संसार या सांसारिक प्रक्रिया के मूल में मन है। बंधन और मुक्ति, सुख और दुख का कारण मन है।इस मन को गुरुभक्तियोग के अभ्यास से ही नियंत्रित किया जा सकता है।
दरअसल बात उस समय की है जब दर्जी हज करके लौटा और लोगों के बीच अपनी तारीफों के पुल खड़ा करता रहा। गाँववाले उसका तजुर्बा सुन-2 कर रस ले रहे थे। वही भीड़ के बीचो-बीच साँई बुल्लेशाह जी भी बैठे थे और दर्जी उन्हींकी तरफ मुख करके, उन्हींकी तरफ ज्यादातर देख-2 कर अपने हज के किस्से सुनाये जा रहा था और साँई बुल्लेशाह भी बड़े चाव से सुन रहे थे।
लेकिन फिर एकाएक बुल्लेशाह के मन मे कौतुक करने की सूझी। दरअसल वो दर्जी को इबादत का सच्चा मर्म बतलाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने दर्जी के गोद में बिखरा हुआ कपड़ा जिसे दर्जी सील रहा था, उठा लिया। उस कपड़े में धागा पिरोई हुई एक सुई भी लगी थी। बुल्लेशाह ने उस सुई को लिया और उससे धागा निकाल दिया। फिर बड़ी एकाग्रता से उस बिन धागे की सुई को कपड़े के आरपार-2 घुसाने लगे।
दर्जी ने कहा, “साँई! कैसी बच्चों जैसी बात करते हो? बिना धागे के अकेली सुई कैसे कपड़ा सील सकती है? पहले इसमे धागा तो डालो।”
बुल्लेशाह ने कहा, यही तो मैं भी तुम्हें बतलाना चाहता हूँ कि-
जिचलना इश्क मजाजी लागे,
सुई सीवे न बिन धागे।
अर्थात जैसे एक सुई बिना धागे की नही सिलती वैसे ही इश्क मजाजी अर्थात गुरु की भक्ति बिना इश्क की हकीकी प्रभु की भक्ति कभी नहीं मिल सकती। कितने भी हज करलो, लेकिन गुरु का रहमोकरम, इल्मो ज्ञान जब खुदा की इबादत से जुड़ता है तभी बात बनती है।कपड़े में खाली सुई चलाना बेकार है।
हाजी साहब!
बिन मुर्शिद क़ामिल बुल्ल्या,
तेरी एवं गई इबादत कीती।
बिना कामिल मुर्शिद अर्थात पूर्ण सद्गुरु के बिना तेरी सारी इबादत, तेरे किये हुए सारे हज यूँ ही पानी हो गये।
उल्लू सूर्य के प्रकाश के अस्तित्व को माने या न माने, किन्तु सूर्य तो सदा प्रकाशित रहता है। उसी प्रकार अज्ञानी और चंचल मनवाला शिष्य माने या न माने फिर भी गुरु की कल्याणकारी कृपा ही चमत्कारी परिणाम देती है।
गुरुदेव की कल्याणकारी कृपा प्राप्त करने के लिए अपने अन्तःकरण की गहराई से उनको प्रार्थना करो। ऐसी प्रार्थना ही चमत्कार कर सकती है। गुरुभक्तियोग शुद्ध विज्ञान है। वह निम्न प्रकृति को वश में लाने की एवं परम आनंद प्राप्त करने की रीति सिखाता है।
जिस शिष्य को गुरुभक्तियोग का अभ्यास करना है, उसके लिए कुसंग एक महान शत्रु है। जो नैतिक पूर्णता गुरु की भक्ति आदि के बिना ही गुरुभक्तियोग का अभ्यास करता है, उसे गुरुकृपा नहीं मिलती। गुरु में अविचल श्रद्धा शिष्य को कैसी भी मुसीबत से पार होने की गूढ़ शक्ति देता है