महापुरुषों के द्वारा मैंने एक कथा सुनी थी कि पृथ्वी पर कुछ ब्रह्मवेत्ता
महापुरुष आ गये, जिनका दर्शन करके लोग खुशहाल हो जाते थे, जिनके वचन सुनकर लोगों
के कान पावन हो जाते थे, जिनके वचन मनन करने से लोगों का मन पवित्र हो जाता था,
जिनके ज्ञान में गोता मारने से लोगों की बुद्धि बलवती हो जाती थी, तेजस्वी हो जाती
थी । लोग पुण्यात्मा, इन्द्रिय संयमी होते थे । संयम करके सूक्ष्म शक्तियों का
विकास करते थे तो लोग तो तर जाते थे, साथ ही वे जिनके कुल में जन्मते थे उनका कुल
भी तर जाता था, उनके नरक आदि में पड़े हुए जो पूर्वज थे वे भी तर रहे थे तो नरक
खाली होने लगा । नये लोग नरक में जायें नहीं और पुराने नारकीय जीव जो नरकों में
सड़ रहे थे, वे भी ब्रह्मवेत्ताओं का सम्पर्क करने वालों के प्रभाव से मुक्त हो
रहे थे । नरक एकदम खाली हो गया । यमराज चिंतित हुए कि ‘हमारे विभाग के सब लोग जम्हाइयाँ खा रहे हैं, उनके पास कोई
काम नहीं है । मेरा विभाग बंद होने को जा रहा है ।
अपना विभाग चलता है तो शोभा पाता है व्यक्ति, विभाग अगर मंदा हो जाय, ग्राहकी
नहीं रहे तो फिर व्यक्ति जरा चिंतित होता है ।
तो चिंतित यमराज ब्रह्मा जी के पास गये, बोलेः ″ब्रह्मन् ! मेरे नरक में
नये कोई पापी आते नहीं और पुराने जो हैं उनके मृत्युलोक में जो पुत्र परिवार हैं,
वे ब्रह्मज्ञानियों का सत्संग सुन के इतने पुण्यात्मा हो जाते हैं कि उनके
पुण्यप्रभाव से नरक से वे पूर्वज सब स्वर्ग में चले जाते हैं, मेरा विभाग खतरे में
है, आप कृपा करके कोई उपाय बताइये । कम-से-कम मेरा काम तो चलता रहे ।
ब्रह्माजी ने कमंडल से पानी लेकर पद्मासन बाँधा और जहाँ से योगेश्वरों का योग
सिद्ध होता है, जिसमें भगवान शिव जी, भगवान नारायण और ब्रह्मज्ञानी महापुरुष रमण
करते हैं उसी आत्मा-परमात्मा के सहज स्वभाव में एक क्षण के लिए रमण करके उपाय ले
आये । उपाय यह लाये कि जो ब्रह्मज्ञानियों का सत्संग सुनेगा वह संयमी होगा,
भक्तिवाला होगा, पुण्यात्मा होगा, उसका कुल तो तरेगा लेकिन अब से पृथ्वी पर जब भी
कोई ब्रह्मज्ञानी आयेंगे तो कोई-न-कोई निंदक लोग पैदा हुआ करेंगे । महापुरुषों की
निंदा करके वे लोग भी डूबेंगे और उनके सम्पर्क में आने वाले भी डूबेंगे, वे सब
तुम्हारे पास आयेंगे । तुम्हारा विभाग चलता रहेगा । तब से आज तक वह विभाग बंद नहीं
हुआ, बढ़ता ही चला गया ।
वसिष्ठ जी कहते हैं- ″ हे राम जी ! मैं बाजार से
गुजरता हूँ तो मूर्ख लोग मेरे लिए क्या-क्या बकवास करते हैं, क्या-क्या अफवाह
फैलाते हैं, वह सब मुझे पता है लेकिन मेरा दयालु स्वभाव है ।″
क्योंकि यमराज का विभाग चालू रखना है । संत कबीर जी के लिए लोग कुछ-का-कुछ
बोलते थे, ऋषि दयानंद को लोगों ने 22 बार जहर दिया, और भी न जाने क्या-क्या बोला,
क्या-क्या विरोध-प्रदर्शन किये और क्या-क्या किया, वेश्याओं को भेजा और क्या-क्या
गंदी अफवाहें फैलायीं । विवेकानंद जी के लिए, रामकृष्ण जी के लिए, रामतीर्थ के लिए
निंदक कुछ भी बकते थे । बुद्ध के जमाने में बुद्ध के विरोधी थे कबीर जी के जमाने
में कबीर जी के विरोधी थे । तो जब-जब भी ब्रह्मवेत्ता आये… चाहे जगद्गुरु आद्य
शंकराचार्य आये हों, चाहे कबीर जी आये हों उनके विरोधी भी हुए हैं, होते ही हैं ।
चाहे श्रीकृष्ण होकर आ जाय वह ब्रह्म, चाहे राम जी हो के आ जाय फिर भी शकुनि और
धोबी जैसे निंदक तो बनते ही हैं क्योंकि यमराज का विभाग चालू रखना है ।
उस विभाग में जो अपने परिवार को भेजना चाहता है वह जरूर संतों की निंदा करे,
राम जी के विरुद्ध जाय, श्रीकृष्ण के विरुद्ध जाय… शकुनि जैसे होते रहते थे कि
नहीं ?
वह अंधा धृतराष्ट्र बोलता है कि ″यह शक्ति कर्ण ने घटोत्कच पर क्यों लगा दी, वह कृष्ण पर लगाता ।″ जानता है कि कृष्ण क्या
हैं, कितना प्रभाव है, कितने उदार हैं, कितने ज्ञानी हैं ! बीच-बीच में तो यूँ भी उछलता है कि ‘अगर मेरे को भी कृष्ण कहे तो मैं भी जरूर आज्ञा पालूँ ।’
फिर भी मोह के कारण सोचता है कि कृष्ण पर शक्ति लगती
अर्थात् उससे कृष्ण मर जाते तो अच्छा था ।
तो जब श्रीकृष्ण के जमाने में, श्रीराम जी के जमाने में
यमराज का विभाग चालू रहा तो अभी क्या बंद हो गया होगा ! कलियुग है, अभी तो वह
विभाग बहुत बड़ा बन गया होगा, सुविधाएँ ज्यादा हुई होंगी, ज्यादा व्यक्ति बैठ सकें
ऐसी व्यवस्था हुई होगी । नारायण ! नारायण !!
जब वसिष्ठजी को लोगों ने नहीं छोड़ा, कबीर जी और नानक जी को
नहीं छोड़ा, राम जी और श्रीकृष्ण को नहीं छोड़ा तो तुम्हारी कोई निंदा करे तो तुम
घबराओ नहीं, सिकुड़ो मत, डरो मत । कोई निंदा करे तो भगवान का रास्ता छोड़ो मत ।
कोई स्तुति करे तो फूलो मत । यह सब इन्द्रियों का धोखा है । निंदा-स्तुति सब आने
जाने वाली चीजें हैं, तुम अपने-आप में लगे रहो ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2022, पृष्ठ संख्या 24, 25 अंक
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