विज्ञानियों ने एक प्रयोग किया । 8 वीं कक्षा के 30 विद्यार्थियों को 2 खंडों में रख दिया । पहले खंड के 15 विद्यार्थियों को बोला क “बोर्ड पर यह जो गणित के सवाल लिख रहे हैं, तुम्हें इसका जवाब लिखना है लेकिन कठिन है दोस्तो ! यह तो दसवीं वाले भी नहीं कर सकते पर क्या करें, तुम्हारे लिए आया है । बहुत कठिन है, देखो कोशिश करो, हो जाय तो अच्छा है । यह सवाल हल करोगे तो 10 अंक मिलेंगे ।”
सवाल कठिन है । ऐसा उनकी खोपड़ी में डाल दिया ।
उसी 8वीं कक्षा के दूसरे खंड के 15 लड़कों के पास गये और सवाल लिखकर बोलेः “यह सवाल तो 7वीं वाले भी कर सकते हैं, तुम तो आठवीं वाले हो । बड़ा सरल है, हो सकता है । 10 अंक मिलेंगे और 5 मिनट का खेल है ! अंतिम परीक्षा में काम आयेगा ।” उनके दिमाग में डाल दिया कि सरल है, सरल है ।
उन 15 बच्चों में से 12 बच्चों ने जवाब सही लिख दिया । और जिनके दिमाग में रख दिया गया था कि कठिन है, कठिन है । उन 15 विद्यार्थियों में से 12 नापास हुए, 3 ही पास हुए ।
परीक्षा में वे ही नापास होते हैं जो प्रश्नपत्र देख के ‘कठिन है, मेरे को नहीं आयेगा….’ ऐसा सोचकर डर जाते हैं । मन को हिम्मत दिलानी चाहिए कि ‘कठिन वठिन कुछ नहीं है, मैंने पढ़ा है ।’ माँ सरस्वती को याद किया, भगवान शिव को, राम जी को, सद्गुरुदेव को…. जिनमें भी श्रद्धा है उनको याद किया । फिर ज्ञान मुद्रा1 में जीभ दाँतों से आधा सें. मी. बाहर निकाल के आधा मिनट शांत हो गये । तो कठिन क्या, कठिन का बाप भी तुम्हारे आगे सरल व सीधा हो जायेगा और अच्छे अंकों से पास हो जायेगा ।
ऐसे ही ईश्वरप्राप्ति है तो सरल विषय लेकिन मान रखा है कि बड़ा कठिन है, बड़ा कठिन है । इतना व्रत करो…. इतना तप करो….. इतना उपवास करो….. फिर कहीं भगवान रीझेंगे । भनक पड़ेगी राम को तभी तो कभी सरकार आयेंगे, अभी कहाँ ! अपना भाग्य कहाँ….!’ यह नकारात्मक विचारों की इर्द-गिर्द बाड़ बना दी । जैसे सेल के ऊपर सील होती है न, तो फिर कितना भी बटन चालू करो बैटरी नहीं जलती । सील तोड़ दो तो जलती है । ऐसे ही नहीं हो सकता है – यह जो बेवकूफी की सील लगा दी है, उसको पहले उखाड़ के फेंक दो । फिर आत्मप्रकाश (आत्मानुभव) होने में देर कहाँ ?
1 हाथों के अँगूठों के पास वाली पहली उँगलियाँ और अँगूठे – दोनों के अग्रभागों को आपस में मिलाकर तथा शेष उँगलियाँ सीधी रख के बनी मुद्रा ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2019, पृष्ठ संख्या 7 अंक 322
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