प्रश्नः नारी अबला है, वह अपनी रक्षा कैसे करे ?
स्वामी अखंडानंद जीः सती-साध्वी नारी में अपरिमित शक्ति होती है । सावित्री ने अपने पातिव्रत्य के बल से सत्यवान को यमराज के पंजे से छुड़ा लिया । सती का संकल्प अमोघ है । महाभारत के उद्योग पर्व में शांडिली ब्राह्मणी की कथा है । उसकी महिमा देखकर गरुड़ की इच्छा हुई कि इसको भगवान के लोक में ले चलें । तपस्विनी शांडिली के प्रति गरुड़ के मन में इस प्रकार का भाव आने पर गरुड़ के अंग गल गये, वे दोनों पंखों से रहित हो गये । क्षमा माँगने पर शांडिली ने फिर गरुड़ को ठीक कर दिया । सती अनसूया के सामने ब्रह्मा, विष्णु, महेश को बालक बनना पड़ा । पतिव्रता के भय से सूर्य को रुक जाना पड़ा – पुराणों में ऐसी अनेक कथाएँ हैं । जो अपने धर्म की रक्षा करता है, ईश्वर, धर्म, देवता, सम्पूर्ण विश्व उसकी रक्षा करते हैं । रक्षा तो अपने मन की ही करनी चाहिए । यदि मन सुरक्षित है तो कोई भी, स्वयं मृत्यु भी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकती ।
प्रश्नः यह तो आध्यात्मिक बल की बात हुई, आज की नारी-जाति में ऐसा बल कहाँ ?
स्वामी अखंडानंद जीः आजकल की बात और है । नारी स्वयं ही अपना स्वरूप और गौरव भूलती जा रही है । वह वासनापूर्ति की सड़क पर सरसरायमाण गति से भागती दिखती है । वह बन-ठनकर मनचले लोगों की आँखें अपनी ओर खींचने में संलग्न है । सादगी, सरलता एवं पवित्रता के आस्वादन से विमुख होकर अपने को इस रूप में उपस्थित करना चाहती है मानो स्व और पर की वासनाएँ पूरी करने की कोई मशीन हो । इस स्खलन की पराकाष्ठा पतन है परंतु यह सब तो पाश्चात्य कल्चर की संसर्गजनित देन है, आगंतुक है । भारतीय आर्य नारी का सहज स्वरूप शुद्ध स्वर्ण के समान ज्योतिष्मान एवं पवित्र है । वह मूर्तिमती श्रद्धा और सरलता है । धर्म की अधर्षणीय ( निर्भय ) दीप्ति का दर्शन तो इस गये-बीते युग में भी उसी के कोमल हृदय में होता है । केवल उनकी प्रवृत्ति को बहिर्मुखता से अंतर्मुखता की ओर मोड़ने भर की आवश्यकता है । सत्संग से आर्य-नारी का हृदय अपनी विस्मृत महत्ता को सँभाल लेगा ।
( पूज्य बापू जी का सत्संग-मार्गदर्शन पाकर इस पतनकारी युग में भी लाखों-लाखों महिलाएँ संयम, सदाचार, सच्चरित्रता, पवित्रता, आत्मनिर्भरता, आत्मविकास जैसे दैवी गुणों से सम्पन्न हो के निज-गरिमा को प्राप्त कर रही हैं, आत्ममहिमा में जागने की ओर प्रवृत्त हो रही हैं । पूज्य बापू जी की पावन प्रेरणा से चलाये जा रहे ‘महिला उत्थान मंडलों की सत्प्रवृत्तियाँ आज के समय में नारियों के लिए वरदानस्वरूप हैं । )
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2022, पृष्ठ संख्या 21, 23 अंक 354
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