ऐसा प्रश्न किया गिलहरी ने कि प्रभु राम भी हो गए हैरान…. (बोध कथा)

ऐसा प्रश्न किया गिलहरी ने कि प्रभु राम भी हो गए हैरान…. (बोध कथा)


प्रभु श्री राम चन्द्र जी ने गिलहरी से पूछा तु वहाँ सेतु पर क्या कर रही थी? गिलहरी ने कहा प्रभु मै भी सेतु निर्माण मे सहयोग दे रही हूं। प्रभु ने कहा तु किस प्रकार से सहयोग दे रही है?

गिलहरी बोली प्रभु मै तो बहुत छोटा जीव हूं। कुछ ज्यादा तो नही कर सकती थी फिर भी मन मे सोचा कि नल नील जिस सेतु का निर्माण कर रहे है वह बन तो अच्छा रहा है लेकिन उन पत्थरो के बीच मे जो रिक्त स्थान छुटे है उनके कारण सेतु समतल नही बन पा रहा है ऊंचा नीचा दिख रहा है उन्ही रिक्त स्थानो मे मै रेत डाल रही हूं ताकि सेतु समतल हो जाये जब आप उस पर चले तो आपके कोमल चरणो को कोई कष्ट ना हो।

गिलहरी के भाव सुनकर प्रभु अत्यंत प्रसन्न हो गये। इतना छोटा सा जीव और इतनी महान भावना। बात इतनी नही है कि हमारे पास सामर्थ्य कितना है बात इतनी मुख्य है कि हमारे भाव। अगर आपके पास अपने प्रभु के लिए मिटने, कुछ करने की भावना है तो छोटा सा प्रभाव भी आपके इष्ट और आपके प्रभु को प्रसन्न कर देगा।

शबरी या केवट के पास कुछ ज्यादा सामर्थ्य या साधन न थे । परंतु वे भाव के धनी थे। उन्होंने भावो की जमीन पर अपने प्रेम के पौधो को सीचना शुरू किया परिणाम प्रेम रूपी पौधा फल फूलो से लदा हुआ विशाल वृक्ष बन गया। उनकी भावना ही पानी थी भावना ही खाद्य भावना ने ही प्रकाश बनकर उन पौधो को सहलाया था।

आज गिलहरी के भावों ने भी प्रभु को गदगद कर डाला प्रभु ने फिर पूछा अच्छा यह तो बता यहाँ इतने वानर इतने भालू व रीछ है अगर तु किसी के पैरो तले आ गयी या कोई पत्थर या शिलाखंड तेरे आगे आ गया तो तु तो कुचली जाऐगी। गिलहरी ने सुना तो उत्तर देने की बजाय प्रभु से प्रश्न ही कर दिया। प्रभु यह बताइये कि प्राणी की मृत्यु कितनी बार आती है? एक या दो बार। प्रभु ने कहा एक बार।

तब गिलहरी ने जो कहा वह वास्तव मे भावना से ओतप्रोत एक साधक के शब्द थे।
पुण्य कर्मो की पूंजी हो
भक्ति का जब हो भंडार
तब मिलता है अंतिम समय
प्रभु का दर्शन एक बार

मरकर आपकी सेवा मे मै आज धन्य हो जाऊँगी। मृत्यु भी आज वरदान बनेगी। मै परम लक्ष्य को पाऊँगी। प्रभु मरना एक बार है तो मुझे ऐसी मृत्यु दो जो सार्थक हो। मैने सुना है बड़े बड़े ॠषि मुनि चाहते हैं कि अंत समय मे अपने इष्ट का दर्शन हो यदि मेरा अंत भी आपके दर्शन करते हुए आपकी सेवा मे हो तो मृत्यु भी वरदान बन जाएगी।

कौन नही जानता इस धरा पर आकर सबने मृत्यु का वर्णन किया चाहे वह सिकन्दर था जिसने अमर फल पाने का बहुत प्रयत्न किया था या फिर रावण जिसने अपने आपको अमर मान लिया था।

एक दिन मृत्यु के आगोश मे सो गये। हमारी भी मृत्यु निश्चित है अगर भक्त की बात करे तो वह ऐसी ही मृत्यु चाहता है। वह चाहता है कि मेरा सर्वस्व मेरा सब कुछ अपने प्रियतम के कार्य मे लग जाय। कुछ भी मेरे पास छुट न पाय उसकी सोच उसका चिन्तन उसका तन मन हर समय सिर्फ यह चाहता है क्या करूं? कैसे करूं? कि सब अर्पित हो जाये।

इतिहास साक्षी है असंख्य उदाहरण है जिनमे शिष्यो ने इस कदर सर्वस्व मिटाया कि उनकी मृत्यु भी सज गयी।

बात उस समय की है जब दशम पादशाह श्री गुरु गोविंद सिंह जी धर्म की रक्षा हेतु मुगलो व पहाड़ी राजाओ के साथ निरन्तर युद्ध मे संलग्न थे। एक के बाद एक युद्ध निरन्तर चल रहा था। इन युद्धों मे न जाने कितने शिष्य थे जो गुरु के लिए मिट रहे थे लेकिन ऐसा नही युद्ध समाप्त हो गया ये तो हर दिन की कहानी बन चुकी थी।

उन्ही दिनो गुरूदेव आनंदपुर के किले मे अकेले बैठे थे। उनकी मुख मुद्रा अत्यंत गंभीर थी लग रहा था जैसे किसी गहरे चिन्तन मे हैं। तभी किसी सेवक ने कहा गुरूदेव एक माताजी है जो आपसे मिलने की जिद कर रही है हमने उन्हे बहुत रोका लेकिन मानने को तैयार ही नही गुरूदेव ने कहा आने दो।

माता ने कमरे मे प्रवेश किया गुरूदेव के चरणो मे प्रणाम कर माता अश्रु धारा बहाने लगी। गुरूदेव ने उन्हे शांत करने का प्रयास किया पूछा माताजी क्या दुख है माता ने कहा गुरूदेव मेरी पीड़ा आप ही दुर कर सकते हैं। माता बताओ तो सही दुख क्या है? माता ने अश्रु पोछे और कहा गुरूदेव मेरे पति पिछले युद्ध मे सेवा करते हुए शहीद हो गये थे परंतु मै खुश थी क्या हुआ अगर मै विधवा हो गई मेरे पुत्र अनाथ हो गये लेकिन मेरे पति ने गुरू के लिए प्राण त्यागकर जीवन सार्थक कर लिया। गुरुदेव उसके बाद मेरे दो पुत्र भी आपकी सेवा मे शहीद हो गये।

गुरुदेव ने कहा तब तो माता तुम्हारी पीड़ा और आंसू जायज हैं। मां ने तुरंत कहा नही गुरुदेव मेरे दुख का कारण यह नही मुझे तो गर्व है कि मेरी सन्ताने आपके लिए शहीद हुई हैं। गुरूदेव ने कहा माता फिर क्यो रो रही हो? माता ने कहा गुरूदेव मेरे दुख का कारण कुछ और है मेरे कष्ट का कारण मेरा अन्तिम बेटा है वह अपने पिता और भाइयो के रास्ते पर नही चल पा रहा है। गुरूदेव ने कहा क्यो वह कायर है मरने से डरता है मां ने कहा नही गुरूदेव ऐसा नही है वह अस्वस्थ है बिछावन पर पड़ा है। वह चाहता है अपने भाइयो की तरह सेवा करना लेकिन नही कर पा रहा गुरूदेव आप ही कृपा करें। आप उसे स्वस्थ कर दे। आप सर्व समर्थ है सब कुछ ठीक कर सकते हैं।

मै नही चाहती कि मेरा अन्तिम पुत्र बिमारी से मरे। मै चाहती हूँ कि वो भी आपकी सेवा मे प्राणो को न्योछावर करे। गुरूदेव आप कृपा करें। गुरुदेव ने माता की भावना अथाह समर्पण और निष्ठा को देखा तो प्रसन्न हुए और कहा मां तेरे पुत्र को मै नही ठीक करूंगा तेरे पुत्र को ठीक करेंगी तेरे गुरु के प्रति निष्ठा तेरे गुरू के चरणो मे विश्वास तेरे गुरु के प्रति अथाह समर्पण की भावना।

जा माता तेरा पुत्र अवश्य ठीक होगा गुरुदेव के इन्ही वचनो का प्रसाद ले माता घर चली गई। कुछ दिनो के बाद माता का पुत्र सच मे स्वस्थ हो गया इतिहास कहता है कि माता ने अपने तीसरे व अन्तिम पुत्र को भी गुरू की सेवा मे शहीद करवा दिया। मृत्यु आनी है गुरू की सेवा मे आ जाय तो उससे बढ़कर मृत्यु नही हो सकती। उस माता का अथाह समर्पण हमारे लिए शिक्षा है माता ने तन मन धन सब रूप मे सेवा कर डाली।

जिसका धन उसकी संतान हो उसी को न्योछावर कर दिया हम लाख बार सोचते है सेवा करने से पहले हम कुछ बचाकर रख लेना चाहते है लेकिन वो ऐसी भक्त थी जो सोचती थी कि कुछ बच न जाय सब सेवा मे लग जाय। आज जीवन मिला है मौका मिला है तो क्यो न सब न्योछावर कर डालू। कल का क्या पता हम भी भक्त बने हमे भी मौका मिला है लाभ ले लें इस अवसर का, वर्ना मरना तो है ही।

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