तुम्हारे अंदर बिजली दौड़ने लग जायेगी। केवल तभी तुम सच्चा हिन्दू कहला सकोगे, जब तुम किसी भी प्रान्त के, कोई भी भाषा बोलने वाले प्रत्येक हिंदू-संज्ञक व्यक्ति को एकदम अपना सगा समझने लगोगे। केवल तभी तुम सच्चे हिन्दू माने जाओगे, जब किसी भी हिन्दू कहलाने वाले का दुःख तुम्हारे हृदय में तीर की तरह आकर चुभेगा, मानो तुम्हारा अपना लड़का ही विपत्ति में पड़ गया हो।

तब तक भारत का उद्धार असम्भव है…

लोग भारतोद्धार के लिए जो जी में आये कहें, मैं जीवनभर काम करता रहा हूँ, कम से कम, काम करने का प्रयत्न करता रहा हूँ। मैं अपने अनुभव के बल पर तुमसे कहता हूँ कि जब तक तुम सच्चे अर्थों में धार्मिक नहीं होते तब तक भारत का उद्धार होना असम्भव है। केवल भारत ही क्यों, सारे संसार का कल्याण इसी पर निर्भर है। कारण, मैं तुम्हें स्पष्टतया बताये देता हूँ कि इस समय पाश्चात्य सभ्यता अपनी नींव तक हिल चुकी है। भौतिकवाद की कच्ची रेतीली नींव पर खड़ी होने वाली बड़ी-से-बड़ी इमारतें भी एक-न-एक दिन अवश्य ढह जायेंगी। इस विषय में संसार का इतिहास ही सबसे बड़ा साक्षी है। जाति पर जातियाँ उठी हैं और भौतिकवाद की नींव पर उन्होंने अपने गौरव का प्रसाद (महल) खड़ा किया है। उन्होंने एक दूसरे की अपेक्षा अपना सिर ऊपर उठाया है तथा संसार के समक्ष यह घोषणा की है कि जड़ के सिवाय मनुष्य और कुछ नहीं है। ध्यान दो, पाश्चात्य भाषा में मृत्यु के लिए कहते हैं- “मनुष्य आत्मा छोड़ता है। (A man gives up the ghost.)” पर हमारी भाषा में- “मनुष्य शरीर छोड़ता है।” पाश्चात्य देशवासी अपने संबंध में कहते समय पहले देह को ही लक्ष्य करता है, उसके बाद उसका एक आत्मा है इस प्रकार वह उल्लेख करता है। पर हम लोग सबसे पहले अपने को आत्मा समझते हैं, उसके बाद हमारी एक देह है ऐसा कहा करते हैं। इन दो विभिन्न वाक्यों की छान-बीन करने पर तुम देखोगे कि प्राच्य (पूर्व) और पाश्चात्य विचार प्रणाली में कितना अन्तर है। इसीलिए जितनी सभ्यताएँ भौतिक सुख-सुविधा की रेतीली नींव पर कायम हुई थीं, वे सभी थोड़े ही समय के लिए जीवित रहकर एकर-एक करके लुप्त हो गयीं परंतु भारत की सभ्यता, यही क्यों, भारत के चरणों के पास बैठकर शिक्षा ग्रहण करने वाले चीन और जापान की सभ्यता आज भी जीवित है, और इतना ही नहीं बल्कि उनमें पुनरुत्थान के लक्षण भी दिखाई दे रहे हैं। फिनिक्स (ग्रीक दंतकथाओं के अनुसार फिनिक्य एक ऐसी चिड़िया है जो 500  वर्ष तक जीकर एक चिता पर स्वयं को जला देती है और पुनः अपने भस्म से जी उठती है) के समान हजारों बार नष्ट होने पर भी वे पुनः अधिक तेजस्वी होकर प्रस्फुरित होने को तैयार है। पर भौतिकवाद के आधार पर जो सभ्यताएँ स्थापित हैं, वे यदि एक बार नष्ट हो गयीं तो फिर उठ नहीं सकतीं। एक बार यदि महल ढह गया तो बस, सदा के लिए धूल में मिल गया। अतएव धैर्य के साथ राह देखते रहो, हम लोगों का भविष्य उज्जवल है।

‘अपने को हिन्दू बताते हुए मुझे गर्व होता है’

उतावले मत बनो, किसी दूसरे का अनुकरण करने की चेष्टा मत करो। दूसरे का अनुकरण करना सभ्यता की निशानी नहीं है। यह एक बड़ा पाठ है, जो हमें याद रखना है। मैं यदि आप ही राजा की सी पोशाक पहन लूँ तो क्या इतने से ही मैं राजा बन जाऊँगा ? शेर की खाल ओढ़कर गधा कभी शेर नहीं बन सकता। अनुकरण करना – हीन और डरपोक की तरह अनुकरण करना कभी उन्नति के पथ पर आगे नहीं बढ़ा सकता। वह तो मनुष्य के अधःपतन का लक्षण है। जब मनुष्य अपने-आपसे घृणा करने लग जाता है, तब समझना चाहिए कि उस पर अंतिम चोट बैठ चुकी है।  जब वह अपने पूर्वजों को मानने में लज्जित होता है तो समझ लो कि उसका विनाश निकट है। यद्यपि मैं हिन्दू जाति में एक नगण्य व्यक्ति हूँ तथा अपनी जाति और अपने पूर्वजों के गौरव से मैं अपना गौरव मानता हूँ। अपने को हिन्दू बताते और हिन्दू कहकर अपना परिचय देते हुए मुझे एक प्रकार का गर्व होता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2017, पृष्ठ संख्या 28,29 अंक 299

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