ऋग्वेद (1.115.1) में आता हैः
सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च।
सूर्य स्थावर-जंगमात्मक जगत का आत्मा है।
शक्ति, सौंदर्य व स्वास्थ्य प्रदायक सूर्य की रंगीन किरणें स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है। ‘सूर्यकिरण चिकित्सा पद्धति’ में इनके द्वारा रोगों का उपचार किया जाता है। इसमें जिस रंग की सूर्यकिरणों से उपचार करना हो, उस रंग के सेलोफेन पेपर (पारदर्शक रंगीन कागज) को प्रभावित अंग पर लगाया जाता है या काँच की उस रंग की बोतल में पानी या तेल आदि डालकर सूर्यकिरणों में निश्चित समय तक रख के उसका प्रयोग किया जाता है। आवश्यक रंग की बोतल उपलब्ध न होने पर उस रंग का सेलोफेन पेपर रंगहीन बोतल पर लपेटकर उसका उपयोग किया जाता है।
सूर्यतप्त जल तैयार करने के लिए वांछित रंग की बोतल में 75 प्रतिशत भाग पानी भरकर ठीक से बंद करके 6 से 8 घंटे धूप में रख दें। सूर्यतप्त तेल तैयार करने हेतु बोतल को 40 दिन तक धूप में रखें।
बोतल लकड़ी के तख्ते आदि पर रखनी चाहिए। तैयार किया हुआ पानी 3 दिन बाद काम में नहीं लेना चाहिए, वह गुणहीन हो जाता है।
रोगानुसार रंगों के लाभ
लाल रंगः यह अति उष्ण प्रकृति का एवं उत्तेजक होता है। यह कफज रोगों का नाशक तथा जोड़ो का दर्द, गठिया मोच, सूजन, लकवा, पोलियो, खून की कमी आदि में अत्यंत लाभकारी है। मालिश हेतु लाल किरण तप्त तेल का प्रयोग कर सकते हैं। लाल किरण तप्त जल का प्रयोग प्राकृतिक चिकित्सक की सलाह से करें।
नारंगी रंगः यह उष्ण होता है तथा कफज रोगों का नाशक, मानसिक शक्तिवर्धक एवं दमा, तिल्ली के बढ़ने, आँतों की शिथिलता, मूत्राशय के रोग, लकवा, उपदंश आदि में लाभकारी है।
पीला रंगः यह उष्ण होता है तथा कफज रोगों एवं हृदय व उदर रोगों का नाशक तथा पेट, यकृत (लिवर), तिल्ली एवं फेफड़ों के रोगों, कब्ज, अजीर्ण, कृमिरोग, लकवा, गुदभ्रंश तथा वातरोगों में लाभकारी है।
हरा रंगः यह समशीतोष्ण होता है तथा वातज रोगों का नाशक, रक्तशोधक एवं आँखों व त्वचा के रोगों, फोड़े-फुंसी, दाद, खाज, कमर व मेरूदण्ड के निचले भाग के रोगों, बवासीर आदि में लाभकारी है। हरे रंग की बोतल का सूर्यतप्त तेल बालों में लगाने से असमय सफेद होने वाले बाल काले होते हैं व सिर के पिछले भाग में लगाने से स्वप्नदोष व धातु सम्बंधी रोगों में लाभ होता है।
हरा सूर्यतापित जलः यह पानी जठराग्निवर्धक, कब्जनाशक तथा शरीर की गंदगी, विजातीय द्रव्य, रक्त के दोषों को शरीर से निकाल फेंकता है। यह गुर्दों (किडनियों), आँतों व त्वचा की कार्य प्रणाली को भी सुधारता है।
हरे रंग की बोतल में तैयार जल आधा से एक कप सुबह खाली पेट तथा दोपहर व शाम को भोजन से आधा घंटा पूर्व लें। प्रयोग के दिनों में पचने में भारी खाद्य पदार्थों का सेवन न करें व भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी अवश्य पियें।
आसमानी रंगः यह शीतल होता है तथा पित्तज रोगों का नाशक, ज्वरनाशक एवं सिर की पीड़ा, संग्रहणी, पेचिश, बुखार, दमा, पथरी, अतिसार व पेशाब सम्बन्धी तकलीफों में लाभकारी है।
नीला रंगः यह शीतल होता है तथा पित्तज रोगों का नाशक, पौष्टिक, कीटाणुनाशक एवं सिरदर्द, असमय बालों का सफेद होना व गिरना, मुँह के छाले, फोड़े-फुंसी व गले के रोगों में लाभकारी है।
बैंगनी रंगः यह शीतल होता है तथा लाल रक्तकणवर्धक, क्षयरोग (टी.बी.) नाशक और हैजा, दस्त, मस्तिष्क दौर्बल्य एवं हृदय की धड़कन की अनियमितता में अत्यंत लाभकारी है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2017, पृष्ठ संख्या 30,31 अंक 300
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