बालक कमाल का कमाल – पूज्य बापू जी

बालक कमाल का कमाल – पूज्य बापू जी


संत कबीर जी के पुत्र हो गये कमाल । वे छोटे थे, विद्यार्थी थे तब अपने मित्रों के साथ खेल खेलते थे । खेलकूद में कभी कोई हारे, कभी कोई जीते । तो जो जीतता था उसके दाँव बन जाते थे, जैसे कि 4 दाँव लेने बाकी हैं, 2 दाँव लेने बाकी हैं । खेलना पूरा होता तो जो हार जाय उसके ऊपर दाँव बाकी रह जाते । जैसे 4 दाँव रह गये तो हारने वाला घोड़ा बनता और जीतने वाला उस पर बैठकर इधर से उधर 4 बार घुमाता ।

एक बार खेलते-खेलते शाम हो गयी, मित्र हार गया और कमाल जीत गये । तो कमाल के दाँव बाकी रह गये । दूसरे दिन कमाल गये उस लड़के को बुलाने के लिए कि ‘चलो खेलें ।’

तो देखा, लड़का तो सोया हुआ है । उसके प्राण निकल गये थे, माँ, बाप, भाई, बहन – सब रो रहे थे ।

कमाल बोलेः “ऐ ! चल उठ, कैसे सो गया ! बड़ा चालाक है ! मेरे दाँव देने पड़ेंगे इसीलिए तू सो गया है ।”

माँ-बाप ने कहाः “नहीं… अब क्या बतावें, यह तो सदा के लिए सो गया है ।”

बोलेः “क्या सदा के लिए सो गया ! मेरे दाँव बाकी हैं, उन्हें चुकाने के बदले ऐसे नीं करने का ढोंग करता है । चल रे ढोंगी ! उठ जा !”

लड़के की माँ बोलीः “नहीं ढोंग तो क्या करता है, मेरा बेटा मर गया है ।”

बोलेः “ऐसे तो हम भी मर जायेंगे, इसमें क्या बड़ी बात है । यह तो ऐसे ही पड़ा है, मरा-वरा कुछ नहीं । मेरे दाँव देने बाकी हैं न, घोड़ा बनना पड़ेगा न 4 बार इसीलिए आँखें मूँद के सो गया । ऐसे तो मैं मैं भी सो जाऊँगा ।”

“नहीं बेटे ! देखो, ये हाथ भी ठंडे हो गये, सिकुड़ गये हैं, देखो ।”

कमालः “यह तो हम भी कर लेंगे ।”

तो कमाल सो गये और वे भी उस लड़के जैसे ही हो गये । शरीर ठंडा… उनको भी देखा तो एकदम मरा हुआ । तो पहले तो अपने बेटे के लिए रोते थे पर अब ‘हाय ! कबीर का बेटा भी यहाँ मरा । हाय रे हाय ! अब क्या होगा ?’ ऐसा करके उसके लिए भी रोने लगे ।

वैद्य आये, उन्होंने भी देखा कि यह तो मर गया है । अब अपने बेटे की तो याज्ञा निकालनी है लेकिन पराये बेटे की यात्रा इधर से कैसे निकालें ? बड़े चिंतित हुए कि ‘यह क्या हो गया ! हमारा बेटा मर गया उसका दुःख तो मिटा नहीं और यह दूसरे का बेटा भी यहाँ आ के मर गया !’

बोलेः “अरे ! कमाल ! तुम क्यों मरे, कैसे मरे ? बेटा ! उठो, उठो ।” तो कमाल उठ के बैठ गये, बोलेः “लो, हमने भी तो मर के दिखाया । ऐसे ही यह भी मर के दिखा रहा है ।”

“चल बे उठ तू भी ! हम उठ गये तो तू क्यों सोता है ? चल दाँव दे ।” ऐसा करके कमाल ने उसको उठाया तो खड़ा हो गया वह भी । और फिर कमाल ने उससे 4 दाँव लिये । उसके ऊपर बैठा, ‘घोड़ा-घोड़ा… घोड़ा-घोड़ा ।’ तो आत्मशक्ति कैसी है ! यह तो बचपन था कमाल का ।

किसी की मृत्यु तब कही जाती है जब स्थूल शरीर को छोड़कर सूक्ष्म शरीर विचरण करता है । कमाल के मित्र का सूक्ष्म शरीर निकल के विचरण कर रहा था तो कमाल ने खुद भी अपना सूक्ष्म शरीर निकाल के जरा विचरण किया । जैसे आप गाड़ी में बैठो फिर गाड़ी से उतर आओ तो गाड़ी खड़ी है, जड़ है, फिर आप गाड़ी को चालू करो तो चल जाय । चालक का हट जाना मतलब गाड़ी मर गयी और चालक गाड़ी चालू करे तो उसमें जान आ गयी । ऐसे ही शरीर तो अपनी गाड़ी है, साधन है । अपना आत्मा है, चेतन हैं, शरीर को चलाने वाले हैं । शरीर मरने से हम नहीं मरते हैं, शरीर बीमार होने से हम बीमार नहीं होते हैं, मन को दुःख होने से हम दुःखी नहीं होते, हम नित्य हैं । ॐ… ॐ… ॐ…

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2021 पृष्ठ संख्या 6,9 अंक 339

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