परिप्रश्नेन

परिप्रश्नेन


प्रश्नः मन एकाग्र नहीं होता है तो क्या करें ?

पूज्य बापू जीः तुम्हारा मन एकाग्र नहीं होता है तो सबका हो गया क्या ? मन एकाग्र नहीं होता तो अभ्यास करना चाहिए । भगवान के, सद्गुरु, स्वस्तिक अथवा ॐकार के सामने बैठकर एकटक देखने का अभ्यास करो । मन इधर-उधर जाय तो फिर से उसे मोड़कर वहीं लगाओ । कभी-कभी चन्द्रमा की ओर देखते हुए आँखें मिचकाओ, उसको एकटक देखो । कभी श्वासोच्छ्वास को गिनो । श्वास अंदर जाता है तो ‘शांति’, बाहर आता है तो ‘1’… अंदर जाता है तो ‘ॐ’, बाहर आता है तो ‘2’… अंदर जाता है तो ‘आनंद’, बाहर आता है तो ‘3’… ऐसे 54 या 108 तक गिनती तक करो । मन कुछ अंश में एकाग्र होगा, मजा भी आयेगा और शरीर की थकान भी मिटेगी ।

प्रश्नः कर्तव्य क्या है ?

पूज्य बापू जीः ईश्वर में स्थिर होना और औरों को स्थिर करना – यह कर्तव्य है । बाकी का सब बेवकूफी है । आप ईश्वर में स्थिर हो जाओ फिर दूसरों को करा दो – यह कर्तव्य है । तो सब तो सत्संग नहीं करेंगे । नहीं-नहीं, आप जो भी काम करें वह ईश्वर में स्थिर होने के लिए करें तो उससे आप भी स्थिर होते जायेंगे और दूसरे को भी सहायक हो जायेंगे न ! कर्तव्य से चूका कि धड़ाक… दुःख चालू । ईश्वर के विचार से, आत्मविचार से जरा-सा नीचे हटे कि मन पटक देगा । जो अपनी शांति सँभाल नहीं सकता, अपनी प्रसन्नता सँभाल नहीं सकता, अपना कर्तव्य सँभाल नहीं सकता वह तो जीते-जी मरा हुआ है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2022, पृष्ठ संख्या 34 अंक 350

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