लोग बोलते हैं कि ‘आत्मसाक्षात्कार का कोई सरल उपाय बताइये, सरल उपाय बताइये ।’ तो आत्मसाक्षात्कार करके बाद में क्या चाय पीने जाना है, देर होती है क्या ? ‘जल्दी है और सरल उपाय बता दो ।’ तो कोई रेलगाड़ी पकड़नी है क्या ? हजारों जन्मों की यात्रा, हजारों जन्मों कर्मों-बन्धनों का अन्त करके परमात्मा को पाना है… उसमें सरल-सरल… जल्दबाजी नहीं… प्रीति करो, तड़प बढ़ाओ । भई, शुरु-शुरु में बच्चा कहे कि ”पढ़ने का सरल उपाय बता दो ।″ तो उसको A, B, C, D सिखायें । बोलेः ″नहीं, नहीं… सरल बता दो ।″ ‘1,2…’ लिख के बतायें । बोलेः ″नहीं, यह नहीं, सरल बता दो ।″ तो क्या खाक पढ़ेगा ! जो बताया है वह करेगा तभी पढ़ेगा और तभी सब सरल होगा ।
‘क, ख, ग….’ बताया तो बोलेः ″यह तो कठिन है, सरल बता दो ।″ तो कोई नयी वर्णमाला खोजनी पड़ेगी, नये आँकड़े बनाने पड़ेंगे… फिर वह भी उसे कठिन लगेगा । जब नया-नया होता है तो सरल भी कठिन लगता है और अभ्यास बढ़ जाता है तो कठिन ‘कठिन’ नहीं रहता, सब सरल हो जाता है । ईश्वरप्राप्ति का कोई सरल मार्ग बता दो ।’ तो कोई नया कल्पित मार्ग सरल नहीं होता, जो मार्ग है सो है । जिस मार्ग से कइयों को मिला है, मिल रहा है और मिलता रहेगा वह ही मार्ग सरल है ।
एक लड़का था, उसका नाम था शेरसिंह ।
किसी ने बोलाः ″अरे, तेरा शेरसिंह नाम है ?″
बोलाः ″हाँ, मैं शेरसिंह हूँ ।″
″शेरसिंह है तो शेर को तो पूँछ होती है, तेरे को पूँछ कहाँ है ? तेरे को पूँछ नहीं तो कम-से-कम अपने हाथ पर ही शेर छपवा के आ जा, गोदना गुदवा कर के आ जा ।″
वह गोदना गोदने वाले के पास गया । गोदने वाले ने ज्यों ही मशीन उठायी और सुई गड़ायी, त्यों ही ‘एं-एं-एं !’ करते हुए बोलाः ″क्या कर रहे हो ?″
″शेर की पूँछ बना रहा हूँ ।″
″बिना पूँछ का शेर बना दो । पूँछ की क्या जरूरत है ? शेर की पूँछ तो पतली होती है, नहीं के बराबर… नहीं रहेगी तो क्या फर्क पड़ता है ?″
उसने फिर दूसरी जगह पर सूई रखी । तो वह लड़का फिर बोलाः ″अरे ! क्या कर रहे हो… क्या कर रहे हो… ?″
″शेर की कमर बना रहा हूँ ।″
″शेर की तो पतली कमर होती है, नहीं के बराबर । जब पूँछ नहीं है तो कमर की क्या जरूरत है ? आप केवल शेर ही छाप दो ।″ फिर दूसरी जगह पर गोल बनाने जा रहा था तो लड़का बोलाः ″क्या कर रहे हो….?″
″शेर का मुख तो बनाने दे !″
″जब पूँछ नहीं, कमर नहीं तो मुख बनाने की क्या जरूरत है ? ऐसे ही शेर छाप दो ।″
गोदने वाले ने अपना औजार रख दिया और (थोड़ी दूर खड़े युवक की ओर इशारा करते हुए) बोलाः ″जा ! तू उसके जैसा है । उस युवक को किसी ने पूछा थाः ″ऐं ! क्या नाम है ?″
बोलाः ″शेरसिंह ।″
″कहाँ रहता है ?″
″शेरोंवाली गली में ।″
″तेरे बाप का नाम क्या है ?″
″शमशेर सिंह ।″
″तो इधर क्यों खड़ा है ?″
बोलाः ″कुत्ता खड़ा है, डर लग रहा है ।″
″नाम शेरसिंह, बाप शेरसिंह, रहता शेरों वाली गली में है और कुत्ते का पिल्ला खड़ा है उससे डर रहा है । तो काहे का तू शेरसिंह हुआ ?″
ऐसे ही तू शेर का गोदना गुदवा नहीं सकता तो बड़ा आया शेरसिंह !″
वैसे ही जो बोलता है कि ‘सरल उपाय बता दो’, तो तू भक्त काहे का ! मीरा कैसे लग गयी ! शांडिली कैसे लग गयी ! बालक ध्रुव, प्रह्लाद कैसे लग गये ! एकनाथ जी, मिलारेपा, वीर शिवाजी, साँईं श्रीलीलाशाह जी महाराज कैसे लग गये और हम कैसे लग गये और पा लिया ! तो आप भी लग जाओ ! ‘सरल उपाय बताओ, सरल उपाय बताओ…’ जो ऐसा पूछता है समझो वह आत्मसाक्षात्कार करना ही नहीं चाहता ।
विद्यालय में लड़का गया, बोलाः ″सरल उपाय बताओ ।″
बोलेः ″भर्ती हो जाओ और अभ्यास करो ।″
बोलाः ″नहीं, नहीं… सरल उपाय बता दो ।″
दूसरे विद्यालय में जाय, तीसरे विद्यालय में जाय… तो कौन-से सरल उपाय के विद्यालय में भर्ती होएगा ? पढ़ नहीं पायेगा । लग जाओ बस ! अपने-आप सब सरल होता जायेगा । टॉर्च का प्रकाश 10 मीटर तक जाता है तो डरो मत ! चलो, 10 मीटर तो क्या 10 किलोमीटर भी चल जाओगे । ऐसे ही साधन करते-करते अपने-आप रस आता है, अपने-आप सब सरल होता जाता है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 345
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