सद्गुरु पैगम्बर और देवदूत है विश्व के मित्र और जगत के लिए कल्याणमय है। पीड़ित मानवजाति के ध्रुवतारक है,सच्चे गुरु शिष्य का प्रारब्ध बदल सकते है।
अजामिल ब्राह्मण कुल में जन्म लेने और राजपण्डित का पुत्र होने का सौभाग्य उसके माथे पर था। साथ ही उसकी स्वयं की मेधा शक्ति ऐसी थी कि सब देखते ही रह जाते थे। बाल्यावस्था में भी उसकी चंचलता शायद कहीं अज्ञात डगर पर खो सी गई थी। किसी महान ऋषि सी गम्भीरता उसमे सहज ही दिखती थी। 5 वर्ष की आयु में जब अजामिल के पिता उसे गुरुकुल में लेकर गए तो वह अन्य सामान्य बालको की तरह न तो रोया और न ही अपनी शिक्षा-दीक्षा हेतु अरुचि दिखाई। गुरुदेव को भी प्रथम दृष्टि में ही अजामिल ऐसा दीपक दिखा जो सही दिशा पाकर सूर्य बन सकता था। एक ऐसी नन्ही कली जो सुंदर फूल का रूप लेने को लालायित थी।
गुरुदेव ने उसे विकसित करने का प्रण ले तुरंत अपना शिष्य स्वीकार कर लिया।उसी दिन से सनातन दीक्षा के साथ-साथ अजामिल की वैदिक शिक्षा प्रारम्भ हो गई। यूँ ही 12 वर्ष व्यतीत हो गए अजामिल ने इन 12 वर्षों में अन्य बालको की तुलना में 12 गुना अधिक शिक्षा व ज्ञान को अर्जित किया।
एक दिन गुरुदेव ने अजामिल को अपने पास बुलाकर कहा- अजामिल आजतक तुम्हे घर से आश्रम और आश्रम से वापस घर तक ले जाने तुम्हारे घर का चाकर आता था। लेकिन तुम्हारे पिता के कथनानुसार अब तुम अकेले ही आने जाने योग्य हो गए हो इसलिए अब मैं इस सम्बंध में जो आज्ञा देने वाला हूँ उसे तुम दिमाग मे ऐसे बिठा लेना जैसे एक सिक्के को एक बालक अपनी मुट्ठी में भींच कर रख लेता है और उसके गुम हो जाने के भय से उसकी तरफ हमेशा सजग रहता है। मेरे इस आज्ञा को केवल आज्ञा ही नही बल्कि सख्त निर्देश भी मानना।
अजामिल हाथ जोड़कर कहता है- गुरुदेव! ऐसी क्या आज्ञा है जिसे आप इतना महत्व दे रहे हैं। गुरुदेव ने आदेशात्मक स्वर में कहा- तुम्हे घर से आश्रम तक आने के लिए हमेशा बाहरी रास्ते का ही प्रयोग करना है नगर के भीतर के मार्ग का प्रयोग कभी मत करना यही मेरी आज्ञा है। अजामिल को यह आज्ञा बहुत ही साधारण व सहज लगी उसने प्रण कर लिया कि वह कभी भूल के भी इस आज्ञा का अवहेलना नही करेगा। इसी आज्ञा में गूथकर अजामिल का जीवन आगे बढ़ने लगा।
समय का पहिया दौड़ता रहा अब अजामिल 20 वर्ष का हो चला था। सुंदर नयन नक्ष, गठीला शरीर और भीम सी चौड़ी छाती वाला एक पक्के ब्रम्हचर्य और नेम धर्म की पालना करते-करते उसके चेहरे पर एक दिव्य तेज़ भी था, पीताम्बर धारण कर माथे पर त्रिपुंड सजा जब वह घर से निकलता था तो उसे देखने वाला हर व्यक्ति एकबार तो सोच में पड़ ही जाता कैसा दिव्य तेज़ व सुंदरता है इस बाँके जवान की। केवल बाहरी रूप ही नही बल्कि उसके ज्ञान की भी चर्चा दूर- दूर तक होने लगी थी।
आज भी जब घर जाने के लिए अजामिल गुरु आश्रम से निकला तो हमेशा ही की तरह उसने नगर के बाहर के रास्ते वाली ही डगर पकड़ी। परन्तु नगर के भीतर मार्ग से बाहर आते हुए कुछ युवा लड़को ने अजामिल पर व्यगात्मक टिप्पणी कसी.. अरे वो देखो तपस्वी श्रेष्ठ महामुनि बेचारे कपास के फीके फूलो को ही सबकुछ मान बैठा है।ओ भिक्षुकराज! तनिक नगर के भीतर भी तो जाकर देखो, देखो कैसे मन लुभावने गुलाब, गेंदा, गुलमोहर पुष्प है। वहां उन्हें सूंघते ही स्वर्ग का आनंद मुट्ठियों में आकर खेलेगा। क्यो आदरणीय श्रेष्ठ मुनिश्रेष्ठ चले फिर नगर के भीतर.. ऐसा कहते हुए युवा हंसने लगे।
इस तरह अजामिल का उपहास करके वे नवयुवक आगे बढ़ गए उनके शब्दो को सुनकर अजामिल को लगा कि शायद कोई सांसारिक ज्ञान ऐसा है जिससे वह अभी तक अछूता है, उसके मन मे सवाल उठने लगा ऐसा क्या है नगर के भीतरी मार्ग पर जो मैं बाहरी मार्ग पर अनुभव नही कर पाया और इन युवकों को नगर में ऐसा क्या मिल गया जो वे इतने तरंगित व ऊर्जावान थे। इन प्रश्नों में उलझा-उलझा सा अजामिल अपने घर पहुंच गया। लेकिन खाना खाते, उठते-बैठते उसके मन मे यही विचार आ रहे थे आखिर है क्या नगर के भीतर तभी उसे गुरु आज्ञा के वचन भी याद आये कि गुरुदेव ने कैसे उसे भीतरी रास्ते पर जाने से उसे सख्त मना किया था यह स्मरण होते ही उसकी जिज्ञासा कुतूहल में बदल गयी आखिर ऐसा है क्या नगर के भीतर रास्ते पर कि गुरुदेव ने भी मुझे वहां जाने के लिए यूँ कड़ा मना किया है। कुछ न कुछ हट के तो अवश्य है उसके मन मे यह संकल्प-विकल्प उठ ही रहे थे कि उसे जोर से किसी ने डांटा, डांटने की आवाज सुनाई दी अजामिल डर गया शायद कोई कमरे में था जिसने डांटा उसने चारो दिशाओं में घूमकर देखा लेकिन नही कमरे में तो कोई न था फिर यह आवाज…. यह आवाज कहीं बाहर से नही बल्कि अजामिल के भीतर से उसकी आत्मा की थी जो उसको फटकार रही थी।
मूर्ख! मति मारी गई है क्या तेरी वहां कुछ हटके है या नहीं यह प्रश्न तो तेरे जहन में उठने की कल्पना भी नही होनी चाहिए।याद है न तुझे उस मार्ग पर जाने से गुरुदेव ने तुझे सख्त मना किया है उनका आदेश है। फिर बता जिस रास्ते जाना ही नही तो उसके विषय मे चिंतन किस बात की। तुझे पता है न कि गुरु से विमुख होकर छुए गए फूल भी कांटे है याद रखना अजामिल अगर बाहरी रास्ते पर जहर रखा है और भीतरी रास्ते पर भले ही अमृत का कलश लेकिन तब भी तू जहर का ही चयन करना क्योंकि गुरुदेव ने तेरे लिए वही चुना है।
गुरुदेव का चयन ही अगर तेरा चयन होगा तो निःसन्देह ही वह जहर तेरे लिए अमृत का कार्य करेगा और गुरू विमुख होकर पिया गया अमृत भी तेरे लिए विष है इसलिए खबरदार अगर उस मार्ग पर जाने की सोची भी तो। अजामिल यह फटकार सुनकर अंदर तक कांप गया उसे लगा कि जैसे वह अंधकूप में गिरते-गिरते बच गया। वह तुरन्त ध्यान में बैठ गया ध्यान में कब नींद आ गई उसे पता न चला।
कल हम जानेगें कि क्या सच में अजामिल की अंतरआत्मा गुरु की आज्ञा मानेगा या नहीं……।