सदा सुखी रहने का नाम है ईश्वरप्राप्ति । दुःखों से, चिंताओं से और जन्म-मरण की पीड़ाओं से मुक्ति का नाम है ईश्वरप्राप्ति । मनुष्य की माँग का नाम है ईश्वरप्राप्ति ।
वास्तव में ईश्वरप्राप्ति के लिए किन्हीं लम्बे चौड़े नियमों की जरूरत नहीं है । किसी विशिष्ट काल या कालान्तर में प्राप्ति होगी ऐसा नहीं है । ईश्वर के सिवाय और कुछ सार न दिखे, उसको पाने के लिए तीव्र लगन हो बस, उसकी प्राप्ति सहज हो जायेगी ।
जितना हेत हराम से, उतना हरि से होय । कह कबीर ता दास का, पला न पकड़े कोय ।।
ईश्वरप्राप्ति की भूख लगेगी तो विवेक-वैराग्य बढ़ेगा, सत्त्वगुण की वृद्धि होगी तथा धीरे-धीरे सारे सदगुण आयेंगे । धीरे-धीरे सब उपाय अपने-आप आचरण में आ जायेंगे और शीघ्र परमात्मप्राप्ति हो जायेगी ।
लोग कहते हैं- “महाराज ! भगवान की प्राप्ति के हम अधिकारी नहीं हैं ।”
अरे भैया ! कुत्ते को सत्संग सुनने का, गधे को योग करने का, भैंस को भागवत सुनने का, चिड़िया को व्रत करने का अधिकार नहीं है…. किंतु सत्संग-श्रवण, योग, भक्ति, व्रत आदि करने का अधिकार आपको है । ये सारे अधिकार तो परमात्मा ने आपको ही दे रखे हैं, फिर क्यों आप अपने को अनधिकारी मानते हो ?
भगवत्प्राप्ति की सुविधा चौरासी लाख योनियों में से मनुष्य जन्म में ही है । देवताओं को भी अगर भगवत्प्राप्ति, आत्मसाक्षात्कार करना हो तो मनुष्य बनना पड़ता है । ऐसा मनुष्य जन्म आपको मिला है । ईश्वर ने ऐसा उत्तम अधिकार दे दिया है, फिर क्यों अपने को अनधिकारी मानते हो ? अपने को अनधिकारी मानना यही ईश्वरप्राप्ति में बड़े-में-बड़ा विघ्न है ।
ईश्वरप्राप्ति कोई अवस्था नहीं है । किसी परिस्थिति का सर्जन करके भगवान को पाना है या कहीं चलकर भगवान के पास जाना है ऐसी बात नहीं है वरन् वह तो हमसे एक सूतभर भी दूर नहीं है । लेकिन हम जिन विचारो से संसार की ओर उलझे हैं उन्ही विचारों को आत्मा की तरफ लगाना इसका नाम ही है ईश्वर की ओर चलना, साक्षात्कार की ओर चलना । ईश्वर हमसे अलग नहीं हुआ है, वह तो सर्वत्र है किंतु हम ही ईश्वर से विमुख हो गये हैं । अगर हम सम्मुख हो जायें तो वह मिला हुआ ही है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2020, पृष्ठ संख्या 2, अंक 333
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